पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पिता जो बिन कहे सब कुछ कहे
उसे पिता कहते हैं!
माता जो कभी चुप ना रहे कहे
मुँह गोहे माँ कहते हैं!
पिता जो रोए बिना आवाज़ के
मुस्कुराए मन ही मन
उसे ही पिता कहते हैं!
माता कभी रोती नहीं सामने
सिर्फ़ उदास हो लेती
उसे ही माँ कहते हैं!
पिता सोए बच्चों को निहार के
आश्वस्त हो लेते हैं!
माँ बार-बार निहारती बच्चों को
बलैयाँ लेती कुछ ना हो!
पिता हमेशा ख़्वाब देखते भोली-सी
एक पुत्रवधू को लाने का!
माता ख़्वाब सँजोए होती बेटी का
एक बेटा-सा गुड्डा पाने का!
पिता ने जैसे देखा अपने पिता को
वैसे ही देखते हैं पुत्र को भी!
माता को जैसा गुड्डा मिला
वैसा ही तलाशती बेटी के लिए भी!
पिता को वैसी चाहिए वधू
जिसमें दिखे अपनी माँ जैसी ममता,
तब कहीं बेटे के लिए आश्वस्त होता!
माँ को चाहिए चाँद सी वधू
माँ को बचपन से बुढ़ापे तक पसंद है
चाँद-चाँदनी सा गुड्डा-गुड़िया!
पिता की हमेशा से ही चाहत रही
अपनी माँ-सी प्यारी एक पुत्रवधू हो
और अपने पिता-सा जमाई!
जिसमें आश्वस्ति-विश्वसनीयता हो
ख़ुशहाल ज़िन्दगी जीने की!
पिता सदा माता-पिता के साथ रहते,
माता-पिता के बाद अगली पीढ़ी में
आजीवन तलाशते अपने माता-पिता!
कोई पिता छोड़ता नहीं माँ पिता का घर,
जबकि माँ अपने माँ-पिता को त्याग कर
बसा लेती नया घर मगर भूलती नहीं
गुड्डा-गुड़िया का खेल, चाँद चाहिए की माँग
बनी रहती लाड़ली अपने माँ पिता की!
मेरे पिता मुझे बाबू, बाबू कहकर चले गए
और माँ गुड़िया, पुतली बुदबुदा के गई!
मैं बाबू का बाबू हूँ, मेरी बहन माँ की गुड़िया,
देशी रिवाज़ है पिता व पुत्र को बाबू कहना!
जबकि बेटी गुड़िया, पुतली, परी ही होती
माँ मासूम होती गुड़ियों सी, गुड्डा-गुड्डी खेली
गुड्डा-गुड़िया जनती, उससे घुल-मिल जाती
और उसकी याद में ही आँखें मूँद लेती!
पिता को चाहिए अपने माता-पिता जैसा
बहू-बेटा, बेटी-जमाता अन्यथा रहते गुमसुम सा!
गोहे=प्यार दे देखे (आँचलिक शब्द है)
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