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संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही 

कुछ चीज़ें जन्मजात नहीं आचार विचार संस्कार से आतीं 
मगर आचार विचार संस्कार कहाँ से आता?
निश्चय ही आचार विचार संस्कार आता संस्कृति से 
और संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही!
 
‘मातृवत परदारेषु परद्रव्याणी लोष्ठवत
आत्मवत् सर्वभूतानि य:पश्यति स: पण्डित:’
पराई नारी को माँ, पराए धन को मिट्टी
सब जीव को आत्मवत समझे ज्ञानी व्यक्ति
ये मान्यता सर्वदा से है भारत देश की!
  
बस ट्रेन में खड़ी महिलाओं को देखकर 
सीट से उठ जाने और महिला को बिठाने की 
ऐसी भावना आज भी देश में देखी जाती 
ये भावना आई कहाँ से? निश्चय ही मनु की
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ से ही!
 
वासना जीव मात्र का लक्षण है 
मगर ब्रह्मचर्य व संयम है भारत वतन में, 
एक बार किसी नारी का हाथ थामने का अर्थ 
जीवन भर सुख दुःख में साथ निभाने का!
  
पति पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता
निभाते वफ़ा, तलाक़ से ताल्लुक नहीं होता!
 
सनातनधर्मी का मानव मात्र को भाई समझना
सभी धर्म मज़हब के प्रति सहिष्णुता दिखलाना 
सबकी भलाई कामना करना किसने सिखलाया?
‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’  
‘कृण्वन्तो विश्वं आर्यम’ जैसी उक्तियों ने ही!
 
ये फ़ितरत है भारत और भारतीय जनों की
पर दुःख कातर हो जाने की, दया ममता लुटाने की,
तन-मन-धन से सहयोग करना, धर्म है अपना
‘अहिंसा परमो धर्म:’ और ‘सत्यमेव जयते’ कहना!
 
‘पर हित सरिस धर्म नहिं भाई 
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’ ये तुलसी चौपाई
‘अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् 
परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़नम्’ से आई!
 
मातृभूमि पर मर मिटने का जलवा मिला कैसे?
‘माता भूमि पुत्रोऽमं पृथ्विया’ अथर्ववेद व राम के
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ भाव से
पराई भूमि सोने की लंका को जीतकर त्याग दिए!
 
मगर आज भारत में ये संस्कृति दम तोड़ रही, 
विकृत मानसिक स्थिति मानवता को छोड़ रही, 
मानवीय मूल्य साम्प्रदायिक मंच से खोने लगा, 
प्रेम नहीं वासना के लिए छल प्रपंच होने लगा! 
 
छद्म धर्म और झूठा नाम कहकर प्यार करना, 
बलात्कार करके बर्बरतापूर्वक जान से मार देना, 
मज़हबी फ़िरक़ापरस्ती आतंक व उन्माद फैलाना, 
बेक़ुसूरों की हत्या बेवजह आए दिनों में करना! 
 
ये बुराई भारतीयों में आई कैसे कहाँ किस जगह से? 
विदेशी मज़हब जहालत संस्कार हीनता की वजह से, 
पराई आस्था से खिलवाड़ करते, ख़ुद ख़ुद्दार नहीं होते, 
पर बात-बात में निज ईश्वर रब ख़ुदा की गुहार करते! 
 
ऐसे में संस्कृति को बचाना है, तो संस्कृत को जान लें, 
अगर वेद में भेद दिखे, तो उपनिषदों का तर्क ज्ञान लें, 
संस्कृत में मानवीय सृष्टि का ज्ञान, जिसे पाना ठान लें 
संस्कृत का पठन-पाठन मनुस्मृति के बहाने नहीं टालें! 
 
मनुस्मृति की अच्छाई मानें, प्रक्षिप्त बुराइयाँ त्याग दें, 
‘सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्—‘ मनु उक्ति 
सत्य बोलें प्रिय बोलें अप्रिय सत्य प्रिय झूठ नहीं बोलें, 
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ मनुस्मृति कहती! 
 
मनुस्मृति में ही नारी रक्षा की त्रिस्तरीय बात कही गई, 
नारी रक्षक पिता पति पुत्र, वह अकेली छोड़ी नहीं जाती, 
‘पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने रक्षन्ति स्थविरे
पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रयमर्दति’ चूक नहीं हो नारी रक्षा में, 
संस्कृत संस्कृति संस्कार की भाषा पढ़ें, लिखें, सहेज लें! 
---विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101.

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