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सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता 

 

सोच में सुधार करो 
सोच से ही मानव या दानव बनता
एक सोच वह भी थी
जिससे पर्सिया और गांधार में 
शिक्षा और शान्ति थी 
 
दूसरी सोच वहाँ ऐसी आई, 
जिसने हिंसा और तबाही मचाई 
टूट गया पर्सिया 
ईरान ईराक़ बना, गांधार कांधार बना 
तक्षशिला विश्वविद्यालय 
मिट्टी में मिल गया बना रावलपिंडी 
नारी घर में क़ैद हो गई, 
हर तरह मारकाट झगड़ा और लड़ाई! 
 
एक सोच वह भी थी 
जिसमें नारियाँ देवी होती थीं, 
नारी की पूजा होती थी
नारी वेद शास्त्र पढ़ती थी, 
घोषा मैत्रेयी गार्गी बनती थी! 
 
दूसरी सोच ऐसी आई 
जिसने नालंदा विक्रमशिला जलाई 
जिससे छूट गई सबकी पढ़ाई, 
चहुँ ओर दंगा-फ़साद और तबाही
जिससे नारी बन गई 
पैर की जूती और मर्द की खेती! 
 
एक सोच वह भी थी
जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः—
सभी सुखी हो सभी निरोग हो ना कोई दुखी हो
जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना थी 
दूसरी सोच ऐसी आई 
जो ईश्वर ख़ुदा के नाम कोहराम मचाने लगी 
आदमी को बनाने लगी थी बलवाई! 
 
निष्पक्ष भाव से ऐसा सोचो 
जिससे चराचर जीव जगत की भलाई हो
ऐसा है कि सोच विचार की शक्ति 
मानव जाति को विरासत में मिली 
जिससे पाशविकता से मिलती मुक्ति! 
 
ईश्वर को निष्पक्ष निष्पाप ही रहने दो 
निजी स्वार्थ के लिए अपने अनुकूल 
दूसरे के प्रतिकूल शतरंज की गोटी ना बनाओ 
मानव हो मानव ही रहो विकृत सोच से 
रावण सा राक्षस कंस सा दानव ना बनो! 
  
समय समय पर सोच में सुधार करो 
मानव हो मानव बनो! 
 
महमूद ग़ज़नवी मुहम्मद ग़ौरी 
अल्लाउद्दीन बख़्तियार खिलजी तैमूर बाबर ना बनो 
मनु नूह के सपूत मानव हो 
फ़ियादीन पत्थरबाज़ हमलावर ना बनो! 

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