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प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता

 

जीव जगत को चलानेवाला सातवें आसमान में बैठा 
कोई ईश्वर अल्लाह ख़ुदा अवतार पैग़म्बर नहीं होता, 
जो भी होता जन-जन कण-कण धरा-गगन में होता, 
प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता! 
 
ये धरा जल पवन अगन गगन के मिलन से जीवन, 
ये धरणी हमें धारण करती, धरा ही अन्न धन भोजन, 
‘माता भूमि पुत्रोऽहम पृथिव्या’ धरती ही वन्देमातरम, 
धरा सबकी माँ, सूर्य अग्नि जल पवन तत्त्व, माटी तन! 
 
कोई नबी कवि गुरु होते रहबर या बरगलाने वाले क़हर 
ये समझ का फेर है कि तुम बनाते उन्हें ईश्वर या बर्बर 
जिस धर्म-मजहब औ’ धर्मग्रंथ-पुस्तक में तुम्हारी आस्था 
वही तुम्हें दिखाते सही-ग़लत और जीने-मरने का रास्ता! 
 
कोई व्यक्ति महायति पीर फ़क़ीर कुछ भी क्यों नहीं हो 
मर जाने के बाद उनके मज़ार और समाधि को ना पूजो, 
मृत व्यक्ति में भला बुरा करने की नहीं होती कोई शक्ति, 
अवतार पैग़म्बर के ख़ातिर मरना मारना ठीक नहीं रीति! 
 
जबतक मानव जाति में सत्व रज तम गुण सम होता, 
तबतक जीव जगत के प्रति प्रेम करुणा नहीं कम होता, 
मानव में तमस गुण प्रवृत्ति के बढ़ जाने पर अहं होता, 
तमोगुणी क्रूर कठोर दंभी होकर नाश को आमंत्रण देता! 
 
प्रकृति के पाँच तत्त्वों के समन्वय से जीवन संभरण होता, 
पंचतत्त्व के विरुद्ध आचरण से हमारे तन का मरण होता, 
अग्नि पानी पवन गुरुत्वाकर्षण विरोध से प्राण हरण होता, 
मानव तुम्हें मारने और जिलानेवाला तेरा ही आचरण होता! 
 
ये सूर्य का आकर्षण है कि धरती परिक्रमा करती चारों दिशा, 
ये धरा का आकर्षण है कि चंद्रमा परिभ्रमण करता भूमि का, 
ये धरातल का आकर्षण है कि जल को समेटे हुए अंत:स्थल, 
ये पूरी सृष्टि है सूर्य पृथ्वी चंद्रमा वायुमंडल जल का प्रतिफल! 
 
हे मानव! मत हेठी करो कि एक ईश्वर सर्वशक्तिमान होता, 
अरे आदमी मत कहो एक अल्लाह से कोई नहीं महान होता, 
अरे मनुष्य! मत कहो तुम्हारा रब सबसे बड़ा भगवान होता, 
यक़ीन करो धरा के डोलने से कोई ख़ुदा नहीं मेहरबान होता! 
 
याद करो हे राम कहने से बापू नाथूराम की गोली से नहीं बचे, 
भूखे रह कर तपस्या करने से शाक्य मुनि बुद्ध नहीं बन पाए, 
हठ योग से पेट पीठ एक हुआ उठ ना सके बुद्ध बुद्धू ही रहे, 
सुजाता की खीर खाकर बुद्धि खुली मध्यमार्ग से ही बोध पाए! 
 
कभी नहीं कोई कुटिल जातिवादी फ़िरकापरस्त ईश्वर यहाँ आएँगे, 
कलियुग से सतयुग आएगा, पर कोई कल्कि झलक नहीं दिखाएँगे, 
कथावाचकों सच-सच कहो भावना का दोहनकर गपोड़ ना सुनाओ, 
पंडित मुल्ला पादरी किसी स्वर्ग हूर परी का सब्ज़-बाग़ न दिखाओ! 

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