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मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना

 

मनुष्य की उत्पत्ति मन से होती
मनुष्य मन की गति से विचरण करता
मनुष्य मन ही मन मनन करता
मनुष्य जहाँ ध्यान धरता वहाँ पहुँच जाता! 
 
मनुष्य के मन से अधिक गतिशील
भौतिक जगत में कोई पदार्थ नहीं होता! 
 
मगर मनुष्य का मन वहीं तक जा सकता
जहाँ तक कोई मनुष्य जा चुका, देख चुका 
मन के विचरण की गति सीमित हो जाती
मानव के देखने सुनने अनुभूति करने तक ही! 
 
मनुष्य मन सूर्य चन्द्रमा तारों तक जा सकता
क्योंकि मनुष्य उन्हें उगते डूबते टिमटिमाते देखता
किन्तु मनुष्य मन वहाँ कभी नहीं जा सकता
जहाँ कोई कभी नहीं गया और ना ही कभी देखा! 
 
अगर कोई काबा काशी रोम जेरुसलम वेटिकन चीन
जापान अमेरिकी अफ़्रीकी यूरेशियाई स्थान नहीं गया
तो किसी का मन उन स्थानों तक नहीं जा पाएगा, 
चाहे लाख कटा ले कोई टिकट ट्रेन प्लेन जहाज़ का
आपका मन आपके पास अटक भटक रह जाएगा! 
 
स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख किसी ने नहीं देखा
अगर किसी ने देखा होता 
तो पुत्र पुत्रियों कुटुम्बी जन को अवश्य दिखाया होता! 
 
फिर चल पड़ता स्वर्ग नर्क देखने जाने का सिलसिला
सबका मन स्वर्ग नर्क जन्नत दोजख अवश्य पहुँच जाता 
देव पितर अप्सरा हूर परियों से मिलकर आ जाता! 

वस्तुतः मनुष्य मन देखे सुने विचारों का है संकलन 
विचार है कि हमेशा बदलते रहता आदान प्रदान करने से
विचार है कि कोई अपना नहीं, सब परम्परा से लिए गए! 
 
अगर कोई जन्मना हिन्दू बौद्ध जैन सिख आर्यसमाज के
और धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम ईसाई आदि बन जाते
तो उनके विचार जन्म पुनर्जन्म के बारे में अक़्सर बदल जाते! 
 
किन्तु किसी का मन उनके पूर्व से वर्तमान तक के
सारे संचित विचारों को तह-तहाकर अवश्य रखे हुए होता
कोई लाख नहीं चाहे उसका मन तत्क्षण वहाँ जाएगा ही
जहाँ तक कोई गया या मन को उड़ान दे पाया था कभी! 
 
मनुष्य का शरीर भौतिक तत्त्वों से बना होता
जबकि मनुष्य का मन सूक्ष्म अभौतिक सत्ता
फिर भी मनुष्य ‘मनुर्भवः’ क्यों नहीं बन पाता? 
  
क्योंकि मनुष्य मन के ऊपर निर्भर रहता
मनुष्य मन से ऊपर कभी उठ नहीं सकता
मनुष्य मन की कुत्सा से उबर नहीं पाता! 
 
कहते हैं मन में मैल होता
शरीर में मल होता, दिमाग़ में छल होता
हृदय कोमल होता, आत्मा में आत्मबल होता! 
 
अस्तु मनुष्य मन के ऊपर अवश्य कोई सत्ता होती
जिससे तन मन जीवन और मरण नियंत्रित होती
जिसे हृदय में अवस्थित आत्म चेतना कही जाती! 
 
किन्तु जब तक मनुष्य मन के 
निन्यानबे के चक्कर में फँसा होता
तब तक मनुष्य की बदलती नहीं है मनोदशा! 
 
क्योंकि मन सभी संकलित विचारों का अवगुंठन
मन समस्त शारीरिक सूचनाओं का संग्रहणकर्ता! 
 
मन में बहुत बनी बनाई अनुभूति होती
मन में आग्रह दुराग्रह पूर्वाग्रह भावना होती
मन में शक्ति होती अच्छा बुरा सोचने की 
और मनुष्य अपने मनोनुकूल आचरण करता! 
 
किन्तु वैज्ञानिक सत्य यह भी है
कि मनुष्य मन में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर
सुख दुःख का अनुभव करता तत्क्षण निर्णय लेकर! 
 
अगर चिकित्सक निश्चेतक सुँघाकर 
मन को दैहिक अंगों की सूचना पाने से वंचित कर देता
और शरीर के अंगों को चीर फाड़ काट देता 
बिना दर्द का अनुभव कराए मन को अमन कर चैन देता! 
 
अगर दूर से कोई मित्र कुटुम्ब प्रेमी आते दिख जाता
तो चित्त आह्लादित मधुर भाव से आप्लावित हो जाता
वो सामने आते और अपरिचित या शत्रु निकल जाते
तो आह्लादित मन विचलित, सुख तिरोहित हो जाता! 
 
अगर रात्रि या स्वप्न में अप्रिय भूत प्रेत सा दिखता
तो बिगड़ जाती मनोदशा होती हृदय में दारुण व्यथा! 
 
मगर स्वप्न भंग होते ही 
रोशनी के आते ही भूत का भ्रम मिट जाता 
सामान्य हो जाती है चित्त की भयभीत दशा! 
 
शारीरिक दुःख दर्द पीड़ा अनुभूति मन की वजह से होती
हमारे अंत: बाह्य अंगों की व्यथा स्नायुतंत्र जबतक 
मन को नहीं देता, मन अंगों की पीड़ा से हमें उबारे रखता! 
 
मनुष्य मन की वजह से ही 
सदा सुखी दुखी भ्रमित स्थिति में होता
मनुष्य मन की वजह से सदा चिंतित व्यथित होता
मन है कि मनुष्य में जन्मों-जन्मों तक गुंफित रहता! 
 
अगर किसी मनुष्य ने सोच रखा करोड़ों का धन कमाना
तो मन करोड़ों अर्जन के पूर्व चित्त को शांत नहीं होने देता
इच्छा वासना कामना सब-कुछ मन की वजह से ही होती! 
 
अगर किसी ने बम्बई की मिठाई खा ली
मगर चीन के चमगादड़ का सूप, मानव का भ्रूण नहीं चखा, 
तो यक़ीन मानिए उनका मन बम्बई का मिठाई खाने तो जाएगा
मगर चमगादड़ का सूप व मानव के भ्रूण का व्यंजन खाने कभी 
चीन नहीं जाएगा क्योंकि उनके मन में नहीं है वैसी कोई अनुभूति! 
 
अस्तु इंद्रियों को जीत लो, भटकते मन को मारो, 
आठ घंटे में कमाए धन का तत्काल क्षय और बदहाली को 
कौड़ी समझ कर बिना विलंब किए आठ घंटे में ही बिसारो! 
 
धन-शोक, प्रियजन-शोक मिटाने में कोई जितना देर करेगा, 
उतने तिल-तिल चिंता करके चिता की ओर बढ़ेगा, शीघ्र मरेगा! 
 
एक बार मन में सोच विचार लो, जो गया सो मेरा नहीं था 
जो पाया वो भी मेरा नहीं है, मैंने जो नेकी की, उधार दिया, 
लौटकर नहीं आया, चोर डाकू ले गया, उसे दरिया में डाल दो! 
 
चित्त चिंता रहित निश्चिंत हो जाएगा
जीवन आराम से बीतेगा, राम भी मिल जाएगा! 
 
अन्यथा चाहत की पूर्ति में मरोगे मारोगे 
दूसरों को या अपनों की जान को गँवाओगे
फिर भी इच्छा वासना कामना चाहत पूर्ति 
जन्मों-जन्मों तक कभी नहीं कर पाओगे! 
 
लाख मनन जतन प्रयत्न कर लो 
अपने पाप दुर्व्यसन दुष्कर्म के लिए
दूसरे को क़ुसूरवार कभी नहीं ठहरा पाओगे! 
  
अस्तु अपने मन के बाहर निकलो
अपने मन से बाहर निकलना ही है 
बुद्धत्व को पाना चिंतामुक्त बुद्ध हो जाना
मन के पार उतर जाना भव सागर तर जाना 
जितेन्द्रिय जिनत्व को पा लेना महावीर बन जाना! 
 
बुद्धत्व जिनत्व कृष्णत्व रामत्व
क्राइस्ट ख़ुदाई गुरुज्ञान को पा लेना 
मन के पार उतरकर आत्मचेतना 
परम तत्त्व परमेश्वर को है पाना! 
 

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