माँ
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
माँ! माँ तुम कहाँ हो?
माँ तुम यहाँ हो! माँ तुम वहाँ हो!
माँ तुम ज़मीं में हो या आसमाँ में हो
माँ तुम चाहे जहाँ हो तुझमें ये सारा जहाँ
माँ तुम तो सारा जहाँ हो!
माँ तुझमें राम है/माँ तुझमें श्याम है
माँ तुझसे ही मेरा अस्तित्व व नाम है!
माँ तुम शतरुपा हो! माँ तुम श्रद्धा हो!
माँ कौशल्या देवकी यशोदा महामाया हो!
माँ तुमने जना सारे अवतार भगवान को!
माँ तुम्ही हो सीता/तुम्ही रुक्मिणी राधा!
माँ तुम्ही हो बहन शांता तुम्ही सुभद्रा हो!
माँ तुम मेरे मामा की कलाई की शान हो!
माँ तुम वेद की ऋचा/ब्रह्मदेव की वाणी
माँ तुम विनायक की बुद्धि मती ज्ञान श्री
वैभव सम्पत्ति यश कृति वीरमाता की मूर्ति
अर्जुन की भार्या देवी सुभद्रा के समान हो!
माँ तुमने जना सारे इन्सान को
माँ तुमसे ही बना वो सारे भगवान जो!
माँ तुम राम-कृष्ण-गौतम-महावीर-दसगुरु
अवतार-तीर्थंकर-पैगंबर-पीर-फ़क़ीर
प्रताप-शिवा-भगतसिंह-सुखदेव-राजगुरु
बिस्मिल-अशफ़ाक-उधमसिंह-गाँधी-सुभाष
कबीर-तुलसी-जायसी-जयशंकर-दिनकर
मैथिलीशरण मीरा निराला के महाप्राण हो!
माँ तुम ईश्वर की अर्चना जगत की वन्दना
ऋषि मुनि साधु सज्जन सपूतों की साधना
पवित्रता में धूप दीप पुष्प पूजा अराधना हो!
माँ तुम ने जन्म दिया सबको
माँ तुम भगवानों की भगवान हो!
पर ये तुलना भी सच्ची नहीं है
भगवान भी माँ से अच्छा नहीं है!
माँ तुम माँ हो! माँ हो केवल माँ हो!
भगवानों के भगवान की तुम माँ हो!
मुझे विश्वास है माँ के पहले
कुछ भी नहीं था अन्यथा;
राम-कृष्ण-बुद्ध-जिन-मूसा-ईसा
माँ की कोख से क्यों आता?
अस्तु जन्म लेने वाला शिशु
अल्लाह ख़ुदा भगवान नहीं
पहला शब्द माँ क्यों कहता?
माँ! माँ! अम्मा! अम्मा! ओमाँ!
ओमाँ! ओम्! ओम्! ॐ नमः माँ!
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