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आज क्यों इतना छुईमुई हो गया धर्म मज़हब? 


आज क्यों इतना छुईमुई हो गया धर्म मज़हब? 
क्यों ईश्वर अल्लाह रब हो गया अलग अलग? 
 
आज का आदमी आदमी से करने लगा नफ़रत, 
आदमी आदमी रहा नहीं हो गया फ़िरकापरस्त! 
 
आज ऐसा है माहौल कि चहुँओर ज़हरीला बोल, 
आदमी काफ़िर कसाई होकर बन चुका माखौल! 
 
अपनी मनमानी को ख़ुदा की नाफ़रमानी कहते, 
अब आदमी धर्म मज़हब के नाम शैतानी करते! 
 
अब तो आदमी सच्चरित्र नहीं किताबी होने लगे, 
बात-बात में धर्म-मज़हब-ग्रंथ की दुहाई देने लगे! 
 
अब आदमी को आदमी से लगने लगा भारी डर, 
आज एक दूसरे धर्मावलंबी पर मचाने लगे क़हर! 
 
आज आदमी को आदमी से तनिक प्यार ना रहा, 
करते अपने मन का, कहते हैं ख़ुदा ने ऐसा कहा! 
 
अब लोग हमेशा बातें करने लगे काबा काशी की, 
पर दिल में छुपाए बैठा एक छवि सत्यानाशी की! 
 
अब आदमी ने नाचना गाना मुस्कुराना छोड़ दिया, 
फ़ितरत है कि ख़ुद का ठीकरा ख़ुदा पर फोड़ दिया! 
 
ये आदमी इल्ज़ाम लगाता ख़ुदा पे अपनी ख़ता की, 
अब आसान नहीं ज़िन्दगी व ख़ुशनसीबी आदमी की! 
 
आज आदमी का धर्म पंथ फिर से हथियार हो चुका, 
आलम ऐसा है कि दोस्त का घर दोस्त ने ही फूँका! 

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