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चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार

 

जब देश, धर्म ख़तरे में पड़ा था, भारत जाति
और कठोर वर्ण व्यवस्था में जकड़ा-जकड़ा था, 
जब आक्रांता सीमा के अंदर घुस आ खड़ा था, 
निपट अकेला एक वर्ग राजपूत ही लड़ रहा था, 
ले हाथ में हथियार, कोई भी नहीं था मददगार! 
 
राजपूतों में भेद बड़ा था, कोई छोटा, कोई बड़ा था, 
सब एक दूसरे को मरने-मारने को तैयार अड़ा था, 
जाति भेद बड़ा गहरा था, सबमें फूट भरी पड़ी थी, 
ब्राह्मण पोथी में सिमटा, किसान खेत जोत रहा था, 
दलित-मजदूरों के हाथ में सिर्फ़ हाशिया-फावड़ा था! 
 
प्रण के पक्के पौराणिक क्षत्रियों का हो चुका था संहार, 
चहुँ ओर आंभी और जयचन्द देश पर कर रहा था वार, 
ऐसी ही घड़ी थी, जब देश पर बड़ी विपदा आन पड़ी थी, 
आक्रांता आता था लेकर, मुट्ठी भर सैनिक घुड़सवार! 
लूटकर ले जाता था बड़े-बड़े मंदिर और राज परिवार! 
 
रानी और राजकुमारियाँ देह की पवित्रता बचाने में, 
जीते जी अग्नि में जलकर जौहर करती या हो जाती 
आक्रांताओं की सेना के हाथों, बलात्कार का शिकार! 
गांव-नगर, नर-नारियों में भी मच गया था हाहाकार, 
एक राजपूत छोड़कर, सबके सब हो चुके थे बेहथियार! 
 
राम कृष्ण के वंशज हो गए थे बुद्ध के अहिंसक
ना कोई कर्ण पैदा हो रहा था, जाति को दुत्कार, 
हथियार उठाने वाला और शापित होकर लड़ने वाला, 
मैत्री की आन पर प्राण को न्योछावर करने वाला! 
चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं था सलाहकार, 
हर राजे में थी लूट, कूट और फूट का ही कुविचार! 
 
कहीं अकेला भीम लड़ रहा, कहीं चौहान मर रहा, 
कहीं कर्ण सिंह कलचुरी का वंशज, कलसुरी और
कलाल बनकर कर रहा था मदिरा का व्यापार! 
राणा सांगा बाबर से और राणा प्रताप अकबर से
लड़ रहा था अकेला, अपनों से ही धोखा खाकर! 
 
इतने में महाराष्ट्र के एक जाधव वीर की और
बिहार के गोविन्द सिंह सोढ़ी की फड़की भुजाएँ, 
शिवाजी ने महावीर राजपूत की दावेदारी करके, 
दशमेश गुरु गोविन्द ने सबों को सिंह बना कर
कहा “रंगरेज़ गुरु का बेटा, कलाल गुरु का लाल!”
 
जो भी जन्मे भारत की माटी में, मूरत एक समान, 
ना हिन्दू ना मुसलमान, सभी वीर सिंह की संतान! 
धरो कृपाण, देश धर्म की रक्षा में न्योछावर हो जान, 
बनो गुरु गोविंद के लाल, वीर शिवाजी जैसा महान, 
आज़ाद, भगत, अश्फ़ाकुल्ला हैं देश की अमृत संतान! 

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