तीसरे बन्दर का मतलब
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता बसंत आर्य27 Oct 2018
मंत्री बनने के बाद मिले
तो गुलाब की तरह खिले खिले
सोफ़े में धँसे हुए
एकदम प्रसन्न थे
और हम उनकी मुद्रा देखकर
सन्न थे
आँखें बन्द थी
कान बन्द थे
पर मुँह खुला था
मानो गाँधीजी के तीनों बंदरों का
रूप मिला जुला था
पर दृश्य नायाब था
क्योंकि तीसरा बन्दर ग़ायब था
मैंने पूछा- मंत्रीजी
क्या आपने अन्याय के ख़िलाफ़
आवाज़ उठाने के लिए
मुँह खुला रखा है?
तो बोले-
हमारी आँखें बन्द हैं
क्योंकि अत्याचार हमें नहीं दिखता है
कान बन्द है
क्योंकि सुनाई नहीं देता
अगर कोई चीखता है
और बचा मुँह
तो आपका मन भी
बड़ा भोला है
अरे मुँह तो हमने
खाने पीने के लिये खोला है
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