अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

वही तो ईश्वर है 

 

आना जाना जिसपर निर्भर 
वही तो ईश्वर है 
अमर होने की सबकी तमन्ना
पर निश्चित जहाँ मृत्यु डर 
वही तो ईश्वर है 
जन्म देनेवाली जोड़ी जो चाहती 
वो नहीं हो पाता 
चाह नहीं पर जो हो जाता 
वही तो ईश्वर है 
आनेवाला जो चाहता वो नहीं होता 
जो नहीं चाहता वो हो जाता
वही तो ईश्वर है 
तुम चाहते बेटा 
पर वो आ जाती बेटी बनकर 
वही तो ईश्वर है 
कोई नहीं चाहता निर्धन होना 
पर जन्म पा लेता निर्धन के घर 
वही तो ईश्वर है 
सभी चाहते स्वरूप सुन्दर 
पर कुरूप हो जन्म लेता 
वही तो ईश्वर है 
एक मानव दूसरे मानव सा नहीं होता 
एक जीव दूसरे जीव का गुण नहीं पाता 
कोई जीव सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता
वही तो ईश्वर है 
जिसने जीव जंतु अनेक बनाये 
वह ईश्वर एक है
सब में भिन्न-भिन्न रूप से समाये 
मानव को बुद्धि दी पर उड़ने की शक्ति नहीं 
बिल्ली प्रजाति में नोच-खसोट काटने की प्रवृत्ति
पर काया मिली नहीं गैंडा घड़ियाल हाथी की 
चीता को तेज चाल पर हिरण की चौकड़ी नहीं
जिसे जितना चाहिए उतना उपलब्ध उसके भीतर 
वही तो ईश्वर है
ये जैव विविधता व गुणधर्म भिन्नता से 
सृष्टि रक्षा और निरंतरता जो बनाए रखे
वही तो ईश्वर है 
जब क़िस्म-क़िस्म के बीज धरा से 
एक ही उर्वरा शक्ति पाकर
अलग-अलग पादप का रूप निखार ले 
वही तो ईश्वर है 
क्षिति जल पावक गगन समीर 
ये चराचर जिनपर निर्भर 
वही तो ईश्वर है 
जहाँ ज्ञान विज्ञान मूक-बधिर है 
वही ईश्वर मुखर प्रखर है 
जीव जंतु प्रकृति के अंदर बैठा जो कारीगर 
वही ईश्वर अजर-अमर है! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं