नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
नारी तुम किस रूप में हो
तुम माँ बहन बेटी अर्धांगिनी
ईश्वर की नायाब कृति हो!
तुम प्रेम करुणा दया ममता
मातृत्व की प्रति मूर्ति हो
तुम माँ बनकर जनती संतति
दूध पिलाकर पालती हो!
पर दो जून की रोटी के लिए
संतति का मुख निहारती हो
क्या माँ रूप में तुम हारती हो?
बहन बनके भाई कलाई को
तुम बड़े प्रेम से सँवारती हो
मगर विवाह हो जाने भर से
हक़ वंचित कर दी जाती हो
क्या बहन रूप में अवांछित हो?
जब बेटी बनकर आती हो
तब कोख में डरकर जीती हो
क्या बेटी पहली पसंद नहीं माँ की?
नारी तुम हर रूप में पूजनीय हो
मगर अक़्सर प्रताड़ित होती हो
मातृ भ्रूण में तुम्हें पहचान कर
तुम्हारी भ्रूण हत्या कर दी जाती!
अगर भ्रूण से ज़िन्दा बचके आती
तब कन्या रूप में तुम पूजी जाती
पर सूने में शैतान सिरफिरे रिश्ते
बलात्कृत कर मारते हैं जीते जी!
कन्या बड़ी होके अर्धांगिनी बनके
दूसरे घर को सँवारने जाती हो
वहाँ नारी के दूसरे रूप सास से
नारी दुत्कारी सताई मारी जाती!
नारी जब तुम माता बनती हो
तब देवी सदृश पूजी जाती हो
जहाँ तुम्हारी पूजा नहीं होती
वहाँ देवता भी रमण नहीं करते!
मगर तुम्हारा दूजा रूप पुत्रवधू
तुम्हें फिर सताने आ जाता
पेटभर खाने को मुहताज करता
ख़ुद के जाये पुत्र को बदल देती!
नारी तुम सबसे प्रेम करती
मगर अपने रूप से हार जाती हो!
नारी जाति की व्यथा कथा
कोई सुनता नहीं पिता के सिवा
धाता विधाता भी वाम होता
भाग्य लेख लिखने में नारी का!
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