अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते

गीता, जिंद अवेस्ता, त्रिपिटक, 
बाइबल, क़ुरान, गुरुग्रंथ साहिब
ये पवित्र धर्मग्रंथ हैं, 
जिन्हें अपने-अपने खाँचे; 
मंदिर, फ़ायर टेंपल, मठ, गिरजाघर, 
मस्जिद, गुरुद्वारा के सिवा रखे जाते हैं 
कोर्ट-कैट कटघरे में भी! 
 
पूजा-पाठ-नमाज-कीर्तन से वंचित
धूप-दीप-अगरबत्ती के बिना भी! 
 
फिर भी बची रहती है इनकी पवित्रता
इन पवित्र धर्मग्रंथों के अपने-अपने अनुयायी
इन ग्रंथों को छूकर क़सम खाते हैं
झूठी गवाही देने के लिए भी! 
 
फिर भी बची रहती है इनकी पवित्रता
किन्तु एक को दूसरे के खाँचे में
लाख पवित्रता के साथ रखने पर भी
अपवित्र हो जाते हैं ये पवित्र धर्मग्रंथ
भ्रष्ट हो जाता है मंदिर/मस्जिद! 
 
मौलवियों के लिए मना है गीता का ज्ञान
काफ़िरों के लिए मना है क़ुरान को छूना
आज किसी काफ़िर के क़मीज़ से क़ुरान
और मोमिन के कुर्ते से गीता का बरामद होना 
कोई विस्फोटक हथियार बरामद होने जैसा है! 
 
लग सकता है इल्ज़ाम 
पवित्र ग्रंथ को अपवित्र करने का, 
पन्ना चीर-फाड़ करने का/छेड़-छाड़ करने का! 
 
अस्तु पवित्रता के साथ प्रणाम 
उन पवित्र धर्मग्रंथों को बिना छुए, 
वर्जित हैं जिनके दर्शन विधर्मियों के लिए! 
 
इस संकट की घड़ी में काफ़ी है
बिना भेदभाव के दान में मिले पाकेट गीता
जिसे रखता हूँ पाकेट में 
पंडितों के समक्ष पोथी की तरह दबा लेता हूँ
पसीने से गंधाए काँख में! 
 
मौलवियों के सामने उलटी तरफ़ से 
पलटता हूँ गीता के पन्नों को
पादरियों के सामने स्वास्तिक चिह्न को
थोड़ा नीचे लंबाकर बनाता हूँ क्रास
क्राइस्ट कथन ‘प्रेम ही ईश्वर है'
कृष्ण गीता से मिलाता हूँ! 
 
सरकारी हुक्मरानों के सामने पाकेट में रखकर
चुपचाप सरकारी धर्म निभाता हूँ
‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव..' 
गीता के अठारहों अध्याय का पुरोवाक
दुहराता हूँ सर-सर कहकर! 
 
सारे धर्माधिकारी/मैकालेवादी अधिकारी
झेलते हैं तिलमिलाहट में सिरफिरा पागल कहकर! 
 
वस्तुतः पागल होना, भेदभाव से परे होना है
पागल होकर ही हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई से परे हो जाना है
पागल होकर ही जातिवादी ख़ेमों से हट जाना है
पागल होकर ही बच जाना है, घूँस लेने-देने के चक्कर से! 
 
पागल से आश्वस्त रहते अच्छे और बुरे भी
पागल होना सुरक्षा कवच है ख़ुद से/ दुश्मनों से भी
पागल होकर पढ़ लेता हूँ गीता में
पारसी-ईरानियों का जिंद अवेस्ता/वेद के छंद
यहूदी-ईसाइयों का ओल्ड टेस्टामेंट
बौद्ध/जैन का मध्यम मार्ग/स्यादवाद! 
 
पागल होकर ही उलटी गीता पढ़कर
सीधा क़ुरान को समझ लेता हूँ
पागल होकर ही गीता को मुक्तक सा पढ़कर
गुरु ग्रंथ साहिब समझता हूँ! 
 
पागल होकर ही गीता को गंधाए काँख में लिथड़कर
बचा लेता हूँ सभी पवित्र ग्रंथों की पवित्रता! 
 
कि गीता है लोभ, मोह, रिश्तेदारी, तरफ़दारी, 
भाई-भतीजावाद से मुक्ति का धर्म ग्रंथ, 
सफल मानुषी उद्घोष, सत्यमेव जयते का! 
–-विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं