ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
ये काया जो मिली है वो माँ की दी हुई है
ये नाम जो मिला है, वो पिता से पाया है!
मगर ये ज्ञान जो मिला है
वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है,
उन्हें गुरु समझूँ उनसे बहुत हुआ भला है!
ये जीवन जो मिला है
सिर्फ़ माता पिता का दिया नहीं है,
हज़ारों जन मन के आशीर्वचन से
ये जीवन फला फूला है!
गुरु सिर्फ़ वह नहीं होता जो गुर सिखाए,
फ़ीस लेकर गोल्ड मेडल पीएच। डी। दिलाए,
गुरु वह भी है जो चौराहे पर राह दिखाए,
जो आपकी अर्ज़ी को मंज़िल तक पहुँचाए!
गुरु वो भी होता जो सही वक़्त पर सही ज्ञान दे,
अंधकार से निकलने के लिए प्रकाशित मुक़ाम दे!
मैं अपना प्रथम शिक्षा गुरु श्री नागेंद्र नाथ राय
और अंतिम दीक्षा गुरु डॉ.। नामवर सिंह के जैसा
सरकारी सेवा का सद्य: गुरु डाक प्यून बटुक झा
इडी पैकर मुवारिक को बड़े फ़ख़्र से गुरु कहता!
आज विदाई के क्षण ये गीता बटुक झा के नाम,
एक क़ुरान मुवारिक को गुरु दक्षिणा मान देता!
ये जो धन दौलत शोहरतें मिलें नौकरी से
ये आते नहीं हैं किसी विरासत के रास्ते से
ये मिलते दुर्भावना रहित साधु सज्जनों के
आशीर्वाद दुआ भलमनसाहत व रहबरी से!
ये जो हमें मिलता मान गुमान पद प्रतिष्ठा
इसमें नहीं केवल हमारी निजी मेहनत व निष्ठा
अगर परीक्षकों के मन में तनिक खोट आ जाती
तो हमें ये आज मिल नहीं पाती ठकुरसुहाती!
यहाँ हमारा कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं था अपना,
यहाँ जो भी पाया वो था एक बेरोज़गार का सपना!
ये जो मिली थी कुर्सी, वो भी किसी और की मर्ज़ी
ये जो तन पर पहनने लगे अँग्रेज़ी सूट-बूट कपड़े
इन कपड़ों पर ही तो हम सदा रहते रहे हैं अकड़े
पर कपड़े की सिलाई में कुछ छूट देते ग़रीब दर्जी!
अपनी तो औक़ात थी बस हलधर किसान की,
अपनी तो विरासत पगड़ी-धोती आधी रोटी की!
अपनी तो आशा आस्था भक्ति राम कृष्ण की,
अपनी तो संस्कृति है महायति बुद्ध जिन की!
अपना रहबर गुरु नानक गोविन्द व अध्यापक,
अपना मूर्त गुरु आगम निगम गुरुग्रंथ पुस्तक!
हम जनसेवा की क़सम खाकर बनते सरकारी नौकर,
किन्तु जनता को भरमाते हम पद का रौब दिखाकर,
हर सरकारी सेवक समझते हैं ख़ुद को ख़ुदा से ऊपर!
हे सरकारी सेवक डर-डर, अँग्रेज़ियत की अकड़ से डर,
तुम फौज फौलाद नहीं हो मैकाले इरविन चर्चिल की,
तुम ओज औलाद हो भगतसिंह आज़ाद बिस्मिल की!
ये आज़ादी नहीं मिली सिर्फ़ गाँधीगिरी कांग्रेसियत से,
ये आज़ादी मिली है बालक ख़ुदीराम आज़ाद भगत के
लहू की होली से, सुभाष अशफ़ाक़ ऊधम की गोली से,
इन शहीदों को लेखनी से सलामी बंदेमातरम बोली से!
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