अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

आख़िर हर जगह हिन्दू ही क्यों मारे जाते हिन्दू क्यों संहारे जाते? 

 


आख़िर हर जगह हिन्दू ही क्यों मारे जाते हिन्दू क्यों संहारे जाते? 
क्योंकि हिन्दू भेदभाव के सहारे ही जीते मरते, हिन्दू नक्कारे होते
आख़िर हर क्षेत्र में हिन्दू ही क्यों हारे आते हिन्दू क्यों बेचारे होते? 
क्योंकि हिन्दुओं के हर कार्य में वर्ण जाति धर्म मुहूर्त विचारे जाते! 
 
हिन्दू एकता के सारे नारे क्यों खोखले होते हिन्दू क्यों बेसहारे होते? 
क्योंकि हिन्दुओं को भेदपरक रीति-रिवाज़ और झूठ फ़रेब प्यारे होते 
हिन्दू आपस में घृणा द्वेष मतभेद पालते हिन्दू हित के हत्यारे होते 
हिन्दू हिन्दुओं के लिए गद्दार होते गैर-हिन्दुओं से डरे अधमरे रहते! 
 
जब जन्मना सब हिन्दू एक समान होते खतना-बपतिस्मा नहीं होते 
फिर क्यों हिन्दू संस्कार निभाते ही आधा तीतर आधा बटेर हो जाते? 
आख़िर क्यों हिन्दू उपनयन पहन कर शेष हिन्दू से अलग हो जाते? 
अगर हिन्दू के लिए उपनयन हितकर तो सबको क्यों नहीं पहनाते? 
 
कुछ हिन्दुओं के उपनयन संस्कार से मिथ्या जाति अहंकार जगते 
जनेऊवाले अपने बच्चों को जनेऊहीन का चरण रज नहीं छूने कहते 
पूर्व में उपनयन से अध्ययन आरंभ होते थे आज उपनयन दंभ होते
आज उपनयन ही हिन्दू को हिन्दू से अलगाते अहं वहम सिखलाते! 
 
यदि हिन्दू को हिन्दू बनाए रखना हो और हिन्दुत्व बचाए रखना हो 
तो सबको कलावा सा बिना जाति विचारे जनेऊ पहनाओ या यूँही रहो 
यदि हिन्दुओं में चाहिए एकता तो किसी जाति का प्रवक्ता नहीं बनो 
अगर हिन्दू हो तो हिन्दू हित में जाति अहं माटी में, मिला दफ़ना दो! 
 
क्या कभी सोचा किसी ने आख़िर हर अवसर पर हिन्दू क्यों डर जाते? 
क्योंकि हिन्दू अवसरवादी होते, झूठे नारे लगाते, स्वयं को ही बरगलाते
आख़िर हिन्दू जय परशुराम कहकर किसे मारना किसे जिलाना चाहते? 
आख़िर हिन्दू जय भीम मीम बोल किसे अपनाते, किसको शत्रु बनाते? 
 
आख़िर सारे हिन्दू एक हो कहनेवाले जय परशुराम क्यों कहने लगते? 
जय परशुराम नारे से शूद्र अंत्यज को शिक्षा अधिकार कैसे दे सकते? 
परशुराम एक ऐसा नाम जिसने अजब ग़ज़ब काम से हैरान किया था 
ब्राह्मण वर्ण जाति को छोड़ के आन को शिक्षा ना देना ठान लिया था! 
 
अनजाने किसी दलित को शिक्षित किया तो शाप दे ज्ञान वंचित किया
परशुराम ने माँ को मार दिया था, माँ के वर्ण जाति का संहार किया था 
ऐसे बर्बर का जयकारा लगाने वाले भला हिन्दू का कैसे खेबनहार होंगे? 
कथावाचक मनमाफ़िक कथा सुना पैसा बनाते जातिवादी कैसे यार होंगे? 
 
इस लोकतंत्र में छल प्रपंच ऐसा है कि राम नहीं रावण बन जाते नेता 
कृष्णवंशी कहकर कंस सा काम करता शिशुपाल को जयमाल डाल देता 
हिन्दू मत पाकर पाक की महिमा गाकर विधर्मी रिझाकर घर भर लेता 
ये लोकतंत्र ऐसा कि हिन्दूचरित्र हरणकर हिन्दुत्व का डीएनए मार देता! 
 
अब हिन्दू धर्म सिखाता आपस में वैर करना, मारना नहीं डर कर मरना 
हिन्दू धर्म है भ्रष्टाचार करना भोला को लोटा भर जल चढ़ाना तर जाना 
हिन्दू कर्म घर में राजनीति करना माँ पिता अग्रज का नहीं आदर करना 
हिन्दू का अर्थ नौकरी ठेका की मनौती पूर्ण होते बकरी छागर बली देना! 
 
हिन्दू ढकोसलेबाज़ होते शादी श्राद्ध में जाति विजाति रिश्ते दुबक जाते 
आपस में विवाह नहीं करते विजाति की मौत पर लाश को कंधा ना देते 
हिन्दुओं में दहेज़ व आपसी उपेक्षा से योग्य वर वधू तलाशे ना जा पाते 
ज़रूरत में हिन्दू अकेले होते हिन्दुओं में आपसी प्यार सहकार नहीं होते! 
 
हिन्दू कुतर्की आरामतलबी मतलबी, बावजूद मेहनताने अवैध धन कमाते 
हिन्दू कंबल ओढ़कर अकेले घी पीते कायर होते संकट में पलायन करते
हिन्दू अपनों से कलह करते सम्पत्ति विवाद में प्रेम से सुलह नहीं करते
भाई भतीजे से लड़ते आतंकी माफ़िया से डरके बेदाम धन दान कर देते! 
 
छोड़ो जातिवादी पाखण्डियों की आस्था को, हिन्दुत्व की व्यवस्था बदलो 
खालसा की असि से उपनयन करलो श्रीगुरुग्रंथ साहिब का भजन करलो 
संत सिपाही साहित्यकार गुरु गोविंद सिंह के पंचककार का वरण करलो 
भगत सिंह के बंदे हो देश के बंजर ऊसर भूमि में बंदूक की खेती करलो! 
 
संत की वाणी से हिन्दुत्व सुधार दो या भगवंत के खंग से दुष्ट संहार दो 
मिरी और फ़क़ीरी की परंपरा का पालन करो ना किसी को डराओ ना डरो 
जीव जंतु की रक्षा करो सत्य अहिंसा दया धर्म पाल, मानव को निर्भय करो 
नहीं अधर्म की जय हो, नहीं किसी के साथ अनय हो, मनुज दुर्गुण क्षय हो! 
 
अगर चैन से जीना है घूँट ज़हर का नहीं पीना है तो हरि सिंह नलवा बनो 
देश माँ बहन बेटी की सुरक्षा में जस्सासिंह अहलूवालिया सा जज़्बा रक्खो 
जातिवाद की चाल से उबरो मानवता की ढाल हो वैरी को जलवा दिखाओ
सद्गुरु की वाणी सुमरो आत्मा की शुद्धि करो बलवाई की बला मिटाओ! 
 
सिख व ग्रंथी, गुरु व चेला एकसाथ अमृत छकै बड़े छोटे का ना झमेला रे
ये दुनिया चंद दिनों का मेला, यहाँ हरेक अकेला अकाल पुरुष का खेला रे
सबके हृदय हरि बसे, सबके हिय राम रमे, सबके दिल में कृष्ण लल्ला रे
मंदिर मस्जिद गिरजाघर पीर मज़ार के अंदर क़ैद नहीं है ईश्वर अल्ला रे! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं