ब्राह्मण कौन?
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
क्या जीव ब्राह्मण है?
‘जीवो ब्राह्मण इति चेत्तन्न।’
नहीं!
भूत-भविष्य-वर्तमान के
अनेक देहों के जीव का
एक ही रूप/अरूप होने से
जीव ब्राह्मण नहीं है!
तब क्या देह ब्राह्मण है?
‘तर्हि देहो ब्राह्मण इति चेत्तन्न?’
नहीं!
चाण्डाल आदि सभी मनुष्यों के
पंचभौतिक देह एक रूप होने से!
जरा-मरण/धर्म-अधर्म/आधि-व्याधि
सभी देहों में साम्य दिखने से!
ब्राह्मण के श्वेत, क्षत्रिय के लाल
वैश्य के पीत और शूद्र के कृष्ण
रंग के नहीं होने से!
पिता-अग्रजों के अग्नि दाह संस्कार से!
पुत्रादि को ब्रह्म हत्या नहीं लगने से!
देह ब्राह्मण नहीं है!
तो क्या जाति ब्राह्मण है?
‘तर्हि जाति ब्राह्मण इति चेत्तन्न।’
नहीं!
अब्राह्मण जातियों में उत्पन्न ब्रह्मर्षि अनेक हैं—
‘ऋष्यश्रृंगो मृग्यां, कौशिक: कुशात्,
गौतम शशपृष्ठे, वाल्मीको वल्मीकात्,
व्यास: कैवर्त्तकन्यायाम्, पराशरश्चाण्डालीगर्भोत्पन्न,
वशिष्ठो वेश्यानां—
तेषां जाति बिनापि सम्यग्ज्ञानविशेषाद्
ब्राह्मणत्म्त्यं स्वीक्रियते—!”
अस्तु जाति ब्राह्मण नहीं है!
तो क्या ज्ञान ब्राह्मण है?
‘तर्हि ज्ञानं ब्राह्मण इति चेत्तन्न।’
नहीं!
क्षत्रिय वैश्य आदि भी
परमार्थदर्शी विद्वान बहुत हैं!
अस्तु ज्ञान ब्राह्मण नहीं है!
तब क्या कर्म ब्राह्मण है?
‘तर्हि कर्म ब्राह्मण इति चेत्तन्न।’
नहीं!
सभी प्राणी प्रारब्ध संचित
और आगामी कर्मों में साधर्म्य दिखने से
कर्म प्रेरित क्रिया करते हैं!
अस्तु कर्म ब्राह्मण नहीं है!
क्या धार्मिक ब्राह्मण होता है?
‘तर्हि धार्मिको ब्राह्मण इति चेत्तन्न।’
नहीं!
क्षत्रिय-वैश्य आदि स्वर्ण दान करते हैं
अस्तु धार्मिक ब्राह्मण नहीं है!
तो फिर ब्राह्मण नामधारी कौन है?
‘तर्हि को वा ब्राह्मणो नाम?’
जो अद्वितीय, जाति-क्रिया-गुणहीन,
सर्व दोषरहित, सत्य ज्ञानानन्दानन्त-स्वरूप
स्वयं निर्विकल्प, संपूर्ण कल्याणधारक,
सर्वान्तर्यामीरूप, आकाशवद्व्याप्त, अखण्डानन्द
सर्वभाव, अप्रमेय, अनुभव मात्र से ज्ञातव्य,
प्रत्यक्ष प्रकाशित परमात्मा का साक्षात्कार करके
कृतार्थ भाव से राग-द्वेष रहित, शमदमादि युक्त
भाव-मात्सर्य-तृष्णा-आशा-मोहादि रहित दंभ-अहंकार
आदि से असंयुक्त मनवाला है
वही ब्राह्मण है!
अन्यथा ब्राह्मणत्व की सिद्धि नहीं है!
(बज्रसूचि उपनिषद)
अस्तु;
जाति से ना कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय
वैश्य, शूद्र और म्लेच्छ जाति होता
बल्कि गुण, कर्म से यह भेद हुआ है
‘न जात्या ब्राह्मणश्चात्र/क्षत्रियो वैश्यएवच न शूद्रो
न च वै म्लेच्छो/भेदिता गुण कर्मभि॥’ (शुक्र नीति)
अधर्माचरण से उत्तम भी अधम
और धर्माचार से निम्न वर्ण भी
उच्च वर्ण का हो जाता है
न कुल ना जाति, कर्म से ब्राह्मण होता
चाण्डाल भी सुकर्म से ब्राह्मण हो जाता!
जाति नहीं, गुण कल्याणकर है
जो धर्मार्थी-परोपकारी हैं और
मुख पर दिन-रात कान्ति हो
विद्वान उसे ही ब्राह्मण कहते!
‘न कुलेन न जात्या वा, /क्रियाभिब्रहिम्णो भवेत्।
चाण्डालोअपि हि वृत्तस्यो, /ब्राह्मण: स युधिष्ठिर॥
न जातिर्दृश्यते राजन!, /गुणा: कल्याण-कारका:।
जीवितं यस्य धर्मार्थं, /परार्थे यस्य जीवितम्॥
अहोरात्रं चरेकान्तिं, /तं देवा: ब्राह्मणं विंदु:॥(भाग)
गणिका के गर्भ से उत्पन्न वशिष्ठ महामुनि
उनकी जाति ब्राह्मण तप संस्कार के कारण थी
जाति से व्यास कैवर्त पराशर चाण्डाल थे
ऐसे अन्य बहुत लोग विप्र बनने के पूर्व अद्विज थे!
'गणिकगर्भ संभूतो, वशिष्ठश्च महामुनि:।
तपसा ब्राह्मणो जात:, संस्कारस्तत्र कारणम्॥
जातो व्यासस्तु कैवर्त्या:श्वपाक्यास्तु पराशर:।
वहवोअन्येअपि विप्रत्वमं, प्राप्ता: पूर्वं येअद्विजा:॥(महा)
अस्तु, शब्द ही प्रमाण है ऐसा हो जाने का
अब भी समय है जाति भेद मिटाने का
द्विज से अंत्यज तक एकमेव हो जाने का!
जब गणिका का बेटा ब्रह्मर्षि वशिष्ठ था
फिर वशिष्ठ का बेटा कैसे विशिष्ट है?
दास-स्वपच-कोल-भंगी कैसे अवशिष्ट है?
ब्रह्म अगर ईश्वर है ब्रह्मा है स्रष्टा
तो ब्रह्मा का बेटा हर कोई ब्राह्मण है!
अगर ज्ञानार्जन से ब्राह्मण होता
तो ब्रह्म को जो जान ले वह ब्राह्मण है!
फिर अन्य ज्ञान को उपलब्ध वर्ण जाति
कैसे हो गयी अब्राह्मण जाति?
और ब्रह्म से अनजान जनमना ब्राह्मण
कैसे हो गयी ब्राह्मण जाति?
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