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चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज 

 

चाहे हम कितना भी बदल लें 
धर्म पंथ मत मज़हब 
मगर बदलते नहीं हमारे पूर्वज! 
 
चाहे हम कितना भी पढ़ लें 
धर्मग्रंथ किताब और पुस्तक 
किन्तु सबके एक ही होते 
ईश्वर अल्लाह ख़ुदा और रब! 
 
कुछ भी होता नहीं है सुलभ 
इस धरा पर बिना किए कर्त्तव्य 
चाहे लाख करो पूजा नमाज़ और हज 
बिना सत्कर्म होता नहीं सुख उपलब्ध! 
 
चाहे हम कितना भी रट घोंट लें 
किसी के कहे कथन तंत्र मंत्र को 
पर रटने घोटने से कुछ नहीं होता 
पिंजरे में बंद तोता राम राम जपता 
लेकिन पिंजरे से कहाँ मुक्त हो पाता? 
 
जब कोई अपने अंतर्मन में ध्यानस्थ होकर 
हो जाता है निःशब्द पा लेता है परम तत्त्व 
मिल जाती मुक्ति ये जीवन जीने की युक्ति
दूसरे के विचार विमर्श को बिना तर्क-वितर्क 
अपनाने से होता नहीं जीवन में हर्ष उत्कर्ष! 
 
कोई बंधा बँधाया ज्ञान आता नहीं है सबके काम 
इस बदलती दुनिया में नित हो रहा है अनुसंधान 
अच्छाई बुराई जान करो अमल तब होगा उत्थान! 
 
धर्म जीवन जीने की कला है धर्म बन जाए ना बला 
वैसे मत को मत मान जो मानव को उन्मत्त बनाता 
वैसे पंथ को मत पकड़ जो बढ़ते पथ का अंत कर दे
जो मतलबी बना दे वैसे मत मज़हब किस काम के! 
 
वैसे धर्म पंथ मत और मज़हब नहीं है ज़रूरी 
जो बढ़ाते हैं आपस में दूरी घृणा द्वेष मजबूरी
जो भेद करे आदम मनु नूह आदमी और मानव में 
जो मतभेद करे ईश्वर अल्लाह भगवान ख़ुदा रब में! 
 
जीव का धर्म है जीवन धारण और जीवंतता
मानव का धर्म मान सम्मान प्रेम मानवता 
मानव में भी जीवन है आदमी में भी दम है 
आदमी का काम नहीं जीवों का दमन करना
मानव का कर्म नहीं मानव को मारना मरना! 
 
हर देश के मानव को विरासत में मिलते हैं कुछ क़िस्से
जो निश्चित तौर पर नहीं होते किसी एक धर्म के हिस्से 
वो साझी संस्कृति, रीति, रिवाज़ और परंपरा होते हैं ऐसे
कि धर्म मज़हब बदल जाए फिर भी होते सबके एक जैसे
इसी एकत्व के मद्देनज़र विधर्मी हो जाते भाई बहन सगे 
साझे पूर्वज के प्रति सम्मान हो सब आपस में नाते रिश्ते! 

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