कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
काव्य साहित्य | कविता विनय कुमार ’विनायक’15 May 2024 (अंक: 253, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
आत्मा से, देह से या कवि की कल्पना से!
सुदर्शन चक्रधारी को प्रेम पुजारी बनाने को,
राधा तू आई गोकुल बोलो किसके स्नेह से?
कृष्ण के बचपन में रास रचाने आई कहाँ से?
भक्ति और आसक्ति की ठाँव बरसाने गाँव से!
बेड़ी बँधी कोख से बेड़ी को तोड़कर आए जो,
उनको प्रेम हथकड़ी पहनाने तू आई कहाँ से?
कृष्ण के छुटपन में, तुम युवती हो आई कैसे?
वेद पुराण या जयदेव, विद्यापति के गान से!
राजाओं के आश्रित बंदी भाट, चारण कवियों से,
भक्ति, शृंगार, पांथिक साम्प्रदायिक ऊहापोह से!
वेद व्यास ने देखा नहीं, भागवत ने बाँचा नहीं,
जयदेव, विद्यापति के कंठ से निकली हो सुर से!
अनायास ही तू राधा बालकृष्ण की हो गई कैसे?
ब्याहता तुम किसी की, केली की कृष्ण से कैसे?
संदीपनी आश्रमवासी अरिष्टनेमी के शिष्य को,
शस्त्र-शास्त्र अनुसंधानी को गँवार बनाया कैसे?
गीता के वाणी को, वेद उपनिषद ब्रह्मज्ञानी को,
अध्ययनशील प्राणी को, लांछन लगाया तूने कैसे?
उम्र में छोटे थे, योद्धा वो बड़े थे मल्लयुद्ध में,
चाणूर-मुष्टिक हारे, कंस संहारे बिना गुरु के कैसे?
मातृ कोख पे पहरा था, शिशुहंता कंस के क़हर से
नजात दिलाने जो प्रकट हुए थे काल कोठरी से!
धरती के धर्म को, नारी के मान को दु:शासन से
मुक्ति दिलानेवाले योगी को प्रेमरोगी बनाया कैसे?
तू वृषभानु वैश्य की कन्या, रायाण की ब्याहता हो,
माँ यशोदा की भाभी कृष्ण की प्रेमिका बनी कैसे?
रुक्मिणी, सत्यभामा सी अष्ट पटरानियों के रहते,
तू राधा कृष्ण की वामांगी हो गई कब और कैसे?
कृष्ण नहीं रसिया थे, वे मर्यादित धर्म के रक्षक थे,
सौ गालियाँ सुनी भाई से, बात आई ज्यों चरित्र पे!
चला चक्र सुदर्शन, कट गई थी बुआ पुत्र की गर्दन,
द्रौपदी सुभद्रा सी बहन थी मान ना हो पाया मर्दन!
नरकासुर की बंदी सोलह हज़ार एक सौ नारियों को,
सम्मान की ज़िन्दगी दी सुहागदान की माँग मान के!
सोलह हज़ार एक सौ आठ रानियों के बीच हे गोपी,
बताओ तुम कहा हो एक वैधानिक धर्म पत्नी जैसी?
कृष्ण धर्म मर्म सत्कर्म के मंगलमूर्ति न्यायप्रिय थे,
मुक्त कराया बंदी राजाओं को नरमेधी जरासंध से!!
मित्र से मित्रता निभाई, शत्रु को नारायणी सेना दी थी,
विश्वरूप दिखाया, वे सम्मानित वयोवृद्ध पितामह को!
तुम्हें वसुदेव देवकी ने नहीं देखा, सुभद्रा भी अनजानी,
राधा बोलो योग क्षेम के ईश्वर से कैसे की मनमानी?
कथा कहानी की तुम राधारानी हो जब तुम बारह की
तब कृष्ण सात के तुमसे मिले, उम्र ग्यारह में बिछुड़े!
बचपन की धमाचौकड़ी को रसिकों ने रासलीला कही,
ना इसमें कोई दोष तेरा है ना कृष्ण कोई छिछोरा है!
दुनिया की रीत है चरित्र हनन की, अपवाह उड़ाने की,
भक्ति के नाम, अंधभक्ति जगाने की, भ्रम फैलाने की!
कृष्ण के जीवन में ना कोई प्रेयसी परकीया राधा थी
शृंगारिक कवियों की रसिक कल्पना से राधा निकली!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अक्षर अक्षर नाद ब्रह्म है अक्षर से शब्द जन्म लेते अर्थ ग्रहण करते
- अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में
- अपने आपको पहचानो ‘आत्मानाम विजानीहि’ कि तुम कौन हो?
- अपरिचित चेहरों को ‘भले’ होने चाहिए
- अब राजनीति में नेता चोला नहीं अंतरात्मा बदल लेते
- अमृता तुम क्यों मर जाती या मारी जाती?
- अर्जुन जैसे अब नहीं होते अपनों के प्रति अपनापन दिखानेवाले
- अर्जुन होना सिर्फ़ वीर होना नहीं है
- अर्थ बदल जाते जब भाषा सरल से जटिल हो जाती
- अहिंसावादी जैन धर्म वेदों से प्राचीन व महान है
- अक़्सर पिता पति पुत्र समझते नहीं नारी की भाषा
- अफ़सर की तरह आता है नववर्ष
- आज हर कोई छोटे से कारण से रूठ जाता
- आत्मा से महात्मा-परमात्मा बनने का सोपान ये मनुज तन
- आयु निर्धारण सिर्फ़ जन्म नहीं मानसिक आत्मिक स्थिति से होती
- आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर
- इस धुली चदरिया को धूल में ना मिलाना
- ऋषि मुनि मानव दानव के तप से देवराज तक को बुरा लगता
- एक ईमानदार मुलाज़िम होता मुजरिम सा निपट अकेला
- ऐसा था गौतम बुद्ध संन्यासी का कहना
- ओम शब्द माँ की पुकार है ओ माँ
- कबीर की भाषा, भक्ति और अभिव्यक्ति
- करो अमृत का पान करो अमृत भक्षण
- कर्ण पाँच पाण्डव में नहीं था कोई एक पंच परमेश्वर
- कर्ण रहे न रहे कर्ण की बची रहेगी कथा
- कहो नालंदा ज्ञानपीठ भग्नावशेष तुम कैसे थे?
- कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहाँ से?
- कोई भी अवतार नबी कवि विज्ञानी अंतिम नहीं
- चाणक्य सा राजपूतों को मिला नहीं सलाहकार
- चाहे जितना भी बदलें धर्म मज़हब बदलते नहीं हमारे पूर्वज
- जन्म पुनर्जन्म के बीच/कर्मफल भोगते अकेले हिन्दू
- जिसको जितनी है ज़रूरत ईश्वर ने उसको उतना ही प्रदान किया
- जो भाषा थी तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला की वो भाषा थी पूरे देश की
- ज्ञान है जैविक गुण स्वभाव जीव जंतुओं का
- तुम कभी नहीं कहते तुलसी कबीर रैदास का डीएनए एक था
- तुम बेटा नहीं, बेटी ही हो
- तुम राम हो और रावण भी
- तुम सीधे हो सच्चे हो मगर उनकी नज़र में अच्छे नहीं हो
- दया धर्म का मूल है दया ही जीवन का सहारा
- दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह सोढ़ी की गाथा
- दस सद्गुरु के गुरुपंथ से अच्छा कोई पंथ नहीं
- दान देकर भी प्रह्लाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए
- दानवगुरु भार्गव शुक्राचार्य कन्या; यदुकुलमाता देवयानी
- दुनिया-भर के बच्चे, माँ और भाषाएँ
- दुर्गा प्रतिमा नहीं प्रतीक है नारी का
- धनतेरस नरकचतुर्दशी दीवाली गोवर्द्धन भैयादूज छठ मैया व्रत का उत्स
- नादान उम्र के बच्चे समझते नहीं माँ पिता की भाषा
- नारियों के लिए रूढ़ि परम्पराएँ पुरुष से अलग क्यों होतीं?
- नारी तुम वामांगी क़दम क़दम की सहचरी नर की
- नारी तुम सबसे प्रेम करती मगर अपने रूप से हार जाती हो
- परमात्मा है कौन? परमात्मा नहीं है मौन!
- परशुराम व सहस्त्रार्जुन: कथ्य, तथ्य, सत्य और मिथक
- पिता
- पिता बिन कहे सब कहे, माँ कभी चुप ना रहे
- पूजा पद्धति के अनुसार मनुज-मनुज में भेद नहीं करना
- पूर्वोत्तर भारत की गौरव गाथा और व्यथा कथा
- पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
- प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही मृत्यु का कारण होता
- प्रश्नोत्तर की परंपरा से बनी हमारी संस्कृति
- प्रेम की वजह से इंसान हो इंसानियत को बचाए रखो
- बचो सत्ताकामी इन्द्रों और धनोष्मित जनों से कि ये देवता हैं
- बहुत ढूँढ़ा उसे पूजा नमाज़ मंत्र अरदास और स्तुति में
- बुद्ध का कहना स्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है
- ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र संघर्ष आख्यान
- ब्राह्मण कौन?
- मन के पार उतर कर आत्मचेतना परम तत्त्व को पाना
- मनुष्य को मनुर्भवः यानी मनुष्य बनने क्यों कहा जाता है?
- माँ
- मानव जाति के अभिवादन में छिपा होता है जीवन दर्शन
- मानव जीवन का अंतिम पड़ाव विलगाव के साथ आता
- मानव सर्वदा से मानवीय विचारधारा की वजह से रहा है जीवित
- मिथक से यथार्थ बनी ययाति कन्या माधवी की गाथा
- मेरी माँ
- मैं उम्र की उस दहलीज़ पर हूँ
- मैं कौन हूँ? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूँ
- मैं चाहता हूँ एक धर्म निरपेक्ष कविता लिखना
- मैं बिहार भारत की प्राचीन गौरव गरिमा का आधार हूँ
- मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ मैं नास्तिक क्यों हूँ?
- मैं ही मन, मन ही माया, मन की मंशा से मानव ने दुःख पाया
- मैं ही मन, मैं ही मोह, मन की वजह से तुम ऐसे हो
- मैंने जिस मिट्टी में जन्म लिया वो चंदन है
- यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर: एक पिता द्वारा अपने पुत्र के संस्कार की परीक्षा
- यम नचिकेता संवाद से सुलझी मृत्यु गुत्थी आत्मा की स्थिति
- यह कथा है सावित्री सत्यवान व यम की
- ये ज्ञान जो मिला है वो बहुत जाने अनजाने लोगों से फला है
- ये पवित्र धर्मग्रंथ अपवित्र हो जाते
- ये सनातन कर्त्तव्य ‘कृण्वन्तो विश्वम आर्यम’
- रावण कौरव कंस कीचक जयद्रथ क्यों बनते हो?
- रावण ने सीताहरण किया भांजा शंबूक हत्या व भगिनी शूर्पनखा अपमान के प्रतिकार में
- रिश्ते प्रतिशत में कभी नहीं होते
- वही तो ईश्वर है
- श्रीराम भारत माता की मिट्टी के लाल थे
- संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही
- सबके अपने अपने राम अपने राम को पहचान लो
- सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता
- हर कोई रिश्तेदार यहाँ पिछले जन्म का
- हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
- ॐअधिहिभगव: हे भगवन! मुझे आत्मज्ञान दें
- ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
नज़्म
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं