आज हर जगह संकट में क्यों जी रहा है आदमी?
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
क्योंकि सच्चाई स्वीकार नहीं कर पा रहा है आदमी!
सच्चाई ये है कि धर्म मत पंथ अच्छा होता स्वदेशी
विदेशी मज़हब कराता है धार्मिक ग़ुलामी विदेश की!
आज मज़हब के नाम ज़हर क्यों पी रहा है आदमी?
क्योंकि मज़हबी बुराई स्वीकार नहीं रहा है आदमी!
जिस देश में जिस धर्म मत मज़हब का होता आरंभ
वहाँ उस धर्म मज़हब के अनुयायी में होता नहीं दंभ!
अबके अरबी शेख़ को देख, वो नहीं हैं उतने उन्मादी
जितने पाकिस्तानी बांग्लादेशी होते जिहादी फ़सादी!
जिस देश ने विदेशी मज़हब को अंगीकार कर लिया
वहाँ देश के अनुकूल विदेशी मज़हब में सुधार किया!
देखो इंडोनेशिया को जो सनातनी से इस्लामी हुआ
मगर अपनी संस्कृति और वल्दियत से प्यार किया!
जब दिखावे की फ़ितरत ही मौत का कारण हो रही
तब ऐसे दिखावे नोचकर फेंक दो तब बचेगी ज़िन्दगी!
बारंबार ईश्वर अल्लाह पुकारने से सुधरे नहीं स्थिति
तब छोड़ो उनसे उम्मीद, करो क़लम दवात की बंदगी
अगर दाढ़ी मूँछ की नाईगिरी से हिन्दू मुसलमां होता
तो ऐसी करतूत को छोड़ देने से ही जीयेगा आदमी!
अगर बुरका ओढ़ के भारत की सीता सलमा हो जाती
तो नारी उत्थान हेतु छोड़ दो विदेशी पहचान को भी!
जबसे धर्मांतरितों की पहचान खतना व बपतिस्मा हुई
तबसे भारतीयता में एकता की भावना कम होती गई!
आज पुजारी के अलावे हिन्दुओं ने छोड़ दिए उपनयन
पर सनातनी अनुयायियों का हिन्दुत्व हुआ नहीं है कम!
हिन्दू से धर्मांतरित मुस्लिम ईसाई छोड़ दें वैसे रिवाज़
जो पालना उसे ज़रूरी, जो बने पादरी या पढ़ाए नमाज़!
कोई कब तक मौज करेगा फ़सादियों की फ़ौज सजा के?
कोई कब तक डराए मज़हब की बुराइयों को ख़ौफ़ बनाके?
एक दिन हर देश धर्म मज़हब में समाज सुधारक आते
जो तर्क ज्ञान विज्ञान शिक्षण से देश को जन्नत बनाते!
कभी सनातन वैदिक धर्म में आवश्यक था जनेऊ धारण
ब्राह्मण आठ क्षत्रिय ग्यारह वैश्य का बारह वर्ष में उपनयन!
बग़ैर उपनयन कोई वर्ण कर सकता नहीं था विद्याध्ययन
ऐसे में ब्राह्मण से क्षत्रिय वैश्य का विलंब से होता शिक्षारंभ!
गुरु नानक देव ने ये भेदपरक उपनयन संस्कार छोड़ दिया
गुरु गोविंदसिंह ने पंचककार से मंडितकर सबको जोड़ दिया!
सनातन धर्म चिरंतन, मगर रीति रिवाज़ में होते परिवर्तन,
फिर भी हिन्दू जैन बौद्ध सिख अनुयायी में होते अपनापन!
जब चारों वेद की शिक्षा थी उदरोपयोगी सिर्फ़ ब्राह्मणों की
तब वेद रटाई जाती थी ब्राह्मणों को, शूद्रों के लिए मनाही,
आज धर्मांतरित मुस्लिम बच्चों की क़ुरान रटने की नियति
जैसे वैदिक शिक्षा निरुपयोगी वैसे मदरसा शिक्षा अनुपयोगी!
वामदेव व लड़ झगड़ क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र की
स्थिति बिगड़ गई कुत्ते का मांस खाने की नौबत आन पड़ी!
क्षत्रिय वैश्य शूद्र की उपयोगी वृत्ति चल पड़ी गोपालन कृषि
अब द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी वेद रटते नहीं बदली रोज़ी-रोटी!
समझ लो अपरिवर्तनीय कट्टर मज़हब से होती नहीं भलाई
कब समझोगे कि विदेशी अरब ईरान होगा नहीं अपना भाई!
जिन क्रूर कसाई लुटेरे ने लूटा कूटा तेरे पूर्वज माँ बहन को
उस बर्बर बलात्कारी को आदर्श मान बैठे, ये समझ ना आई!
जबतक ईश्वर अल्लाह ख़ुदा रब को जुदा-जुदा कहेगा आदमी
तबतक दंगा-फ़साद में मर जाने से नहीं बच पाएगा आदमी!
यदि आर्थिक शिक्षा छोड़कर सिर्फ़ पूजा नमाज़ करेगा आदमी
तब जाहिल बनकर आपस में ही लड़ेगा भूखों मरेगा आदमी!
अगर तुम आदमियत को ज़िन्दा बचाने की सोच रखते हो
तो मिलजुल कर रहो, भिन्न वेशभूषा रहन-सहन छोड़ दो!
जो मनुज-मनुज में भेदभाव करे वैसी दर्जीगिरी भी क्या?
मानव बनना है तो ज़रूरत दिखावा रहित मानवता दिखा!
यदि मानवता को बचाने के लिए सोच विचार करना हो
तो मासूमियत भरे चेहरे पर पाशविकता उगाना छोड़ दो!
गर धर्म मज़हब को आदमी के लिए लाभकारी बनाना हो
तो शिक्षित व परिवर्तनकामी बनो अंधेरगर्दी को छोड़ दो!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आज हर जगह संकट में क्यों जी रहा है आदमी?
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- उर्वशी कोई हूर परी अप्सरा नहीं उर में बसी वासना होती
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तब बहुत याद आते हैं पिता
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- हे मानव अपनी मानवता को बचाए रखना
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं