अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा

 

दया धर्म का मूल है, दया ही जीवन का सहारा, 
जिसके दिल में दया नहीं, वो भटकते मारा-मारा! 
 
दयावान भगवान राम थे, प्रेम है कृष्ण को प्यारा, 
बुद्ध करुणा की मूर्ति, महावीर का अहिंसा नारा! 
 
ईसा का धर्म क्षमा था, नबी का मत था भाईचारा, 
सतगुरु नानक गोविंद सर्ववंशदानी माँ का दुलारा! 
 
रंग वर्ण बनते हैं धूप छाँव से, सब रंग है न्यारा, 
रंग वर्ण नस्ल मत मज़हब से करो नहीं बँटवारा! 
 
आदमी लाल सफ़ेद हरा रंग को कहते हैं तेरा मेरा, 
सूट बूट टाई कुर्ता पाजामा टोपी पहन चलते इतरा! 
 
ख़ाली हाथ आया दुनिया में, रो रोकर हाल था बुरा, 
ईश्वर अल्लाह गुहार के पूर्व, जाना नहीं था ककहरा! 
 
पता नहीं किसने कहा देव औ’ ख़ुदा को पसंद बकरा, 
मंत्र और कलमा पढ़कर रक्त से लाल कर देता धरा! 
 
क्या शक्तिशाली ईश्वर का घर मंदिर मस्जिद देहरा? 
फिर क्यों पहरा? क्यों विधर्मी धक्के से गिरते भरभरा? 
 
धर्म नहीं किसी धर्मग्रंथ किताब में, धर्म नहीं जयकारा, 
धर्म नहीं पूजा नमाज़, धर्म वही जिसे ज़ेहन में उतारा! 
 
ईश्वर अल्लाह ख़ुदा क्या? जिन्हें आदमी ने ख़ुद सँवारा, 
आदमी अगर गूँगा होता तो कैसे कोई रब होता हमारा? 
 
छोड़ो ईश्वर अल्लाह रब का कलरव, सब आदमी से हारा, 
ईश्वर अल्लाह को गुहार कर आदमी ने आदमी को मारा! 
 
आदमी हो आदमियत धारण करो, बनो नहीं पशु आवारा, 
मानव हो, मानवता ही सबसे बड़ा गुण धर्म है जग सारा! 
 
राम कृष्ण बुद्ध महावीर ईसा नबी गुरु हेतु बनो न हत्यारा, 
सारे आराध्य को साथ रखो दिल अंदर बनो सबके हरकारा! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं