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अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है

अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है, 
अर्जुन होना बहुत दुःख को सहना है, 
अर्जुन होना लख़्तेजिगर को खोना है, 
दुश्मन को मारकर के भी तो रोना है! 
 
अर्जुन होने पर बाँटना पड़ता है प्यार, 
अर्जुन होने पर जीत भी हो जाती हार, 
अर्जुन होने पर बड़ी परीक्षा लेता संसार, 
अर्जुन होने पर कृष्ण कृपा होती अपार! 
 
अर्जुन होकर बहुत कुछ खोकर, 
वन अरण्य में फिरते रहे खाकर ठोकर, 
सच के लिए बच के बचा के जीना है, 
पहचान पाने के लिए पहचान छिपाना है! 
 
कभी मीनाक्षी शरसंधानी ब्राह्मण होना है, 
कभी सुर साधिका बृहन्नला बना रहना है, 
अर्जुन होने की कसौटी पर खरा उतरना है, 
तो हज़ार बार जीना है, हज़ार बार मरना है! 
 
अर्जुन नाम नहीं आसानी से जीवन जीने का, 
अर्जुन हस्ती नहीं कोई गुमनामी में रहने का, 
पर अर्जुन सम्मान है महान योद्धा होने का! 
 
अर्जुन को अर्जुन होने के लिए
बहुत ज़्यादा उलाहना सहना पड़ा था
गुरु के बेइंतहा प्यार पाने से! 
 
अर्जुन को अर्जुन बनने के लिए
सगे संबंधियों का मोह छोड़ना पड़ा था
गुरुजनों के रण में आ जाने से! 
 
अर्जुन एक माध्यम था ईश्वरीय काम का, 
अर्जुन एक अभियान सत्य के जयगान का, 
अर्जुन एक बदला था नारी के अपमान का, 
अर्जुन एक अनुसंधान था विधि-विधान का! 
 
अर्जुन खड़ा था अर्जुनों को न्याय दिलाने को, 
अर्जुन अड़ा था अन्यायी को मार भगाने को, 
अर्जुन बड़ा था योद्धा आजीवन कष्ट पाने को, 
अर्जुन वीरता का पर्याय जीतकर हार जाने को! 
 
अर्जुन एक आस धर्म का अस्तित्व बचाने को, 
अर्जुन एक विश्वास बल को विजय दिलाने को, 
अर्जुन एक दिलाशा ज्ञान को दिशा दिखाने को, 
अर्जुन एक समेकित आयुध युद्ध जिताने को! 
 
अर्जुन ने वही काम किया 
जो गीता में कृष्ण ने ज्ञान दिया! 
 
अर्जुन ने वही संधान किया
जो देवों ने दिव्यास्त्र प्रदान किया! 
 
अर्जुन ने वही परिणाम दिया
जो हरि ने मन में ध्यान किया! 
 
अर्जुन को खरा उतरना था
सबके उम्मीद प्रण ज़िद पर
अर्जुन एक खरा सोना था
ईश के आश्रित मुरीद के घर! 
 
अर्जुन ने दायित्वों का निर्वाह किया, 
खोया अधिक पाया कम ना आह किया, 
अधिकार विहिन दीन-हीन निर्वासित को
अधिकार प्राप्ति की राह दिखा दिया! 
 
हर अर्जुन ने हक़ हेतु क़ुर्बान किया
अपने वंशधर, जुनून में पीकर ज़हर, 
सहस्त्रबाहु अर्जुन का पुत्र-पौत्र समेत
परशुराम ने किया हैहयवंश का संहार! 
अजानबाहु अर्जुन ने धर्म संस्थापना हेतु रण में
अग्रज कर्ण सहित अपने वंश का संहार किए थे! 
 
गुरु अर्जुन देव सोढ़ी को जहांगीर ने गर्म तवे में 
तपा-तपाके गर्म रेत डाल के मारा तड़पा-तड़पा के! 
 
गुरु अर्जुन देव के प्रपौत्र गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी
सर्ववंश दानी थे, जिनके पिता गुरु तेगबहादुर ने
देश-धर्म हित में औरंगज़ेब से ग्रीवा कटा ली थी! 
 
चार पुत्रों में से दो ज़िन्दा दीवार में दफ़न हुए थे, 
औ दो पुत्रों समेत गुरुगोविंद युद्ध में शहीद हुए, 
अर्जुन नाम है सुखधाम नरावतार बड़े महान थे! 
 

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