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तब बहुत याद आते हैं पिता 

 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
जब किसी काम के लिए निकलता हूँ 
और किसी का साथ नहीं मिलता 
तब बहुत याद आते हैं पिता! 
 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
जब किसी से मदद की उम्मीद करता हूँ 
और मदद नहीं मिल पाता 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
 
तब बहुत याद आते है पिता 
जब किसी भाई से कुछ याचना करनी पड़ती 
और वो कुछ देर में सोचने की मुद्रा में आ जाता
तब बहुत याद आते हैं पिता! 
 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
जब किसी रिश्तेदार से कुछ समय माँगना होता 
और वो नकारने के लिए कोई बहाना खोज लेता
तब बहुत याद आते हैं पिता! 
 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
जब दुखी होकर दिल का हाल सुनाना चाहता 
और तलाशता हूँ वैसा अक्स जो पिता के समकक्ष 
काका का मुख निहारता हूँ जहाँ नहीं दिखता
पिता सा नैन नक़्श अपनत्व, काका काक सा शख़्स! 
 
तब बहुत याद आते हैं पिता 
जब किसी समस्या से बहुत रोने का मन करता 
कुछ बातें किसी बुज़ुर्ग को कहने का मन करता
तब मिलान करता पिताजी से श्वसुरजी का मुखड़ा 
जो उतना भर ही परिचित और अपरिचित लगता 
जितना परिचय और अपरिचय विवाह के वक़्त था! 
 
तबसे बहुत याद आते हैं पिता 
जबसे मुझे अकेला अनाथ छोड़कर वे चले गए 
तबसे बहुत आते हैं मेरे पिता 
जब मेरी माँ को भी वे एक दिन चुपके से ले गए! 
 
अब तो हाल ए दिल ऐसा है 
कि जिस भाई में पिता की थोड़ी सी झलक दिख जाती 
उसके साथ बतियाने की ललक जग जाती 
मगर कुछ देर में तंद्रा भंग हो जाती हलक़ सूख जाता 
पिता के बराबर दूसरा जगत में कोई नहीं होता! 
 
वो पिता ही तो थे 
जो हर जगह साथ जाने को तैयार रहते थे
वो पिता ही तो थे जो कभी बहाने नहीं बनाते थे 
वो पिता ही थे जो मेरे चेहरे में सुख-दुख को पढ़ लेते थे! 
 
वो पिता ही तो थे जो मेरे काम में कभी नहीं थकते थे 
वो पिता ही तो थे जो मेरे लिए आसमान उठा लेते थे 
वो पिता ही थे जो मेरे लिए सारे भगवान जगा देते थे! 
 
वो पिता ही तो थे 
जिनके पैर नहीं लचकते थे मेरे लिए सीढ़ी चढ़ने में 
जिनके बाँह नहीं दुखती थी मेरे लिए नई राह गढ़ने में 
उनके घुटने नहीं टटाते थे मुझे स्कूल तक छोड़ने में! 
 
वो मेरे पिता ही थे 
जो मेरे मित्र के उतने ही पिता बन जाते जितने मेरे पिता थे
वो मेरे पिता ही थे जो मेरे मुँह से बाबूजी सुनते चौंक जाते थे
वो पिता थे मेरी बीमारी सुनकर मेरे पास रात भर जग जाते थे! 

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