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ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’

 

हे ब्राह्मण! स्वधर्म कर्त्तव्य का करो निर्वहण 
अन्यथा हिन्दू धर्म का तेज़ी से होगा क्षरण, 
करो सनातन धर्म और संस्कृति का संरक्षण, 
तुम्हारा कर्म अद्विज जन का करो उपनयन 
ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’! 
 
तुम्हारा संस्कार नहीं सूट-बूट पेंट-टाई के अंदर 
उपनयन पहनकर, तिलक लगाकर सिर्फ़ इठलाना, 
तुम्हारा काम नहीं है सनातनी बहुजनवादी नारा 
‘जय भीम’ तर्ज़ में ‘जय परशुराम’ हाँक लगाना, 
पुरोहित कर्म नहीं यजमान से प्रतिस्पर्धा करना! 
 
परशुराम द्वारा क्षत्रिय हनन का दुखद दौर था, 
सहस्रार्जुन सर्व क्षत्रिय विशजन का सिरमौर था, 
धर्मगुरु का काम नहीं है स्वधर्मी से वैर पालना, 
दुखद आख्यान से यजमान को न आहत करना, 
धर्माधिकारी का कार्य धर्मानुयाई को राहत देना! 
 
जब ऋषि मुनि ने जनेऊ पहनाकर उपनयनकर 
तीनों वर्ण ‘ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य’ को एक किया
सबको एक ‘द्विज’ संज्ञा देकर ब्राह्मण बनाया
तो क्यों उन्हें उपनयन देना छोड़ शूद्र कह दिया? 
वर्णसंकर वृषल कहकर जातिवादी घृणा फैलाया! 
 
‘ब्राह्मण: क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्णा द्विजातयः। 
चतुर्थ एक जातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पंचमः॥(म) 
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य त्रिवर्ण है एक द्विज जाति, 
चौथा (उपनयनहीन) जाति शूद्र पाँचवाँ कोई नहीं, 
जबकि ‘चातुर्वण्यं मया स्रष्टं गुण कर्म विभागशः’! (ग) 
 
फिर तुम कैसे भूल गए ऋषियों की ये परम्परा, 
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ ऋषियों का उद्बोधन न्यारा, 
ऋषि सबके गोत्र पिता पर उन्हें विप्र पूर्वज बता, 
स्वयं ब्राह्मण बन गए शेष को शूद्र बना दिया? 
धर्म पुरोहित होने के नाते यही कर्त्तव्य तुम्हारा? 
 
ये मनु ने कहा ‘शूद्र ब्राह्मणता को प्राप्त होता, 
ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त होता’ तुम्हें नहीं पता? 
यानी ‘शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्
क्षत्रियाज्जातमेवन्तु विद्याद्वेश्यात्तथैव च। ‘ (म) 
जन्म से सभी शूद्र होते, संस्कार से द्विज होता! 
 
‘जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते’
और ‘जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते’ 
किसी शास्त्र ने नहीं कहा जन्म से ब्राह्मण होते, 
जन्म से सभी शूद्र होते कर्म से द्विज बन जाते, 
वशिष्ठ पराशर व्यास आदि जन्मना विप्र नहीं थे! 
 
सभी जन्मजात ब्राह्मण को ये ज्ञात होना चाहिए 
कि ‘जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः
वेद पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः’
जन्म से सभी शूद्र, संस्कार से द्विज, वेद ज्ञान से 
विद्वान होते, ब्रह्म जानते सो ब्राह्मण कहे जाते! 
 
क्या आज जन्मना ब्राह्मण होते ऐसे गुणग्राही? 
‘कर्म-शील-गुणा: पूज्यास्तथा जाति-कुले नहि 
नात्मना न कुलेनैव श्रेष्ठत्वं प्रतिपद्यते’ यानी 
कर्म शील गुण पूजनीय, जाति कुल मान नहीं! 
 
या ‘न जात्या ब्राह्मणश्चात्र क्षत्रियो वैश्यएवच 
न शूद्रो न च वै म्लेच्छो भेदिता गुण कर्मभि:’! 
जाति से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र म्लेच्छ नहीं, 
बल्कि गुण कर्म से भेद हुआ, यही है शुक्रनीति! 
 
आज भी पादरी सभी ईसाइयों से क्यों आदर पाते? 
क्योंकि वे ख़ुद बपतिस्मा लेते और ईसाइयों को देते, 
क्यों मौलवी के फ़तवा को सभी मुसलमान मानते? 
क्योंकि वे ख़ुद सुन्नत करते और मुस्लिमों से कराते, 
पादरी और मौलवी मतानुयाई से भेदभाव नहीं करते! 
 
मगर आज ब्राह्मण से सारे हिन्दू हिक़ारत क्यों करते? 
क्योंकि ब्राह्मण जाति बिना वांछित ज्ञान व संस्कार के
सूट-बूट पेंट-टाई के नीचे जनेऊ धारणकर द्विज बनते, 
बिना ज्ञान द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी उपाधि धारण करते, 
किन्तु अद्विज हिन्दुओं को शूद्र कह कर घृणा पालते! 
 
जन्मना ब्राह्मण हिन्दू से जाति उच्चता का मान चाहते, 
मगर हिन्दुओं को द्विजत्व का समान अधिकार नहीं देते, 
वे ऋषियों का ब्राह्मणीकरण करके अपनी स्वजाति बताते, 
बड़ी-बड़ी जातिगत उपाधि ग्रहणकर सबको अद्विज मानते, 
आज विडम्बना ऐसी है कि पुरोहित से यजमान भय खाते! 
 
जन्मजात ब्राह्मण में मिथ्या अभिमान फैल गया है ऐसा 
कि धर्मशास्त्रों के घृणा द्वेष का बचाव करते शत्रुओं जैसा, 
ब्राह्मण की पहचान हो गई है अहं वहम पद प्रतिष्ठा पैसा, 
यही है कारण अब बहुसंख्यक हिन्दू जाति पुरोहिताई रहित 
बौद्ध-जैन-सिख पंथों में पुनर्वापसी करने में समझते हित! 
 
कुछ जन्मजात ब्राह्मण पुरोहित कथा वाचक हो गए ऐसे 
वाचाल प्रवंचक, जो ग़ैर ब्राह्मण हिन्दुओं को हीन समझते, 
नेत्रहीन ब्राह्मण भी खुलेआम ब्राह्मणवाद का एलान करते 
कि उनका पुनर्जन्म हो ब्राह्मण में फिर चाहे नयन न मिले, 
पर पवित्र वशिष्ठवंशी ब्राह्मण कुल जाति में ही जन्म मिले! 
 
तो क्या वशिष्ठ-शक्ति-पराशर-व्यास जन्मजात विप्र थे? 
महाभारत में अपनी वंशावली लिखी है स्वयं वेदव्यास ने 
‘गणिका गर्भ संभूतो वशिष्ठश्च महामुनि:। 
तपसा ब्राह्मणो जातः संस्कारस्तत्र कारणम्॥
जातो व्यासस्तु कैवर्त्याः श्वपाक्यास्तु पराशरः। 
वहवोऽन्येऽपि विप्रत्वं प्राप्ताः पूर्वं येऽद्विजा॥‘ (महा) 
 
गणिका गर्भोत्पन्न महामुनि वशिष्ठ तप से हुए ब्राह्मण, 
क्योंकि ब्राह्मणत्व के लिए होता ज्ञान संस्कार ही कारण! 
व्यास मल्लाही से, श्वपाकी या चाण्डाली से ऋषि पराशर 
और दूसरे भी जो पूर्व में अद्विज थे, हुए हैं विप्र प्रवर! 
 
मनु कथन ‘अक्षमाला वशिष्ठेन संयुक्ताधम योनिजा। 
शारंगी मंदपालेन जगामाभ्यर्हणीयताम्॥(मनु-9/23) 
सुनो! अधमयोनिजा अक्षमाला वशिष्ठ से संयुक्त हुई 
और शारंगी मंदपाल ऋषि से पत्नीभाव को प्राप्त हुई! 
 
हे ब्राह्मण! जितने भी ऋषि मुनि थे कोई नहीं ब्राह्मण जाति से, 
जैसे तुम ऋषियों के गोत्र उपाधि ले लिए हो, वैसे अद्विज को दे दो, 
जैसे भंगी को वाल्मीकि कहते हो, वैसे दास दलित को वशिष्ठ कह दो, 
स्वपच चाण्डाल को पराशरगोत्री, केवट मल्लाह धीवर को व्यास कहो, 
राम दास हरिजन उपाधि उनकी अपवित्र हो गई, झा मिश्र उपाधि दे दो! 
 
ये मैं नहीं कहता भागवत में वैश्यम्पायन ऋषि ने युधिष्ठिर से कहा 
न कुलेन न जात्या वा क्रियामिब्रह्मिणो भवेत। 
चाण्डालोऽपि हि वृत्तस्थो ब्राह्मणः स युधिष्ठिर॥
कुल जाति क्रिया से ब्राह्मण नहीं होता, गुणी चाण्डाल भी है ब्राह्मण, 
जिसका जीवन धर्मार्थ परोकारार्थ जिनका मुख कांतिमान वो ब्राह्मण! 
 
जिसने भी क्रोध अहंकार ईर्ष्या द्वेष हिंसा किया वो ब्राह्मण नहीं था, 
जिसने भी छल-छंद प्रपंच धोखा मारकाट मचाया वो ब्राह्मण नहीं था, 
जिसने गुण ज्ञान संस्कार निःस्वार्थ भाव से दान नहीं किया वो क्या? 
वो गुरु नहीं, वो ज्ञानी नहीं, वो ब्राह्मण नहीं, महामानव नहीं हो सकता, 
जिसने भी मानव को घृणित जाति में बाँटा वो होगा विदेशी आक्रांता! 
 
आक्रांताओं को महिमामंडित करना हर धर्म मत मज़हब में एक धोखा, 
जैसे आक्रांता क़ासिम ग़ज़नवी ग़ोरी बाबर औरंगज़ेब अँग्रेज़ आदर्श नहीं
धर्मांतरित भारतीय सनातनी मुस्लिम और ईसाई धर्मानुयाई भाइयों का, 
वैसे हिंसक शक मग ईरानी याजक आदर्श नहीं सनातन धर्मी हिन्दू का, 
भारतीय संस्कृति में कोई स्थान नहीं था वर्णश्रेष्ठता और जातिवाद का! 

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