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जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू

हिन्दू होना
जीवन की पहली
और आख़िरी
सच्चाई हो सकती
बीच में गीता को छूकर
कोर्ट में गवाही
देने जैसी स्थिति! 
 
सदियों से गीता से
पहले गीतों की घूँटी में
पिलाती रही माँ
माँ की माँ/पिता की माँ
“सत्यं ब्रूयात्प्रियं, ब्रूयान्न
ब्रूयात्सत्यमप्रियम् . . .” की
आचरण संहिता
जीवन को बचाने के लिए
आवश्यक है कुछ झूठ, 
मगर उससे अधिक ज़रूरी है
मरे का पोस्टमार्टम भी
ताकि हो ना जाए झूठ सच पर हावी! 
 
गीता से पहले
श्रुति-स्मृति-वेद-
अवेस्ता-ए-जिंद-उपनिषद-
पुराण-रामायण-महाभारत
 
गीता के बाद त्रिपिटक-एंजिल-बाइबल
गुरुग्रंथ आदि की अच्छाई को
बचाने में गीता छू, क़सम खा, 
घूँट पी लेना हिन्दू होना ही है ना! 
 
पर ये सच है कि दुनिया भर के
तमाम धर्म ग्रंथों को कंधे पर
ढोने का दम भरते जो हिन्दू
वे श्मशान तक जाते
अपने ही कंधों के बल बूते पर! 
 
हिन्दू कंधा देते नहीं हिन्दू को
हिन्दू होने की शर्त पर
हिन्दू को कंधा देते बेटे पोते
जाति बिरादरी रिश्ते नाते! 
 
हिन्दू में एकता नहीं चिता तक
हिन्दू एक मिथक है ऐसा
जो जन्म से पहले
और अंतिम संस्कार के बाद
अदृश्य रिश्ते में बँधे होते! 
मगर बीच में जीवन भर
ऊँच–नीच जाति में बँटे होते! 
 
जन्म के बाद मृत्यु के पूर्व
कोर्ट कैट में गीता छूकर
गवाही देने जैसी स्थिति हिन्दू, 
 
कि जन्म पुनर्जन्म के बीच
कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू! 

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