ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
गीता, जिंद अवेस्ता, त्रिपिटक,
बाइबल, क़ुरान, गुरुग्रंथ साहिब
ये पवित्र धर्मग्रंथ हैं,
जिन्हें अपने-अपने खाँचे;
मंदिर, फ़ायर टेंपल, मठ, गिरजाघर,
मस्जिद, गुरुद्वारा के सिवा रखे जाते हैं
कोर्ट-कैट कटघरे में भी!
पूजा-पाठ-नमाज-कीर्तन से वंचित
धूप-दीप-अगरबत्ती के बिना भी!
फिर भी बची रहती है इनकी पवित्रता
इन पवित्र धर्मग्रंथों के अपने-अपने अनुयायी
इन ग्रंथों को छूकर क़सम खाते हैं
झूठी गवाही देने के लिए भी!
फिर भी बची रहती है इनकी पवित्रता
किन्तु एक को दूसरे के खाँचे में
लाख पवित्रता के साथ रखने पर भी
अपवित्र हो जाते हैं ये पवित्र धर्मग्रंथ
भ्रष्ट हो जाता है मंदिर/मस्जिद!
मौलवियों के लिए मना है गीता का ज्ञान
काफ़िरों के लिए मना है क़ुरान को छूना
आज किसी काफ़िर के क़मीज़ से क़ुरान
और मोमिन के कुर्ते से गीता का बरामद होना
कोई विस्फोटक हथियार बरामद होने जैसा है!
लग सकता है इल्ज़ाम
पवित्र ग्रंथ को अपवित्र करने का,
पन्ना चीर-फाड़ करने का/छेड़-छाड़ करने का!
अस्तु पवित्रता के साथ प्रणाम
उन पवित्र धर्मग्रंथों को बिना छुए,
वर्जित हैं जिनके दर्शन विधर्मियों के लिए!
इस संकट की घड़ी में काफ़ी है
बिना भेदभाव के दान में मिले पाकेट गीता
जिसे रखता हूँ पाकेट में
पंडितों के समक्ष पोथी की तरह दबा लेता हूँ
पसीने से गंधाए काँख में!
मौलवियों के सामने उलटी तरफ़ से
पलटता हूँ गीता के पन्नों को
पादरियों के सामने स्वास्तिक चिह्न को
थोड़ा नीचे लंबाकर बनाता हूँ क्रास
क्राइस्ट कथन ‘प्रेम ही ईश्वर है'
कृष्ण गीता से मिलाता हूँ!
सरकारी हुक्मरानों के सामने पाकेट में रखकर
चुपचाप सरकारी धर्म निभाता हूँ
‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव..'
गीता के अठारहों अध्याय का पुरोवाक
दुहराता हूँ सर-सर कहकर!
सारे धर्माधिकारी/मैकालेवादी अधिकारी
झेलते हैं तिलमिलाहट में सिरफिरा पागल कहकर!
वस्तुतः पागल होना, भेदभाव से परे होना है
पागल होकर ही हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई से परे हो जाना है
पागल होकर ही जातिवादी ख़ेमों से हट जाना है
पागल होकर ही बच जाना है, घूँस लेने-देने के चक्कर से!
पागल से आश्वस्त रहते अच्छे और बुरे भी
पागल होना सुरक्षा कवच है ख़ुद से/ दुश्मनों से भी
पागल होकर पढ़ लेता हूँ गीता में
पारसी-ईरानियों का जिंद अवेस्ता/वेद के छंद
यहूदी-ईसाइयों का ओल्ड टेस्टामेंट
बौद्ध/जैन का मध्यम मार्ग/स्यादवाद!
पागल होकर ही उलटी गीता पढ़कर
सीधा क़ुरान को समझ लेता हूँ
पागल होकर ही गीता को मुक्तक सा पढ़कर
गुरु ग्रंथ साहिब समझता हूँ!
पागल होकर ही गीता को गंधाए काँख में लिथड़कर
बचा लेता हूँ सभी पवित्र ग्रंथों की पवित्रता!
कि गीता है लोभ, मोह, रिश्तेदारी, तरफ़दारी,
भाई-भतीजावाद से मुक्ति का धर्म ग्रंथ,
सफल मानुषी उद्घोष, सत्यमेव जयते का!
–-विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं