मेरी माँ
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मेरी माँ में ख़ासियत थी
किसी को रेकार नहीं मारती
जिसको जो नाम दिया था
उसको उसी नाम से पुकारती!
बड़का ब्रह्मदेव को बरहो
छोटका वीरेन्द्र को बीरहो
कहके धीरे से पुचकारती
मँझले संजय के मुख में
अपना ही मुख निहारती!
तीसरे राजेश को राजाबाबू
चौथे सुनील को लेल्हा बेटा
कहकर मन से मनुहारती!
बेटी जो रोमा है
उसकी शोभा को निहारती
छुटकी निशी को पुतली
कहके बारंबार चुमकारती!
मेरी माँ मेरे पिता को
मेरे नाम से हे ब्रह्मदेव!
हे ब्रह्मदेव! हे ब्रह्मदेव!
कहकर धीरे से गुहारती
ना कभी थकती ना हारती
तीनों लोक मेरे पिता पर वारती
मेरी माँ! मेरी माँ! मेरी माँ!
किसी को रेकार नहीं मारती!
रेकार= किसी को रे अरे कहकर असम्मान जनक रूप से पुकारना। बिहार खासकर मिथिला संस्कृति में महिलाएँ अपने बच्चों को भी हो कहकर पुकारती हैं।
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