अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित 

 

मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित, 
मानव कभी नहीं रहा है अन्य चौपाये पशुओं की तरह एक जाति, 
मानव का, विचारधारा की वजह से अलग हो जाता है व्यक्तित्व, 
मानव कभी एक वंशमूल की वजह से एक न था, एक नहीं अतीत! 
 
मानव एक वंश वर्ण जाति उपाधि की वजह से कभी एक नहीं होता, 
देव मानव दैत्य दानव का वंश एक ही था और कश्यप सबके पिता, 
मगर विचार की वजह से देव-मानव और दैत्य-दानव में नहीं एकता, 
मानवीय विचारधारा की लड़ाई में दानव मानव से कभी नहीं जीता! 
 
राम कश्यप ऋषि के वंशधर थे, रावण भी वंशज ऋषि पुलस्त्य के, 
दोनों ही श्रेष्ठ आर्य कुल के, राम भगवान हो गए, रावण राक्षस थे, 
कृष्ण कंश शिशुपाल तीनों एक ही यदुवंश के, एक ही वर्ण जाति के, 
मगर कृष्ण अवतार बन गए कंस असुर शिशुपाल दुर्जन विचार से! 
 
एक ही ब्राह्मण पिता से कुबेर रावण कुंभकर्ण व विभीषण जन्मे थे, 
कुबेर यक्ष बन गए, रावण कुंभकर्ण राक्षस, विभीषण ब्राह्मण कर्म से, 
एक घराने में कौरव पाण्डव का जन्म हुआ, सभी क्षत्रिय एक वंश के, 
मगर पाँच पाण्डव देवअंशी, दुर्योधन कलि, दुशासन घृणित व्यवहार से! 
 
ना जाने क्यों आज मानव का भाव विचार संस्कार क्षण में बदल रहा, 
लोकतंत्र में दल बदलकर दैत्य दानव मानव एक दूसरे को ही छल रहा, 
मानव दानव नेता मिलकर निज स्वार्थ के लिए मानवता को मसल रहा, 
भिन्न विचार का ये कैसा गठबंधन जो देश की छाती पर मूँग दल रहा! 
 
आज लोकतंत्री व्यवस्था सनातन की अच्छाई को कुचलने को मचल रहा, 
जातिवाद मज़हबपरस्ती ऐसा है कि सत्य अहिंसा दया धर्म को कुचल रहा, 
दुष्ट दुराचारी भ्रष्टाचारी अनपढ़ जाहिल के हाथ में लोकतंत्र हो निर्बल रहा, 
देश धर्म संस्कृति बचाने के लिए किसी समस्या का हल नहीं निकल रहा! 
 
अब मानव का व्यक्तित्व दरक रहा, एक जाति के लोगों में नहीं फ़र्क़ रहा, 
मानव जीवन जातिवाद व मज़हबी फ़िरकापरस्ती की वजह से हो नरक रहा, 
हे मानव अपने में सुधार करो जाति के कारण मानव का न तिरस्कार करो, 
मानवता ही मानव का प्रथम धर्म है मानवतावादी बनकर नेक विचार करो! 
 
हे मानव सामाजिक राजनीतिक धार्मिक जीवन में तर्क का महत्त्व समझो, 
वेशभूषा भाषा धार्मिक चिह्न की वजह से गिरोहबंद होके न बेड़ा ग़र्क़ करो, 
हर मसला का हल चाहिए तो तर्क वितर्क से न्याय के पक्ष में फ़ैसला लो, 
मानव को मानव समझो धर्म पंथ वर्ण जाति के बीच ना कोई फ़ासला हो! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं