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हे अग्नि! राक्षसों से हिंसकों से रावण से हमें बचाओ


कहते हैं विश्व में सबसे बड़े शिवभक्त रावण थे
अहंकार में भी मग़रूर मगन मस्त वो रावण थे
अहं से शिव को किया त्रस्त जिसने वो रावण थे 
कैलाश उठा शिव स्रोत रचा जिसने वो रावण थे! 
 
बहुत सारे पौराणिक ग्रंथों ने पुरज़ोर मचाया शोर 
कि सभी वेद पुराण शास्त्रों के पंडित वो रावण थे 
जो धर्मज्ञ कामुकतावश मारे गए वो भी रावण थे
जो तथाकथित ब्राह्मण वर्ण जाति के वो रावण थे! 
  
फिर सवा लाख नाती और सवा लाख पोते सहित 
रावण को दो नरों व वानरों ने क्यों किया संहारित? 
अपने भक्त को महेश्वर ने क्यों किया नहीं रक्षित? 
ये भक्ति भी क्या जो रोकती नहीं भक्त का अहित! 
 
कहा तो यह भी जाता कि रावण ने माता सीता को 
बलात्कृत नहीं किया था, तो क्या रावण चरित्रवान थे? 
नहीं रावण आक्रांता महापापी दुर्जन दुराचारी हैवान थे 
जिसने अग्रज कुबेर की पुत्रवधू को बलात्कृत किए थे! 
  
पुत्रवधू ने शाप दिया पराई नारी रमन से मर जाने का 
ये वजह रावण का सीता से दुष्कर्म नहीं कर पाने का 
शाप नहीं होता तो क्या रावण कर्मफल से बच जाता? 
हिंसक बलात्कारी को बचाते नहीं कोई ईश्वर रब ख़ुदा! 
 
देखना चाहो तो देख लो रावण कौरव कंस के वंश को 
आक्रांता महमूद ग़ज़नी गोरी तैमूर बाबर मरे निर्वंश हो 
लाख पढ़ो वेद पुराण बाइबल क़ुरान अवेस्ता के छंद को 
कोई ईश्वर रब बचाते नहीं कर्मफल से दुष्ट धर्मांध को! 
 
ऋग्वेदी ऋषि ने दुष्ट रावण से रक्षा की गुहार लगाई 
‘हे अग्नि! राक्षसों से हिंसकों से रावण से हमें बचाओ
हे अग्नि! सभी रावण और राक्षसों से रक्षा करो हमारी’ 
ऋग्वेद कहता रावण शिव भक्त पंडित नहीं, हिंसाचारी! 
 
‘पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्ते: अराव्णः1-36-15’
‘पाहि विश्वस्मात् रक्षसः अराव्णः ऋग्वेद 8-60-10’
हाँ रावण पापी था, राम की माँ कौशल्या का अपहर्ता 
रावण को निर्वंश कर राम ने स्थापित की थी मर्यादा! 
 
ये लेखनी का छल है कि अनुज वधू भगिनी सुत नारी 
बलात्कारी रावण को कहते भक्त विप्र, जो थे अत्याचारी
ऐसे कूटलेखन करने वाले दुर्जन का महिमा मंडन करते 
जो अपवित्रकर्ता वेद उपनिषद रामायण भारत दर्शन के! 
 
जब ब्राह्मणवाद का दौर चला, मानवता को ख़ूब छला 
राम को कहा गया शूद्रहंता, रावण को कहा गया भला 
जबकि राम ने निषाद को गले लगाया शबरी हुई माता 
वन में बसे कोल भील भालू वानर से जोड़े भातृ नाता! 
 
जब ऋषियों का ब्राह्मणीकरण हुआ, रावण बने ब्राह्मण 
बहन शूर्पनखा ब्राह्मणी, तो भाँजा शंबूक कैसे शूद्र वर्ण? 
राम विरोधी ने राम को कहा शूद्रहंता रावण को वेदवेत्ता 
कुछ पुराणों में ये कहा गया है रावण थे सीता के पिता! 
 
ये सत्य है कि जनक नहीं थे सीता के जैविक जन्मदाता 
महाभागवत कथन ‘सीता मंदोदरी गर्भेसंभूता चारुरूपिणी 
क्षेत्रजा तनया प्यस्य रावणस्य रघूत्तम’ से प्रमाणित होता 
कि सीता थी मंदोदरी गर्भोत्पन्न रावण की क्षेत्रजा सुता! 
 
अनिष्ट की शंका में रावण ने लंका से त्याग दिया सीता 
पर संतति को नष्ट करते नहीं चाहे जितने दुष्कर्मी हो पिता 
भगिनी शूर्पनखा के अपमान के बदले रावण ने हरी सीता 
ये भी कारण है सीता से रावण का दुष्कर्म नहीं करने का! 
  
ना राक्षस रावण ब्राह्मण था, ना उनका भाँजा शंबूक शूद्र 
वर्णविहिन राक्षस रावण व शंबूक का वर्ण बताने वाले क्षुद्र 
राम काल में आर्य विप्र नहीं ऋषि-क्षत्रिय-विश में विभक्त 
तब मनुज नर वानर ऋक्ष कोल किरात यक्ष गंधर्व राक्षस! 
 
ये सब आपसी हित रक्षण हेतु आपस में होते थे शत्रु-मित्र 
तब क्षत्रिय विश वैश्य शूद्र रूप में स्पष्ट नहीं थे विभाजित 
धोबी चमार मेहतर जैसी अस्पृश्य शूद्र जाति नहीं बनी थी 
धोबी धोबिन विवाद सीता परित्याग वृत्तांत मिथक प्रक्षिप्त! 
 
ना ही तब चमड़े के जूते व चमड़े के चाबुक सोटे बनते थे 
ऋषि राजन विश मृगछाला वल्कल काठ खड़ाऊ पहनते थे 
खुले में वन बाग़ तड़ाग शौचस्थल थे, भंगी मेहतर नहीं थे 
चमड़े के बूट कुषाण लाए, मल ढ़ोने वाले भंगी मुग़ल बनाए! 
 
आम प्रजा व वनवासी तो पदत्राणविहीन कुशचीर पहनते थे 
वनवासी राम चरण पादुका भाई भरत के हाथों सौंप गए थे 
राम लखन सीता और वानरगण पदत्राणरहित वल्कलधारी थे
कल्पित वर्णाधम तेली कुंभकार कलवार तुलसी ने बनाए थे! 
 
बाँस के तीर धनुष प्रयोक्ता श्रीराम को लौह अस्त्र नहीं पता 
खड्गहीन काष्ठ गदा वृक्ष तना पत्थर से लड़े राम के योद्धा 
आर्यदेव इंद्र अस्थिधर विष्णु शंख चक्र गदा पद्म धारणकर्ता 
पर अयस आयुध चन्द्रहास खड्ग पुलस्त्य रावण के पास था! 
 
रामकाल में भारतीय ऋषि व क्षत्रिय के हाथ धातु अस्त्र कहाँ? 
आर्यावर्त में ऋषि वशिष्ठ विश्वामित्र काष्ठ ब्रह्म दंड रखते थे 
देशी राजाओं ने अधिकांश युद्ध धनुष-बाण व बाहुबल से लड़े
धातु अस्त्रवेत्ता पुलस्त्य रावण, पर्सिया के परशुराम भार्गव थे! 
 
करोड़ों की आस्था पर प्रश्न चिह्न लगाने वाले कायर होते 
महान चरित्र के ख़िलाफ़ विष वमन करने वाले शातिर होते 
पराया धन नारी अपहर्ता होते बुरे सुकवि गुरु शायर कहते 
सत्य अहिंसा दया मानवता के पक्षकार ही लेखनीधर होते! 
 
कहनेवाले जो भी कह लें श्रीराम मर्यादा के संस्थापक थे 
एकपत्नीव्रती पितृभक्त मातृआज्ञापालक भातृहितरक्षक थे 
पुत्रवधू बलात्कारी रावण व भाँजे शंबूक वर्णहीन राक्षस के
और अनुज सुग्रीववधू के यौनशोषक बाली के संहारक थे! 

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