मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित,
मानव कभी नहीं रहा है अन्य चौपाये पशुओं की तरह एक जाति,
मानव का, विचारधारा की वजह से अलग हो जाता है व्यक्तित्व,
मानव कभी एक वंशमूल की वजह से एक न था, एक नहीं अतीत!
मानव एक वंश वर्ण जाति उपाधि की वजह से कभी एक नहीं होता,
देव मानव दैत्य दानव का वंश एक ही था और कश्यप सबके पिता,
मगर विचार की वजह से देव-मानव और दैत्य-दानव में नहीं एकता,
मानवीय विचारधारा की लड़ाई में दानव मानव से कभी नहीं जीता!
राम कश्यप ऋषि के वंशधर थे, रावण भी वंशज ऋषि पुलस्त्य के,
दोनों ही श्रेष्ठ आर्य कुल के, राम भगवान हो गए, रावण राक्षस थे,
कृष्ण कंश शिशुपाल तीनों एक ही यदुवंश के, एक ही वर्ण जाति के,
मगर कृष्ण अवतार बन गए कंस असुर शिशुपाल दुर्जन विचार से!
एक ही ब्राह्मण पिता से कुबेर रावण कुंभकर्ण व विभीषण जन्मे थे,
कुबेर यक्ष बन गए, रावण कुंभकर्ण राक्षस, विभीषण ब्राह्मण कर्म से,
एक घराने में कौरव पाण्डव का जन्म हुआ, सभी क्षत्रिय एक वंश के,
मगर पाँच पाण्डव देवअंशी, दुर्योधन कलि, दुशासन घृणित व्यवहार से!
ना जाने क्यों आज मानव का भाव विचार संस्कार क्षण में बदल रहा,
लोकतंत्र में दल बदलकर दैत्य दानव मानव एक दूसरे को ही छल रहा,
मानव दानव नेता मिलकर निज स्वार्थ के लिए मानवता को मसल रहा,
भिन्न विचार का ये कैसा गठबंधन जो देश की छाती पर मूँग दल रहा!
आज लोकतंत्री व्यवस्था सनातन की अच्छाई को कुचलने को मचल रहा,
जातिवाद मज़हबपरस्ती ऐसा है कि सत्य अहिंसा दया धर्म को कुचल रहा,
दुष्ट दुराचारी भ्रष्टाचारी अनपढ़ जाहिल के हाथ में लोकतंत्र हो निर्बल रहा,
देश धर्म संस्कृति बचाने के लिए किसी समस्या का हल नहीं निकल रहा!
अब मानव का व्यक्तित्व दरक रहा, एक जाति के लोगों में नहीं फ़र्क़ रहा,
मानव जीवन जातिवाद व मज़हबी फ़िरकापरस्ती की वजह से हो नरक रहा,
हे मानव अपने में सुधार करो जाति के कारण मानव का न तिरस्कार करो,
मानवता ही मानव का प्रथम धर्म है मानवतावादी बनकर नेक विचार करो!
हे मानव सामाजिक राजनीतिक धार्मिक जीवन में तर्क का महत्त्व समझो,
वेशभूषा भाषा धार्मिक चिह्न की वजह से गिरोहबंद होके न बेड़ा ग़र्क़ करो,
हर मसला का हल चाहिए तो तर्क वितर्क से न्याय के पक्ष में फ़ैसला लो,
मानव को मानव समझो धर्म पंथ वर्ण जाति के बीच ना कोई फ़ासला हो!
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