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बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है

स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
स्व में स्थित हो जाना स्वास्थ्य पाना है
स्वस्थ नहीं होना है अस्वस्थ रुग्ण 
उद्विग्न मतिछिन्न उदासीन दुःखी होना! 
 
बुद्ध ने चार आर्य सत्य कहे 
पहला आर्य सत्य है 
जीवन में दुःख है
दुःख है जन्म जरा व्याधि मृत्यु 
रोग शोक ग़म ग़रीबी बर्बादी! 
 
दूसरा आर्य सत्य है 
दुःख का कारण है 
अगर जीवन में दुःख है 
तो दुःख होने का कारण होगा ही! 
 
दुःख का कारण है 
इच्छा लालसा तृष्णा वासना कामना
दुःख की उत्पत्ति तृष्णा से होती
दमित वासना से पुनर्जन्म होता
पुनर्जन्म से पुनः पुनः 
सुख कामना वासना की प्राप्ति हो जाती 
जो पुनः पुनः जन्म जन्मांतर में भटकाती! 
 
तीसरा आर्य सत्य है 
दुःख के कारण का निदान
अगर दुःख का कारण है
तो कारण का अवश्य ही निदान समाधान होगा! 
 
निदान है इच्छा तृष्णा वासना कामना से 
मुक्ति हेतु निष्काम भाव को प्राप्त करना! 
 
चौथा आर्य सत्य है 
दुःख के कारण का निदान निवारणार्थ मार्ग अनुसरण
दुःख के कारण को निदान से निवारण कर 
निर्वाण पाना जीवन के दुखों से मुक्त हो जाना है! 
 
इच्छा तृष्णा वासना कामना के पीछे भागना छोड़कर 
स्व में स्थित होना स्वस्थ हो जाना 
आत्म दीपो भव होकर स्व को पा जाना 
स्व चित्त में निश्चिंत निर्विकार निर्लिप्त निर्वाण पाना! 
  
जिसके लिए ज़रूरी अष्टांगिक मार्ग पर चलना
ये मार्ग है सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, 
सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, 
सम्यक प्रयत्न, सम्यक विचार व सम्यक ध्यान
और अंततः जन्म जन्मांतर से मुक्त हो जाना! 
 
भगवान राम के मार्ग पर चलकर 
इन मर्यादित मध्यम मार्ग को पा सकते, 
कृष्ण के मार्ग पर चलकर निष्काम कर्म कर सकते, 
मगर जन्म मरण अवतरण से मुक्त नहीं हो सकते! 
 
बुद्ध के मार्ग में चलकर बुद्धत्व पा सकते, 
दीये की लौ की तरह आप्लावित सूझ बुझकर 
जन्म मरण अवतरण से मुक्ति पा जा सकते! 

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