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मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया

इस जगत में सब नगद है कुछ उधार में नहीं आया
जिसने जैसा कर्म किया फल वैसा तत्काल ही पाया
वक़्त ने कभी किसी को इंतज़ार करना नहीं सिखाया! 
 
मैं ही मन, मन ही माया, मन ने मानव को भरमाया
मन ने सबको दुविधाग्रस्त कभी भला, कभी बुरा बनाया
मैं ही मन, मन ने ही, मन ही मन, मनमुटाव उपजाया
मैं की मंशा से मानव ने सुख कम दुःख अधिक पाया! 
  
मैं ही मन, मन में अहंकार व कुत्सित विचार समाया
एक अहंकारी मन ने दूसरों के प्रति ख़ुद को भड़काया! 
 
अहंकारी मन को चाहिए दूसरों से अपना पृष्ठ पोषण
अहंकारी मन को है दूसरों द्वारा की गई चिरौरी पसंद
एक अहंकारी मन चाहता दूसरों से प्रणाम नमन पूजन
सच में एक अहंकारी मन होता सभी दुःखों का कारण! 
 
एक अहंकारी मन प्रसन्न होता अपनी प्रशंसा से
मगर दुःखी हो जाता दूसरों के उदासीन व्यवहार से! 
 
एक अहंकारी मन का मनुष्य होता बहुत उद्दंड
एक अहंकारी मनुष्य होता नहीं कभी भी विनम्र
 
अहंकारी चाहता है पराई गतिविधियों पर नियंत्रण! 

एक अहंकारी आदमी दूसरों को आदर नहीं देता
चाहे सामने वाला उम्र में बड़ा हो या हो छोटा
हर हाल में चाहता हर कोई करे उनका ही आदर! 
 
किसी अहंकारी को नित नमस्कार करनेवाला शख़्स
अगर किसी दिन बिना नमस्कार किए गुज़र जाता
तो अहंकारी मन ही मन हो जाता कुपित अप्रसन्न! 
 
अहंकार और स्वाभिमान में बहुत अधिक अंतर होता
अहंकार आता पद, मद, धन-दौलत और भ्रष्टाचार से
पर स्वाभिमानी मानव पद, मद ,प्रतिष्ठा से परे होता! 
 
अहंकारी मानव हमेशा दूसरों से कुछ ना कुछ चाहता
चाहे धन वैभव पद प्रतिष्ठा हो या आवभगत ख़ुशामद
पर एक स्वाभिमानी मानव पराए से कुछ नहीं चाहता! 

गाली बुरी होती है मगर गाली लगती है कुपात्र को
चोर को चोर दस्यु को दुष्ट भ्रष्ट को भ्रष्ट कहने पर
चोर दस्यु भ्रष्टाचारियों को बहुत अधिक बुरा लगता
पर साधु सदाचारी को भ्रष्ट कहने पर दुःख नहीं होता! 
 
सदाचारी सज्जन स्वभाव से हर्ष विषाद से परे होता
साधु सदाचारियों को गालियों का भी असर नहीं होता!

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