संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
कुछ चीज़ें जन्मजात नहीं आचार विचार संस्कार से आतीं
मगर आचार विचार संस्कार कहाँ से आता?
निश्चय ही आचार विचार संस्कार आता संस्कृति से
और संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही!
‘मातृवत परदारेषु परद्रव्याणी लोष्ठवत
आत्मवत् सर्वभूतानि य:पश्यति स: पण्डित:’
पराई नारी को माँ, पराए धन को मिट्टी
सब जीव को आत्मवत समझे ज्ञानी व्यक्ति
ये मान्यता सर्वदा से है भारत देश की!
बस ट्रेन में खड़ी महिलाओं को देखकर
सीट से उठ जाने और महिला को बिठाने की
ऐसी भावना आज भी देश में देखी जाती
ये भावना आई कहाँ से? निश्चय ही मनु की
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ से ही!
वासना जीव मात्र का लक्षण है
मगर ब्रह्मचर्य व संयम है भारत वतन में,
एक बार किसी नारी का हाथ थामने का अर्थ
जीवन भर सुख दुःख में साथ निभाने का!
पति पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता
निभाते वफ़ा, तलाक़ से ताल्लुक नहीं होता!
सनातनधर्मी का मानव मात्र को भाई समझना
सभी धर्म मज़हब के प्रति सहिष्णुता दिखलाना
सबकी भलाई कामना करना किसने सिखलाया?
‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’
‘कृण्वन्तो विश्वं आर्यम’ जैसी उक्तियों ने ही!
ये फ़ितरत है भारत और भारतीय जनों की
पर दुःख कातर हो जाने की, दया ममता लुटाने की,
तन-मन-धन से सहयोग करना, धर्म है अपना
‘अहिंसा परमो धर्म:’ और ‘सत्यमेव जयते’ कहना!
‘पर हित सरिस धर्म नहिं भाई
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’ ये तुलसी चौपाई
‘अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्
परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़नम्’ से आई!
मातृभूमि पर मर मिटने का जलवा मिला कैसे?
‘माता भूमि पुत्रोऽमं पृथ्विया’ अथर्ववेद व राम के
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ भाव से
पराई भूमि सोने की लंका को जीतकर त्याग दिए!
मगर आज भारत में ये संस्कृति दम तोड़ रही,
विकृत मानसिक स्थिति मानवता को छोड़ रही,
मानवीय मूल्य साम्प्रदायिक मंच से खोने लगा,
प्रेम नहीं वासना के लिए छल प्रपंच होने लगा!
छद्म धर्म और झूठा नाम कहकर प्यार करना,
बलात्कार करके बर्बरतापूर्वक जान से मार देना,
मज़हबी फ़िरक़ापरस्ती आतंक व उन्माद फैलाना,
बेक़ुसूरों की हत्या बेवजह आए दिनों में करना!
ये बुराई भारतीयों में आई कैसे कहाँ किस जगह से?
विदेशी मज़हब जहालत संस्कार हीनता की वजह से,
पराई आस्था से खिलवाड़ करते, ख़ुद ख़ुद्दार नहीं होते,
पर बात-बात में निज ईश्वर रब ख़ुदा की गुहार करते!
ऐसे में संस्कृति को बचाना है, तो संस्कृत को जान लें,
अगर वेद में भेद दिखे, तो उपनिषदों का तर्क ज्ञान लें,
संस्कृत में मानवीय सृष्टि का ज्ञान, जिसे पाना ठान लें
संस्कृत का पठन-पाठन मनुस्मृति के बहाने नहीं टालें!
मनुस्मृति की अच्छाई मानें, प्रक्षिप्त बुराइयाँ त्याग दें,
‘सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्—‘ मनु उक्ति
सत्य बोलें प्रिय बोलें अप्रिय सत्य प्रिय झूठ नहीं बोलें,
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ मनुस्मृति कहती!
मनुस्मृति में ही नारी रक्षा की त्रिस्तरीय बात कही गई,
नारी रक्षक पिता पति पुत्र, वह अकेली छोड़ी नहीं जाती,
‘पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने रक्षन्ति स्थविरे
पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रयमर्दति’ चूक नहीं हो नारी रक्षा में,
संस्कृत संस्कृति संस्कार की भाषा पढ़ें, लिखें, सहेज लें!
---विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101.
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आदमी अगर दुःखी है तो स्वविचार व मन से
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं