बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
मगर वो नहीं मिला मंदिर मस्जिद और ईश्वर बंदगी में
वो मिला रहमदिल व्यक्ति की सेवा और सहानुभूति में!
कौन कहता कि सातवें आसमान में बैठा है कोई ख़ुदा?
ख़ुदा ख़ुद में होता, धरा में माँ पिता होते धाता विधाता,
माँ की कोख है ब्रह्मलोक, पिता की गोद स्वर्गलोक जैसा!
अरे अहंकार के पुतले तुम सारे संस्कार क्यों भूल गए?
माता पिता मरकर उनकी आत्मा संतान में समा जाती,
भाइयों में पिता प्रतिस्थापित होते, बहनों में माता होती!
माँ की याद सताए तो अपनी बहन को याद किया करो,
पिता का स्पर्श चाहो तो अग्रज का चरण छू लिया करो,
मृत पिता की स्मृति में अनुज का सिर चूम लिया करो!
पौत्र-पौत्री के रूप में पितामह-पितामही व नाना-नानी आते,
जो दिया था दाय में वही तो दादा-दादी कहकर लेने आते,
नाती-नातिन नाना-नाना कहकर सिर्फ़ नाता निभाने आते!
मामा-मामा कहनेवाले तेरे भाँजे कुछ भी माँगने नहीं आते,
जिसे तुमने आत्मवत बहन की माँ रूप में कुक्षि प्रदान की,
वो मामा पुकार एहसान जताते, कृष्ण बनो कंस क्यों बनते?
तुम हर आयोजन में सत्य नारायण की कथा को सुनते,
मगर कभी भी अपने आत्मीयजन की व्यथा नहीं सुनते,
क्या तुम्हें ज्ञात नहीं त्रस्त जीवात्मा तुम्हारे पास रहते?
माँ पिता के जाने के बाद भाई बहन के बीच बहाने होते,
भाई-भाई में खाई होती, एक दूसरे के लिए उलाहने होते,
राम को लखन नहीं मिलते, कृष्ण के बलराम नहीं होते!
अनुज ने अग्रज को पटक दिया, अरे कैसा नाटक किया?
छाती में भृगुलता उगा दी, बित्ता भर ज़मीन दौलत मिला,
क्यों भूल गए उसे जिनका जूठा दूध पिया, गोद में खेला?
क्यों भूल गए कि एक माता की कोख में आगे पीछे आए,
एक पिता के दो रक्त बूँद हो, एक दूसरे के भाई हमसाये,
जाते-जाते क्या पाए? माँ का दूध लजाए, पितृ रूह रुलाए!
माना कि सभी भाई की सगर्भा आत्मस्वरूपा कहते बहन को,
फिर धन को महत्त्व दे क्यों बढ़ाती भाइयों बीच अनबन को?
एक की कलाई में रक्षाबंधन, दूजे की सूनी किस कारण कहो?
क्या बहन भाभी की वजह से अपने भाई से खुन्नस पालती?
तो वो बहन भी किसी की भाभी, ससुराल को जन्नत बनाती?
नहीं तो निज गेह को स्वर्ग बनाओ, भाई-भाई में भेद नहीं हो?
ज़रा याद करो ठगी लूट कूटके पराए को जो दौलत कमाते,
वही पाप भूत-प्रेत बनकर शांतिपूर्वक जीवन जीने नहीं देते,
मत अवहेलना करो जीव जन्तु सगे संबंधी रिश्ते औ’ नाते!
मत ढूँढ़ो रब को पूजा नमाज़ मंत्र जाप भजन व अरदास में,
स्वार्थी ना बनो, दिल से उनकी सहायता करो जो आसपास में,
प्यार सहकार पितृगुण, दया ममता मातृगुण रखो अहसास में!
महसूस करो कि तुम एक संवेदनशील विवेक सम्पन्न प्राणी हो,
अपनों की समस्या में गर काम न आए तो तुम अभिमानी हो,
संकल्प लो तुम्हारे आचरण व्यवहार से ना किसी को हानि हो!
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