प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Mar 2023 (अंक: 225, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
प्रेम की वजह से
इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
जहाँ इंसानियत मरने लगे
उस कर्म धर्म को छोड़ दो!
मत मानो ऐसे धर्म मज़हब को
जो इंसानों को बाँटता हो इंसानियत को डाँटता हो
वो कैसे इंसानी धर्म मज़हब हो सकते
जो इंसान इंसान में भेद करना सिखला दे?
वैसे किसी अवतार पैगंबर रब को क्या मानना
जो इंसानों को जातिवादी फ़िरकापरस्त बना दे
वैसे सारे विचारों का परित्याग करना ही होगा
जो स्वयं में बड़प्पन का अहंकार पैदा कर दे!
कोई उम्र में बड़ा होता कोई उम्र में छोटा
कोई नम्र अधिक होता कोई बहुत खोटा होता
उम्र नम्र बड़ा छोटा होना क़ुदरती गुणधर्म,
मगर धर्म मज़हब आडम्बर है इंसानी फ़ितरत!
इंसान है क़ुदरत का क़ुदरती हिस्सा
हर जीव जन्तु का मूल स्वभाव प्रेम ही होता
प्रेम है परमेश्वर की लिपि विहीन भाषा
जो दिल से निकल कर दिल में उतर जाता!
प्रेम में परखने की शक्ति
प्रेम जीव जगत की स्वाभाविक अभिव्यक्ति
प्रेम सिर्फ़ इंसान नहीं
भाषा विहीन जीव जंतुओं को भी जोड़ देता!
करुणा युक्त प्रेम से देखो अगर जगत को
हिंसक पशु उड़ता पक्षी इंसान का साथी हो जाता!
प्रेम ही प्रेम सिर्फ़ प्रेम के आकर्षण से
परमात्मा आत्मा से आबद्ध हर प्राण में बसता!
प्रेम आत्मा परमात्मा
प्रकृति जीव जगत की शाश्वत दशा
प्रेम की वजह से विपरीत गुण धर्मा प्राणी
बेवजह किसी को क्षति नहीं पहुँचाता!
प्रेम की वजह से
जीव जगत में भाईचारा व्याप्त होता
प्रेम की वजह से
हिंसक पशु पक्षी का स्थायी भाव नम्रता!
प्रेम पत्थर में है पानी के रूप में
प्रेम सागर में है जलीय जीव के रूप में
प्रेम आकाश में है मेघ के रूप में
प्रेम कायनात में है छाँह धूप के रूप में!
प्रेम की वजह से सूर्य उदय होता
प्रेम के लिए सूर्यास्त होता चाँद चाँदनी बिखेर देता!
प्रेम की वजह से सूरज सागर का जल पीता
प्रकृति प्रेम से जल वाष्प बनाकर आकाश को दे देता
प्रेम की वजह से ही आकाश धरा को जल देता!
प्रेम की वजह से जल में जलन नहीं
क्षिति में क्षितिज नहीं क्षति नहीं फिर भी मृदा बिखरी
प्रेम की वजह से प्राणी की अग्नि में अगन नहीं तपन नहीं
प्रेम की वजह से प्राणी की हवा हव्य-कव्य, हवा-हवाई नहीं
प्रेम की वजह से प्राणी का ख शून्य नहीं श्वसन छिद्रावकाश!
प्रेम की वजह से धरती
सबको पानी से आप्लावित करती
प्रेम की वजह से धरती सागर में पानी भरती!
प्रेम की वजह से प्राणी में विपरीत प्रकृति
पानी के साथ अग्नि और अग्नि के साथ हवा होती!
प्रेम की वजह से प्राणी के अंदर का पानी
प्राणी की अग्नि को नहीं बुझाता नहीं दहकाता
प्रेम की वजह से हवा प्राणी के अंदर की
आग को नहीं बुझाती नहीं दहकाती नहीं बहकाती!
प्रेम के मिट जाने से
प्राणी का प्रांजल पानी बनकर बह जाता
जठराग्नि ऊर्ध्वगमन कर जाती ऊपर उठकर
उड़ जाती प्राणवायु आकाश में चहुंओर
आकाश का अवकाश अवरुद्ध हो जाता
प्रेम बंधन टूटने से
पाँचों तत्त्व अलग-अलग दिशाएँ जाते मुँहफेर!
अस्तु प्रेम की वजह से प्राणी बचा रहता
प्रेम की वजह से प्राणी, प्राणी को जन्म देता
प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो!
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