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अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए


मित्र कुटुम्ब भले हो ना हो
अपरिचित चेहरों को भले होने चाहिए! 
 
मित्र कुटुम्ब घरों में मिलते
अपरिचित हर चौक चौराहे पर मिलते! 
 
मित्र कुटुम्ब के बग़ैर रह सकते
पर अपरिचित के बग़ैर नहीं रह सकते! 
 
जब हम किसी यात्रा पर होते 
तब अपरिचित चेहरे ही काम आते! 
 
चाहे हो स्टैंड के ऑटो रिक्शा, गाड़ी वाले
चाहे हो रेलवे स्टेशन के कर्मचारी, कुली हॉकर
चाहे हो होटल रेस्टोरेंट, सराय-धर्मशाला वाले
सबके सब अपरिचित चेहरे ही तो होते! 
 
ये अपरिचित चेहरे भले होने चाहिएँ
अपरिचित चेहरों के भले ना होने पर
हम ना घर के और ना घाट के होते! 
 
जब हम यात्रा पर होते तब अकेले
या कुछ अपने रिश्तेदारों के साथ होते! 
 
हमारे साथ कुछ सामान, कुछ पैसे
कुछ महिलाएँ और मासूम बच्चे होते
सब अपरिचित चेहरों के रहमों-करम पे! 
 
मित्र कुटुम्ब भले हो ना हो
अपरिचित चेहरों को भले होने चाहिए
अपरिचित चेहरों से भले की उम्मीद होती! 
 
जब स्कूल कॉलेज पढ़ने को जाती हैं बेटियाँ, 
जब दफ़्तर में काम करने जाती हैं महिलाएँ, 
जब अकेले सफ़र पर होती माँ बहन नारियाँ, 
तब अपरिचित चेहरों का भला होना ज़रूरी है! 
 
अपरिचित चेहरों की भलमनसाहत पहचान है
एक अच्छे इंसान, समाज और संप्रभु राष्ट्र की! 
 
एक अच्छे इंसान को अच्छी शिक्षा गढ़ती
चाहे शिक्षा हो पारिवारिक या अकादमिक
शिक्षा मनुष्य को जन्म से ही मिलने लगती! 
 
किसी अकादमी से कहीं अधिक समाज
मनुष्य को सभ्य, शिक्षित, सहयोगी बनाता! 
 
अधिकांश महामानव औपचारिक नहीं
अनौपचारिक शिक्षा से सत्पुरुष बनते रहे! 
 
सब अपरिचित चेहरे पढ़े लिखे नहीं होते, 
मगर अधिकांश अपरिचित चेहरे भले होते! 
 
अधिकांश मज़दूर किसान अपढ़ पर भले होते
अधिकांश सद्गुरु अकादमिक नहीं स्वाध्यायी होते! 
 
मज़हबी मिशनरी अकादमिक शिक्षा मनुष्य को
अधिकांशतः मतलबी स्वार्थी अतिबौद्धिक बनाती! 
 
पारिवारिक संस्कार, मानवीय व्यवहार, राष्ट्र चरित्र
अपरिचित चेहरों की सदाशयता के लिए ज़रूरी है! 

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