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दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं 

 

दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं 
श्री गुरुग्रंथ साहिब से सच्चा कोई धर्मग्रंथ नहीं
श्री गुरुग्रंथ साहिब के साधुओं से भले संत नहीं 
श्री गुरुग्रंथ साहिब के दस सद्गुरुओं से सज्जन 
कोई ऋषि कोई कवि कोई संत कोई महंत नहीं! 
 
श्री गुरुग्रंथ के प्रथम संपादक गुरु अर्जुनदेव जी 
और दशमेश पिता गोविंद सिंह ने गुरु पदवी दी
श्री गुरुग्रंथ में छह गुरु पंद्रह संत कवि की कृति 
प्रथम गुरु नानक देव से गुरु अर्जुन देव तक की
और नवम गुरु तेगबहादुर जी की गुरु वाणी भी! 
 
गुरु गोविंद महाकवि थे पर निज कृति नहीं डाली
गुरुग्रंथ में कबीर, नामदेव, रविदास, त्रिलोचन जी, 
शेख़ फरीद जी, सैणा जी, धन्ना जी, भीखन जी, 
जयदेव, सुरदास, परमानन्द, पीपा जी, सधना जी, 
रामानन्द, छीवा जी की भक्ति भजन कवितावली! 
 
गुरुग्रंथ में भेद नहीं, ना हिन्दू मुस्लिम जाति पाँति, 
जयदेव, सूरदास, परमानन्द आदि थे ब्राह्मण कवि, 
शेष समाज सुधारक संत कवि शेख़ फरीद थे नमाज़ी 
गुरुवाणी ब्रह्म ज्ञान से उपजी आत्मिक शक्ति को
जनकल्याण कार्य हेतु प्रयोग करने की प्रेरणा देती! 
 
ये गुरुग्रंथ संदेश जन्म मृत्यु चक्र तब तक अनवरत 
जब तक स्वार्थ अहंकार क्रोध में मानव रहता उन्मत 
अच्छी सोच से इंसान को मिलता राहत का रास्ता
जिसे ख़ुद पर भरोसा ईश्वर पर वही भरोसा करता 
अच्छा व्यक्ति वही जो धर्म के कारण नहीं बँटता! 
 
श्री गुरुग्रंथ साहिब में दो हज़ार पाँच सौ तैंतीस बार 
राम नाम का हुआ उच्चार, राम का एक अर्थ ओंकार 
दूसरा अर्थ राजा राम, तीसरा राम कृष्ण हरि अवतार 
गुरु नानकदेव ने शुरूआत की गुरुवाणी आसा दी वार–
 
‘हरि अमृत भिन्ने लोईणां मनु प्रेम रतन्ना राम राजे’
जित्थे जाए बट्टै मेरा सतगुरु सो थानु सुहावा राम राजे’
‘आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तैं रहै निरासा 
‘काम क्रोध जेहि परसे नाहि न, तेहिं घट ब्रह्म निवासा’
‘सोच विचार करे मत मन में जिसने ढूँढ़ा उसने पाया 
नानक भक्तन दे पद परसे निसदिन राम चरन चित लाया’
 
चतुर्थ गुरु रामदास ने राम नाम की महिमा गाई 
‘राम नाम को पैज वडेरी मेरे ठाकुरि आप रखाई!’ 
गुरु अर्जुन के मुखारविंद से राम कृष्ण के उद्गार 
ऐसे निकले ‘राम गोविंद जपेंदेयां होवा मुख पवित्तर’
  
‘हिंद दी चादर’ नवम गुरु तेगबहादुर जी कहे 
‘राम गियो रावण गियो जाको बोह परिवार’
‘राम कबीर एक भए है कोए न सकै पछानि’ 
सबके अपने-अपने राम मगर किसी के राम से 
किसी को न भय संसय राम सब राम सबके! 
 
गुरुग्रंथ ही ऐसा धर्मग्रंथ है 
जिसमें अंधविश्वास नहीं जातिवाद नहीं 
नस्लभेद वर्णभेद औ’ मज़हबी उन्माद नहीं! 
 
गुरुग्रंथ ही ऐसा धर्मग्रंथ है 
जिसमें स्वर्ण नरक की कपोल कल्पना नहीं
अप्सरा हूर परी जन्नत दोज़ख जल्पना नहीं! 
 
गुरुग्रंथ ही ऐसा धर्मग्रंथ है
जिसमें उपनिषद गीता त्रिपिटक का तर्क-वितर्क 
राम कृष्ण बुद्ध महावीर संत महात्मा का आदर्श! 
 
दस गुरुवर के नाम सुनो 
उनसे सारे ईश्वर भगवान का ज्ञान सुनो 
पहले गुरु नानक देव वेदी थे 
जो समाहार थे द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी के! 
  
गुरु नानकदेव से चला थी भक्ति आंदोलन की सिख लहर 
गुरु नानकदेव भी भक्त कवि थे मगर सुर तुलसी से हटकर 
गुरु नानकदेव के लिए बराबर था काबा काशी रोम मगहर 
गुरु नानकदेव के चरणों के चहुँ ओर घुमा फिरा मक्का शहर
जिन्होंने धर्म पंथ चलाया संगत पंगत गुरुगद्दी स्थापित कर 
 
गुरु नानकदेव जब अवतरित हुए भारत के धराधाम पर 
तब बर्बर मुग़ल आक्रांता बाबर आए थे भारतीय भूमि पर
गुरु नानक का लक्ष्य था विदेशी आक्रांता तुर्क मुग़ल से 
भारतीय जन जीवन को शोषण ग़ुलामी से मुक्ति दिलाकर
भारतीय संस्कृति का रक्षण पोषण भक्ति शक्ति युक्ति से! 
 
दूसरे गुरु अंगददेव जो आदि गुरु नानकदेव के संगी साथी 
जिन्होंने संगत पंगत गुरुगद्दी जमाई अंगद के पाँव जैसे 
इन्होंने गुरुमुखी लिपि चलाई, नानक लंगर प्रथा बढ़ाई! 
 
तीसरे गुरु अमरदास अकबर के समकालीन थे
जिन्होंने गुरुदर्शन के पूर्व भूखे प्यासे को लंगर छकाए
चौथे गुरु रामदास ने अमृत सरोवर खुदवाए 
अमृतसर स्वर्णमंदिर की नींव रखी आनंद कारज विवाह 
एक पत्नीव्रत विधवा विवाह चलाए सतीप्रथा मिटाए! 
 
सिख पंथ के पंचम गुरु अर्जुनदेव सोढ़ी थे 
परशुराम से संघर्षरत रहे क्षत्रिय खत्री सोढ़ी कुल के
जो अपने पूर्ववर्ती पूर्वज सहस्रबाहु अर्जुन सा 
‘अर्जुनस्य प्रतिज्ञा द्वय न दैण्यम न पलायनम’
की नीति पर चलने वाले प्रथम शहीद गुरु थे
प्रथम शहीद दी ‘सरताज’ की उपाधि से मंडित वे! 
 
गुरु अर्जुनदेव ने आक्रांता के समक्ष नहीं दीनता दिखाई 
ना रण से भागे ना नाम लजाए दोनों पूर्ववर्ती अर्जुन के
अमृतसर में हरिमंदिर बनाकर आदिग्रंथ स्थापित किए थे
जिन्हें हिन्दू धर्म को छोड़कर इस्लाम नहीं क़ुबूलने पर 
क्रूर जहांगीर ने ज़िन्दा गर्म तवे पर बिठाकर घोर यातना दी 
गऊ खाल में भरने के पूर्व गुरु अर्जुन ने जलसमाधि ले ली! 
 
छठे गुरु हर गोविंद गुरु अर्जुनदेव के पुत्र गुरुगद्दी पर बैठे 
ग्यारह वर्ष उम्र में मीरी और फ़क़ीरी की दो तलवार थामकर
श्रद्धालुओं को आदेश दिए अस्त्र-शस्त्र घोड़े गुरु को दान कर 
शाहजहां को तीन बार शिकस्त दे अकाल तख़्त स्थापक थे! 
 
सातवें गुरु हरराय ने औरंगज़ेब के विरुद्ध युद्ध लड़ कर 
हिन्दू समर्थक उदारवादी दारा शिकोह का बन गए पक्षधर 
आठवें गुरु हरकिशन थे जिनका आठ वर्ष में हुआ निधन 
इस आठ वर्षीय बालक गुरु पर इस्लाम विरोधी कार्य का 
आरोप लगा अताताई औरंगज़ेब ने जारी किया था सम्मन! 
 
छठे गुरु हरगोविंद पुत्र तेगबहादुर को नवम गुरु बनाए गए 
जिन्होंने औरंगज़ेब से डरे कश्मीरी ब्राह्मणों की चीत्कार पर 
निज ग्रीवा कटाई औरंगज़ेब से हिन्दुओं के लिए प्राण देकर 
गुरु तेग बहादुर पंजाब में आनंदपुर साहिब के संस्थापक थे 
धर्म प्रचार के दौरान पटना साहिब में पुत्र गोविंद प्रकट हुए! 
 
दशम गुरु गोविंद राय साक्षात्‌ महाकाल के ‘निजपुत्र’ अवतार थे
नौ वर्ष की उम्र में पिता तेगबहादुर को औरंगज़ेब की तलवार से 
कश्मीरी हिन्दू ब्राह्मणों की रक्षा के लिए बलिदान की प्रेरणा दी 
गुरु तेगबहादुर शहीद हुए जहाँ वहाँ है शीशगंज गुरुद्वारा दिल्ली! 
 
जब गुरु गोविंद राय सोढ़ी भारतीय क्षितिज में अवतरित हुए थे 
तब हिन्दू जन सनातन बौद्ध जैन वैदिक शैव शाक्त वैष्णव थे 
सबके अपने अलग-अलग वर्ण जाति मत पंथ ईश्वर और रब थे 
सबकी साझी संस्कृति थी फिर भी आपस में घृणा द्वेष था बेहद 
तब एक दूसरी जाति के प्रति न दया न धर्म ना अपनत्व सम्भव! 
 
ऐसी विषम घड़ी में गुरु गोविंद ने जाति मिटाने की निकाली रीति 
भिन्न-भिन्न जातियों के पंज-प्यारे इकट्ठा कर अपनाई पाहुल विधि 
दयाराम खत्री, धर्मराय जाट, मोहकमचंद छींवा, साहिबचंद नाई और 
हिम्मतराय कहार को अमृत छकाकर सबको सिंह उपाधि प्रदान की
अब सिख सिंह पंच ककार कड़ा कच्छ केस कंघा कृपाण से सजधज 
दया धर्म हिम्मत आकर्षक साहब सी शख़्सियत में हो गए लकदक! 
 
गुरु गोविंद राय सोढ़ी ने सिंहनाद किए खालसा सिंह-सेना बनाकर 
प्रण लेकर ‘चिड़ियों से मैं बाज़ तिराऊँ सवा लाख से एक लड़ाऊँ
तभी गुरु गोविंद सिंह नाम कहाऊँ’ शत्रु संहारे जातिवाद मिटाकर 
गुरु गोविंद सिंह ने हिन्दू धर्म औ’ वतन की आन बान के ख़ातिर 
आजीवन औरंगज़ेब से युद्ध किए थे चारों पुत्रों की बलि चढ़ाकर! 
 
सिरसा नदी पार करते माता गुजरी के साथ गुरु के दो छोटे बेटे 
नौ वर्षीय ज़ोरावर सिंह और सात वर्षीय फतेह सिंह संगत से छूटे 
गंगू नामक ब्राह्मण ने मुग़ल सैनिकों से मुखबिरी कर इनाम लूटे
दोनों बालकों को इस्लाम नहीं क़ुबूलने पर दीवार में चिनवाए गए 
दो साहबज़ादे अजीत सिंह और जुझार सिंह रणभूमि में शहीद हुए 
अंततः एक पठान शिष्य ने धोखे से गुरुगोविंद सिंह पर वार किए! 
 
गुरु गोविंद सिंह भारत के ऐसे संत सपूत अवधूत धर्मदूत ज्ञानी नायक 
जिनके प्रपितामह गुरु अर्जुनदेव, पिता गुरु तेगबहादुर, चारों वीर बालक 
फतेह सिंह ज़ोरावर सिंह जुझार सिंह अजीत सिंह माता गुजरी देवी जी
और स्वयं ख़ुद को बलिदान दिए देश धर्म हित में किए एक सर्व जाति 
सिख पंथ है सर्वधर्म समावेशी, सर्वे भवन्तु सुखिनः इसे अपनाने में ही! 
 
जिस पंथ के धर्मगुरुओं ने देश धर्म के ख़ातिर सर्वंवंश का बलिदान दिए 
सनातन धर्म मत में आई जातिवाद वर्णभेद की बुराई मिटाना ठान लिए 
जिनके अनुयायी बंदाबहादुर, हरि सिंह नलवा, जस्सा सिंह अहलूवालिया ने 
गुरु पुत्रों की बलि का बदला लिए, बब्बर शेर का जबड़ा उखाड़े, दुष्ट संहारे 
शहीदे आज़म भगतसिंह ने अंग्रेज़ी हुकूमत विरुद्ध लगाए इन्कलाब नारे 
ऐसे गुरुपंथ गुरुग्रंथ वाहेगुरु की खालसा वाहेगुरु का फ़तह सत श्रीअकाल! 
 

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