यही नवरात्रि दसहरा दुर्गापूजा विजयादशमी की शुभकामना मेरी
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Oct 2025 (अंक: 286, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
यही विजयादशमी की शुभकामना
दूसरों की आस्था पर चोट नहीं पहुँचाना
अपनी आस्था की बुराइयों में सुधार लाना
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया की कामना!
यही विजयादशमी की शुभकामना
करनी चाहिए देवी माता पिता गुरु की उपासना
यही साधना देवता ईश्वर परमात्मा की है आराधना
वंदना करना ‘माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्या’ की सोच रखना!
अहंकारी दुराचारी मन ही रावण का होना
अहंकार पर विजय पाना ही है रामत्व को पाना
राम प्रकट होते सर्वत्र, नहीं केवल अवधपुरी जनपद में
रावण का जन्म होता सोने की लंका व हमारे मन मद में!
जब ईर्ष्या द्वेष जलन हो मानव के मन में
तो हमेशा आग लगी होती हृदय और अंतर्मन में
तब फलदायी नहीं होता है ध्यान लगाना भगवन में
मन ही मन ख़ुश होना होता है राम कृष्ण के रमन में!
चेहरे में जब अहिंसा करुणा दया भाव उग आए
तो तुम राम कृष्ण वर्धमान महावीर शाक्य मुनि गौतम हो
चेहरे में जब दाढ़ उगे तो महामद महादंभ छल छंद अहं हो
रम्भ करम्भ रावण कंस कौरव सबके मन में उगते दुष्ट दुर्जन हो!
नारी तभी पूज्य होती जब पवित्र माँ बहन बेटी रूपिणी होती
जब माँ सास बनकर माँ का अहसास दे वधू को तो नारी देवी होती
जब पुत्रवधू सास श्वसुर के लिए पुत्री बन उनका पुत्र नहीं छीने तो देवी
नारी पति की सहचरी हो जिए सिर्फ़ पति की सम्पत्ति नहीं गिने तो देवी!
यही विजयादशमी की शुभकामना
कि मन हो नहीं हो किसी के प्रति दुर्भावना
कि दिल में हो सबके लिए प्रेम दया दुआ मंगल भावना
राग द्वेष अहंकार बलात्कार वृति को मन में नहीं आने देना!
यही नवरात्रि दसहरा दुर्गापूजा की शुभकामना मेरी
कि सभी जीव जंतु की दिवा रात्रि हो चैन सुकून भरी
कि किसी का कोई बने नहीं शत्रु दुश्मन घाती अरि बैरी
कि हर धर्म मत मज़हब में मानवता की हिफ़ाज़त है ज़रूरी!
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