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यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की

यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की, 
प्रकृति, पुरुष, संयम और नियम ब्रह्म की, 
आयु क्षमता निर्भर प्रकृति ऊपर पुरुष की, 
प्रकृति चाहे तो बदल देती विधि यम की! 
 
यह कथा है भारतीय नारी की आस्था की, 
नारी है प्रकृति छाया औ’ माया परब्रह्म की, 
नारी होती उमा रमा ब्रह्माणी की प्रतिमूर्ति, 
नारी को शक्ति है यम नियम बदलने की! 
 
पतिव्रत धर्म का प्रण प्राण प्रमाण सावित्री, 
सावित्री की भक्ति से पराजित हुए यम भी, 
अल्पायु सत्यवान को सावित्री ने वरा पति, 
सनातनधर्म में एक बार पतिवरण की रीति! 
 
यम ने जब प्राण हरण किए सत्यवान के, 
सावित्री भी चलने लगी यम के पीछे-पीछे, 
यम ने कहा लौट जा अब आना ना आगे, 
पति के ऋण से मुक्त हो जा श्राद्ध करके! 
 
सावित्री ने विनम्रता पूर्वक कहा ये यम से, 
पति संग जाने का अधिकार मिला धर्म से, 
जहाँ मेरे पति स्वयं जाए या आप ले जाएँ, 
वहाँ मैं जाऊँगी कहता सनातन धर्म मुझसे! 
 
तप गुरुभक्ति पतिप्रेम व्रतपालन तव कृपा, 
मेरी गति कहीं रुक नहीं सकती पितृदेवता, 
मात्र सात पग साथ चले तो हो जाती मैत्री, 
ऐसा कहते तत्वदर्शी इस नाते सुनो विनती! 
 
मन और इन्द्रियों को जीतना है धर्मपालन, 
जितेन्द्रिय पुरुष विवेक से करते धर्मधारण, 
स्वर, अक्षर, व्यंजन, युक्तियुक्त वचन सुनकर, 
यम ने कहा सावित्री से एक वर ले जा घर! 
 
सावित्री ने कहा मेरे श्वसुर को चक्षु दान दें, 
यम ने तथास्तु कहके कहा अब तू मान ले, 
व्यर्थ श्रम ना कर जा घर पति को छोड़कर, 
सावित्री ने कहा पति सती की गति देवेश्वर! 
 
आप जहाँ भी जाएँगे मेरे प्राणनाथ को लेकर, 
वहाँ तक मेरी भी गति है सत्वर हे मान्यवर, 
सत्पुरुषों से एकबार समागम होना अभीष्ट है, 
सत्पुरुषों की मित्रता तो सबसे बढ़कर इष्ट है! 
 
सत्पुरुषों की संगति होता नहीं निष्फल कभी, 
आप साक्षात्‌ धर्म मैं छोड़ूँगी नहीं धर्म संगति, 
यम प्रसन्न हो बोले तूने कही सबके हित की, 
सत्यवान छोड़कर दूसरा वर माँग ले भामिनी! 
 
दूसरा वर दें मेरे श्वसुर को मिले खोई सम्पत्ति, 
राजपद, वे सदा आरूढ़ रहे धर्म पे हे वैवस्वत, 
सूर्यपुत्र यम ने कहा तथास्तु लौट जा सावित्री, 
सावित्री भी सविता की पुत्री कहाँ मानने वाली! 
 
वे कहने लगी फिर से हे यम! सारी प्रजा को
आप बाँधते नियम संयम से, कहलाते हैं यम, 
मन वाणी कर्म द्वारा प्राणी से द्रोह न करना, 
सब पर दया भाव बनाए रक्खे ये साधु लक्षण! 
 
आप यम संयम नियम और सनातन धर्म हैं, 
अल्पायु शक्तिहीन प्राणियों के लिए दयालु हैं, 
मेरी माँ व मुझे पुत्रवती होने का वरदान करें, 
जो माँगा सो दिया अब जाओ ज़िद छोड़कर! 
 
इस तरह यम अपने नियम से बाधित होकर, 
एक पति के प्राण छोड़ गए सती से हार कर, 
वस्तुतः नारी ही नारायणी है इस धरातल पर, 
नारी है प्रकृति जिससे उद्भासित होते ईश्वर! 
 
अस्तु नारी ही रूप प्रदान करती परमात्मा को, 
नारी ही जन्म-पुनर्जन्म देती रही जीवात्मा को, 
नारी जीवात्मा को महीनों तक कोख में रखती, 
किसी को पुरुष भाव किसी को स्त्री भाव देती! 
 
नारी अपने गर्भ में जीवात्मा को दस माह तक, 
यम नियम की उम्र गिनती से परे धता रखती, 
नारी को ईश्वर ने बहुत अधिक शक्ति भक्ति दी, 
नारी को ईश्वर ने बहुत अधिक करुणा दया दी! 
 
नारी में बहुत अधिक प्रेम ममता आसक्ति होती, 
नारी में क्रूरता बर्बरता हिंसा की भावना कम होती, 
यह सच्चाई है कि यमपाश से प्रेमपाश दृढ़ अति, 
नारी के मनुहार से यम ने बदली थी धर्म नीति! 

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