अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू

हिन्दू होना
जीवन की पहली
और आख़िरी
सच्चाई हो सकती
बीच में गीता को छूकर
कोर्ट में गवाही
देने जैसी स्थिति! 
 
सदियों से गीता से
पहले गीतों की घूँटी में
पिलाती रही माँ
माँ की माँ/पिता की माँ
“सत्यं ब्रूयात्प्रियं, ब्रूयान्न
ब्रूयात्सत्यमप्रियम् . . .” की
आचरण संहिता
जीवन को बचाने के लिए
आवश्यक है कुछ झूठ, 
मगर उससे अधिक ज़रूरी है
मरे का पोस्टमार्टम भी
ताकि हो ना जाए झूठ सच पर हावी! 
 
गीता से पहले
श्रुति-स्मृति-वेद-
अवेस्ता-ए-जिंद-उपनिषद-
पुराण-रामायण-महाभारत
 
गीता के बाद त्रिपिटक-एंजिल-बाइबल
गुरुग्रंथ आदि की अच्छाई को
बचाने में गीता छू, क़सम खा, 
घूँट पी लेना हिन्दू होना ही है ना! 
 
पर ये सच है कि दुनिया भर के
तमाम धर्म ग्रंथों को कंधे पर
ढोने का दम भरते जो हिन्दू
वे श्मशान तक जाते
अपने ही कंधों के बल बूते पर! 
 
हिन्दू कंधा देते नहीं हिन्दू को
हिन्दू होने की शर्त पर
हिन्दू को कंधा देते बेटे पोते
जाति बिरादरी रिश्ते नाते! 
 
हिन्दू में एकता नहीं चिता तक
हिन्दू एक मिथक है ऐसा
जो जन्म से पहले
और अंतिम संस्कार के बाद
अदृश्य रिश्ते में बँधे होते! 
मगर बीच में जीवन भर
ऊँच–नीच जाति में बँटे होते! 
 
जन्म के बाद मृत्यु के पूर्व
कोर्ट कैट में गीता छूकर
गवाही देने जैसी स्थिति हिन्दू, 
 
कि जन्म पुनर्जन्म के बीच
कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं