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अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती

 

ये कैसी है दोयम दर्जे की घृणित मानसिक प्रवृत्ति 
कि एक तरफ़ सीता राम को मान रहे काल्पनिक 
मगर राम द्वारा शूद्र शंबूक हत्या को वास्तविक! 
 
ये कैसी समाज को विभाजित करने की है दुर्नीति 
कि वाल्मीकीय रामायण को मिथ्या कथा समझते 
मगर पेरियार के सीता चरित्र हनन को सच कहते! 
 
अगर राम को शूद्र हंता कहकर घृणा द्वेष फैलाते
तो नारीहर्ता रावण के प्रति क्यों सहानुभूति रखते? 
क्यों रावण वध से राम को ब्रह्महत्या पाप लगाते! 
 
एक तरफ़ दुर्गा को कल्पित कह कर घृणा परोसते, 
फिर दुर्जन महिषासुर को पूर्वज कहकर क्यों पूजते? 
अगर ब्राह्मणवाद बुरा है तो बहुजनवाद भला कैसे? 
 
आर्य का अर्थ आक्रांता नहीं है, होता श्रेष्ठ भद्र ज्ञानी 
वैसे अनार्य यानी अनारी अनाड़ी अज्ञानी, राक्षस नहीं, 
अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती! 
 
संस्कारित होकर संस्कृत बन गयी है पाली प्राकृत ही, 
आडम्बर बढ़ जाता है धर्म व भाषा के प्रयोक्ता में भी, 
संस्कृत में आकर धर्म हो गया है पाली का धम्म ही! 
 
मगर धम्म सनातन, पर धर्म में कल्पना ने जगह पाली, 
धम्म है प्राकृतिक जगत, धर्म बना ईश्वरीय मूर्तिपूजक, 
धम्म प्राकृतिक नियम है, धर्म में विधि-विधान पाखण्ड! 
 
पाली का इसि हो गया ऋषि संस्कृत में इसिवर ऋषिवर 
भिक्खु का अर्थ भिक्षुक नहीं बल्कि है भ्रमणशील शिक्षक 
भ्रमण कर शिक्षा देनेवाले भिक्खु बुद्ध थे इसिवर ईश्वर! 
 
बुद्ध की वेदना अध्ययन का काल वेदिक या वैदिक काल 
बुद्ध ही मानव मन की वेदना के पहले अध्येता वेदिक थे 
मन की संवेदना सामवेद, आयुर्वेद मानव की वेदना आयु से! 
 
पाली के सुज्झति-बुज्झति से सुज्झ-बुज्झ ही बना सूझबूझ, 
सुध्द-बुध्द शुद्ध-बुद्ध शुद्र-बुद्ध संस्कृत में हुआ शूद्र बुद्ध, 
संस्कृत में बुद्ध के प्रति घृणा है ऐसी कि बुद्ध हुए बुद्धू! 
 
बुद्ध के पूर्व और बुद्ध के समय तक में गालियाँ नहीं थी, 
बुद्ध के बाद संस्कृत काल से अब तक बहुत गालियाँ बनी, 
भो-सिरी यानी हे श्रीमान ही आज भोषड़ी गाली बन गयी! 
 
बुद्धू बुद्धिहीन कहलाता है, बुड़बक संज्ञा हो गई बौधा की, 
मंगल बुद्ध मंगरा बुधना, जो मंगलकारी विद्वान थे कभी, 
समन का अर्थ है समान, बमन का अर्थ बुद्धिमान सुमति! 
 
अब संस्कृत में समन श्रमण श्रमिक, बमन ब्राह्मण जाति, 
श्रमण संस्कृति वाले शुद्ध बुद्धवादी से बन गई शूद्र जाति, 
पाली प्राकृत से संस्कारित होकर संस्कृत की है ऐसी स्थिति! 
 
जो बुद्ध काल में खत्ती खत्तीय, अब क्षत्रिय जाति कहलाती, 
ऐसे ही पाली प्राकृत से संस्कृत आज हिन्दी भाषा बन पड़ी, 
हिन्दी हिन्दू धर्म की भाषा है ऐसी जिसमें जातिवाद है बड़ी! 
 
जो अरि को हत कर अर्हत बुद्ध बने वही आज अहीर जाति, 
शाक्य मुनि गौतम बुद्ध गोरक्षी थे जिससे बनी गोरखा जाति, 
धम्म को जानने को उन्मुख थे वे अब कहलाते धानुख जाति! 
 
मार पर विजय पानेवाले हैं महार, चँवरधारी से बनी चमार जाति, 
भग्नवान भंगी भगवान बुद्ध का नाम, जिससे बनी भंगी जाति, 
ऐसे भीमराव अंबेडकर ने जाना महार चमार भंगी थे बुद्धवादी! 
 
वर्तमान ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र वर्ण की तमाम जातियाँ थी 
बौद्ध जैन वैदिक धर्मावलम्बी, समयानुसार बदलते रहे हैं सभी, 
ये जातिगत स्थिति भी आगे चलके स्वतः बदल जाएगी कभी! 
 
हियानी यानी निश्चित बुद्धमार्गी बौद्ध कहलाते लगे हीनयानी, 
जिन्होंने बुद्ध के बनाए नियम बदल दिए थे वे बौद्ध महायानी, 
धर्म नहीं शाश्वत कोई धर्म बदलता है, हिन्दू धर्म है महायान ही! 
 
परिवर्तन है प्रकृति का शाश्वत नियम धर्म में भी होता परिवर्तन, 
वैदिक धर्म में यदि पाखण्ड था तो बौद्ध धर्म में भी थी जकड़न, 
बौद्ध धर्म का भिक्षाटन विनय का नियम-संयम में काफ़ी उबन! 
 
धर्म चक्र सतत गतिशील, सनातन का अर्थ नहीं आदि नहीं अंत, 
धर्म को पीछे मोड़ मूल रूप में वापस कर सकता नहीं कोई संत, 
ब्राह्मण या दलित के चाहने से लौटेगा नहीं वैदिक या बौद्ध पंथ! 
 
ये हिन्दी संस्कृत बनेगी नहीं, संस्कृत पाली प्राकृत में लौटेगी नहीं, 
ये हिन्दी आगे चलकर मेल मिलाप की भाषा बन सकती भारत की, 
प्रयत्न व प्रतीक्षा से भाषा जाति संस्कृति में बहुत सुधर जाती! 
 
सनातन धर्म का वर्तमान रूप हिन्दू धर्म एक देशज उदित स्वधर्म, 
इसकी बुराई जातिवाद में सुधार कर स्वीकार करना है उचित कर्म, 
देशधर्म की पुकार सवर्ण असवर्ण बहुजन में बँटना अनुचित अधर्म! 

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टिप्पणियाँ

अरुण कुमार प्रसाद 2023/11/15 10:17 PM

अद्भुद. इसे प्रसारित प्रचारित करना चहिये.

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