अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
अब राजनीति में नेता
चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
कल तक जो भ्रष्टाचारी थे
उन्हें महात्मा कहने पर बल देते
स्वार्थ सिद्धि हेतु जनता से छल करते!
भाई भतीजावाद के लिए जीते मरते
अब राजनेता क्या क्या नहीं करते रहते?
कुकर्म को सुकर्म, सुकर्म को कुकर्म कहते!
ऐसे तो मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना होते
राजनीति में राम में रावण होते, रावण में राम खोजते,
दोनों एक ही झोली के चट्टे बट्टे लगते,
रावण से राम निकलते, राम से रावण, पार्टी बदलते!
जातिवादियों का क्या कहना
हर हाल में देश काल के लिए वे काल होते,
सारे तोते हरे हरे दिखते, लाल भी कमाल होते!
वक़्त बदल जाए तो भी क्या?
चोर गुंडे भाई भाई अपनी माई के लाल लगते!
राजनीति में तर्क वितर्क बहुत होते
मगर राजनेता के चरित्र में कोई फ़र्क़ नहीं होते!
दुर्योधन को सुयोधन कह लो,
दुशासन को सुशासन, कुशासन कुछ भी कहो,
राजनीति में अच्छे बुरे उपसर्गों का अर्थ व्यर्थ होते!
सु उपसर्ग सुविधानुसार सूं-सूं करते,
कु काली कोयल सा कुहू-कुहू कह कूकते,
कु कुत्ते सा कभी कूं-कूं कभी भूँ-भूँ भौंकते,
दु कभी जनता को दुआ देते, कभी दुरदुराते!
नेता गिरगिट सा रंग बदलते, टोह में रहते,
अजगर सा नकारा होके कोठीनुमा पेट भरते,
जरदगव गिद्ध सा सामाजिक न्याय करते,
रंगा सियार सा बदरंग होकर हुआ-हुआ करते!
नेता योगरूढ़ को क्षण में तोड़ देते,
नेता मूढ़ की महिमा गायन करते नहीं थकते,
गुड़ को मिठाई कहकर मुफ़्त की रबड़ी बाँट देते,
जनता को जाहिल काहिल बनाने के लिए
और वोट पाने के लिए कुछ कोर कसर नहीं छोड़ते!
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