अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना 

मैं चाहता हूँ
एक ऐसी कविता लिखना
जिसमें परम्परा गान न हो
किसी संस्कृति पुरुष का नाम न हो
जो पूरी तरह से हो सेकुलर
और समकालीन भी! 
 
मैं चाहता हूँ
एक वैसी कविता लिखना
जिसमें चिंता हो आज के 
वृद्ध-उपेक्षित-सेवानिवृत्त माता-पिता की
जिसे पढ़ूँगा उस सेमिनार में
कि कितने ज़रूरी/कितने त्याज्य हैं
आज के वरिष्ठ नागरिक! 
 
मैं लिखूँगा नहीं
मातृ देवो भव:/पितृ देवो भव: जैसे
आउट डेटेड स्लोगन
बल्कि लिखूँगा माँ मम्मी/पिता डैड हो गए! 
 
मैं हरगिज़ नहीं लिखूँगा
कि मातृ इच्छा/पितृ आदेश से
किसी पुत्र ने त्याग दिया था घर-द्वार-राजपाट
कि अंधे माँ-पिता को कंधे पर लेकर
तीर्थ कराता था एक बेटा! 
 
कि किसी पुत्र ने पिता का वार्धक्य लेकर
असमय वृद्ध हो जाना स्वीकार किया था! 
 
कि कोई बेटा पितृ सुख-भोग के ख़ातिर
शपथ लेकर आजीवन कुँवारा रह गया था! 
 
मैं लिखूँगा कि कैसे आज के बेटे 
नौकरी की चाह में नौकरीशुदा बाप को 
गला घोंटकर मार देते या बाध्य कर देते मरने को! 
 
कि बीबी के कहने पर बूढ़ी माँ को कैसे दुत्कारते
मुझे मालूम नहीं अनुकंपा बहाली के लिए
पिता की हत्या और पत्नी की ख़ुशी के लिए
माँ को थप्पड़ मारना कहाँ की परम्परा है! 
 
या वृद्ध लाचार माँ-बाप को 
वृद्धाश्रम में डाल देना कहाँ का धर्म है! 
 
कि वर्जित है वह ज्ञान-
‘गुरु ईश्वर की मूर्ति! 
पिता ब्रह्मा का रुप/माता धरती स्वरुपा! 
और भाई-बहन अपनी ही मूर्ति है . . .!’ 
ये पढ़ा नहीं मैंने मनुस्मृति में!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं