मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
मुझे नास्तिक कहने वाले तुम आस्तिक कितने हो?
किसी ख़ास क़िस्म की लिबास पहनना,
किसी ख़ास दिशा के ईश में आस्था रखना,
यदि आस्तिकता की परिभाषा है
तब तो मेरा नास्तिक है बसंती चोला!
मेरा ईश्वर मेरे अंदर, सबके अंदर में,
मेरा ईश्वर सभी दिशा में, सभी वेश में,
मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद, गिरजाघर में,
धरती के ज़र्रा-ज़र्रा, हर कंकड़-पत्थर में,
माटी की जीती जागती मूरत में मेरा रब!
मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ
मैं नास्तिक क्यों हूँ?
किसी ख़ास क़िस्म की भाषा में
किसी ख़ास नाम के ईश्वर को
यदि पूजने नवाज़ने की प्रथा है आस्तिकता
तो मैं भगत सिंह नास्तिक हूँ!
मेरी धरती मेरी माँ, पिता मेरा आसमाँ,
मैं आज़ादी का बंदा, मैं नानक का परिंदा
मैं गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी का बाज़ हूँ ऐसा
कभी काशी के शिवालय के मुँडेर पर
कभी जलियांवाला बाग़़ में रहा मेरा बसेरा,
कभी कांधार के बामियानी बौद्धमठ में डेरा!
मैं तक्षशिला का पढ़ा लिखा सुवा हरा हूँ
कभी मस्जिद के गुंबद मीनार पर बैठा
काबा काशी रोम तक फैला व्योम है मेरा
मेरी क्रांति में शान्ति का मसीहा बसता
मेरा सपना तुम्हें आज़ाद बना जाना था
अपने भारत को स्वर्ण मंदिर बनाने का!
किन्तु तुम आज भी आज़ाद नहीं हो
धार्मिक-मानसिक-भाषाई ग़ुलामी में
जकड़े अपने पर कुतरे अधमरे पड़े हो!
मैं भगतसिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
मैं नास्तिक हूँ क्योंकि तुम छद्म आस्तिक हो!
तुम्हारी आस्था में मेरा ईश्वर शेष नहीं है
तुम्हारी व्यवस्था में मेरा अखंड देश नहीं है
तुम्हारी पूजा में मेरी माँ की थाली सजी नहीं है
तुम्हारा नमाज मेरे ख़ुदा को आवाज़ नहीं देता है
तुम्हारे रंगों में धरती माँ की चूनर धानी नहीं है
तुम्हारा चोला मेरे जैसा बसंती चोला नहीं है
तेरा साफा केसरिया गुरु गोविंद सा सर्ववंशदानी
बलिदानी जवांदानी देश धर्म की वाणी नहीं है!
तेरी चादर बुद्ध, महावीर,
विवेकानंद सा गेरुआ त्याग की नहीं है
तुम पूरी तरह से सफ़ेदपोश बन चुके हो
तुम्हारे रक्त का रंग एक सा लाल नहीं है
लाल में लाल, हरा, सफ़ेद रंग घोल कर
तुम पूरी तरह से बदरंग हो चुके हो!
तुम्हारा लाल झंडा किसान को नहीं
चीन को सलाम करता है
तुम्हारे हरे रंग में धरती की हरियाली नहीं है
तुम्हारे श्वेत रंग में
सफ़ेद कपोत की शान्ति नहीं है!
अस्तु मैं भगतसिंह बोल रहा हूँ
मैं तुम्हारे जैसा छद्म आस्तिक नहीं हूँ!
मैं नास्तिक हूँ
मैं गुरु नानक देव वेदी का परिंदा,
गुरु गोविंद सिंह महाराज का बाज,
तक्षशिला का जन्मों जन्म का पढ़ा तोता
जलियांवाला बाग़ की चीख भरी आवाज़ हूँ!
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