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थैंक यू दोस्त

लॉकडॉउन की दोपहर में अकेले टाइम पास करना कितना मुश्किल हो जाता हैं, तो मैंने सोचा क्यों ना चाय ही बना लूँ। वैसे तो मैं कभी भी दोपहर में चाय नहीं पीता, लेकिन पता नहीं क्यों आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, तो सोचा थोड़ा मूड चेंज करने के लिए चाय ही बना लूँ। किचन में जाकर मैंने गैस पर चाय चढ़ा दी।

वैसे मै यहाँ बता दूँ, कि आज तक मैंने किचन में कोई काम नहीं किया, क्योंकि मेरे उमर के लोग अपने जमाने में किचन से संबंधित सारे कामों के लिए अपनी माँ या पत्नी पर ही निर्भर रहते थे, लेकिन बुढ़ापे में जब बात बेटी या बहू के काम करने की आती है, तो दिल कहता है कि क्यों ना बच्चों की थोड़ी सी मदद कर दी जाए। बस, आज तक यह नहीं समझ आया कि यही दिल अपनी जवानी में सरला की मदद के लिए क्यों नहीं कुछ कहता था, सरला यानी मेरी धर्मपत्नी, जो कि अब इस दुनिया में नहीं है।

आज से दो साल पहले सरला के गुज़र जाने के बाद मेरे पास दो ऑप्शन बचे थे। एक, मैं अपनी बची-खुची ज़िन्दगी भारत में अकेले काट लूँ या दूसरा ऑप्शन, अपने बेटे और बहू के साथ अमेरिका चला जाऊँ। दोस्त और रिश्तेदारों ने अपने देश में रहने की सलाह दी, साथ में यह भी समझाया, "विदेश में तुम बिल्कुल अकेले हो जाओगे। बेटा और बहू कुछ दिन तो बहुत ख़ातिरदारी करेंगे फिर उसके बाद तुम्हे पूछेंगे भी नहीं।" मैंने भी सबकी सुनी और फिर उसके बाद दूसरा ऑप्शन चुना। सरला के जाने के बाद मैं अंदर से बहुत टूट चुका था या ये कहे कि डर चुका था, अब मैं अपने इकलौते बेटे को जीते जी बिल्कुल नहीं खोना चाहता था। 

जब तक हम किसी के साथ होते है, ज़िंदगी बहुत आसान लगती है कि जैसे नदी में कोई नाव हौले-हौले बहुत आराम से चलती है, लेकिन जैसे ही हम अकेले होते हैं, पूरी दुनिया वीरान हो जाती है। लाखों-करोड़ों लोगों से भरी इस दुनिया में भी हमें अपना कोई नहीं दिखता। चारदीवारी के बीच में अकेले ज़िन्दगी इतनी स्लो हो जाती है कि जैसे घड़ी की मिनट वाली सुई। अकेले घर में बैठे हुए आप अपने दिल की धड़कन आराम से सुन सकते है, जो किसी और के साथ रहने पर संभव नहीं है।

जिसने मेरा हाथ पकड़ कर अग्नि के समक्ष साथ फेरे लेते हुए सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वो इसी जन्म में अधूरे सफ़र में मेरा हाथ छोड़कर चली गई। जिसने मेरे द्वारा बनाए गए मकान को रहने लायक़ घर बनाया, जिस घर में हम दोनों ने अपने सभी सुख-दुःख साझा किए। अब उसी घर में अकेले रहने की मेरी बिल्कुल हिम्मत न थी। विधिपूर्वक सरला का अंतिम संस्कार करने के बाद मैं अपने बेटे, बहू और शिवी के साथ यहाँ अमेरिका आ गया।

अमेरिका में कुछ महीने तो बहुत आराम से निकल गए लेकिन फिर यहाँ भी वही अकेलापन महसूस होने लगा जिससे भागते हुए मैं अपने देश से परदेश तक आ पहुँचा था। बेटा और बहू दोनों ऑफ़िस के लिए सुबह ही घर से बाहर निकल जाते, छोटी सी पोती शिवी भी स्कूल चली जाती, मैं पूरा दिन अकेले बैठा बोर होने लगा। 

एक दिन मैंने सुपर स्टोर में सेल मैन का एडवर्टाइज़मेंट देखा, उसी दिन शाम को मैंने बेटे से स्टोर में काम करने के लिए पूछा, उसने साफ़ मना कर दिया। वो बोला, "पापा, आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं आपको स्टोर पर काम करने दूँगा। यहाँ अगर आपको किसी चीज़ की कमी हो तो प्लीज़ मुझे बताइए, मैं आपकी सभी ज़रूरतों को पूरा करूँगा। मेरे रहते हुए आपको स्टोर पर काम करने की ज़रूरत नहीं है।"

"मुझे यहाँ पर किसी प्रकार की कोई दिक़्क़त नहीं है, लेकिन इस उम्र में ऐसे घर पर बैठे रहना भी तो सही नहीं है, सिर्फ़ तीन घंटे की ही तो बात है, इसी बहाने मेरे भी हाथ-पैर चलेंगे," मैंने बेटे को समझाने की कोशिश की लेकिन वह मेरी बात सुने बिना ही अपने कमरे में चला गया।

बेटे के जाने के बाद मैंने बहू से बात की– "वो बेटा है, मेरी बात सुने बिना ही चला गया, लेकिन तुम तो मेरी बेटी हो, बेटियाँ तो माँ-बाप का सारा दुःख हर लेती हैं। तुम तो मेरी बात को समझो, कुछ देर बाहर निकलने से मेरा मन भी बहल जायेगा।"

"पापा, आप बिल्कुल परेशान ना हो, मै आपके लाडले से बात करती हूँ। आप जो चाहें वो यहाँ कर सकते हैं। आपकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है।"

अगली सुबह बेटा मेरे पास आया और मुझे स्टोर पर काम करने की अनुमति दे दी, शायद रात में बहू ने बेटे को समझाया होगा।

बेटे बहू के ऑफ़िस निकलने के बाद मैं भी सुपर स्टोर में अपनी जॉब के लिए चला जाता और शिवी के स्कूल से वापस आने के पहले वापस आ जाता था। सुपर स्टोर घर के पास ही था तो मैं वॉक करके ही जाता, वहाँ पर हर उम्र के लोग काम करते थे, कुछ कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे थे, तो वहीं कुछ मेरे उमर के बुज़ुर्ग भी थे। यहाँ अमेरिका में बच्चे हाई स्कूल में पहुँचते ही अपनी ज़िम्मेदारियों को स्वयं उठाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब भी करने लगते हैं। इसलिए यहाँ अमेरिका में स्टोर, पार्क और मॉल में काम करते हुए बहुत से युवा दिख जाएँगे जो अपने काम के साथ ही पढ़ाई भी करते हैं।

थोड़ी बहुत इंग्लिश बोलनी मुझे आती थी इसलिए मुझे स्टोर में काम शुरू करने में कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। कुल मिलाकर एक छोटी सी नौकरी और पोती शिवी के साथ रुकी हुई ज़िन्दगी फिर से आगे बढ़ने लगी।

अब जबकि सब ठीक चल रहा था कि तभी ये कोरोना वायरस पूरी दुनिया को तहस-नहस करने आ गया। हमारे स्टेट में जैसे ही कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या तीन सौ के पास पहुँची, तो यहाँ के गवर्नर ने लॉकडॉउन घोषित कर दिया, और मेरे बेटे ने मुझे और शिवी को घर से बाहर ना निकलने का सख़्त आदेश दे दिया। इस लॉकडॉउन में स्टोर तो ओपन है, लेकिन मेरी उमर ज़्यादा होने की वज़ह से स्टोर वालों ने मुझे छुट्टी दे दी है, साथ में उन लोगों ने कहा कि स्थिति सामान्य होने पर आप फिर से अपनी जॉब पर वापस आ सकते हैं।

कभी-कभी लगता है ज़िन्दगी सच में गोल है, जहाँ से चलना शुरू किया था फिर वहीं आ खड़े हुए। जिस अकेलेपन से मैं भाग रहा था अब लॉकडॉउन की वज़ह से फिर मेरे सामने खड़ी थी।

जहाँ इस लॉकडॉउन में बेटा और बहू दोनों वर्क फ़्रॉम होम कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शिवी लैपटॉप पर ई-लर्निंग कर रही थी। इसी तरह हफ़्ते के पाँच दिन निकल जाते थे, लेकिन सप्ताह के अंत में मुझे दो दिन ऐसे मिलते जैसे ग़रीब को महल मिल जाए। इन दो दिनों में शिवी के साथ खेलते हुए कब सोमवार आ जाता था पता ही नहीं चलता।

जब मेरी यादों का परिंदा घूम कर वर्तमान में वापस आया तो मैंने देखा मेरी चाय तो बन चुकी थी। मैंने अपनी चाय ली और बालकनी में आ गया। चाय पीते हुए मैंने अपनी फेसबुक खोल लिया, तो देखा आज तो टेरी का बर्थडे है। "टेरी" हमारे ही बिल्डिंग में एक छोटे से कुत्ते "ब्राउनी" के साथ रहती है और उसकी बालकनी मेरी बालकनी से दिखती भी है। अधिकतर वो गर्मियों की लम्बी शामों में अपनी बालकनी में बैठे हुए मुझे दिख जाती है।

जब मैंने पहली बार नीली आँखों वाली टेरी को देखा था, तो वो ब्राउनी के साथ वॉक कर रही थी, और मैं शिवी के साथ पास के ही प्ले ग्राउंड की तरफ़ जा रहा था। शिवी ने ही मुझे टेरी से मिलवाया था। उस दिन के बाद जब भी हम, एक- दूसरे से टकराते हाय हैलो के साथ थोड़ी बहुत बातें हो जाती।  

मैंने टेरी के बारे में लोगों से थोड़ी बहुत जानकारी इकट्ठा की, जिससे पता चला कि उसका पति मैक्स उसे छोड़कर किसी और स्त्री के साथ रहता है। टेरी की एक बेटी भी है, जिसकी शादी हो चुकी है और वो अमेरिका के ही किसी दूसरे स्टेट में रहती है।

टेरी इंडिपेंडेंट और हँसमुख महिला थी। स्कूल में जॉब के साथ घर के सभी काम ख़ुद ही करती थी। उसको देखकर मैं अक़्सर सोचता था, कि इसकी भी स्थिति काफ़ी हद तक मेरे जैसी ही है, लेकिन मैं अपनी डर की वज़ह से अपना देश और घर छोड़कर परदेश में चला आया जबकि ये औरत घर-बाहर का सारा काम अकेले ही करती है और देखने से ख़ुश भी लगती है।

यहाँ अमेरिका में आकर पता चला अकेले रहने वाले लोग दुनिया के हर कोने में हैं, लेकिन उन्होंने ने अपनी बची हुई ज़िन्दगी को शानदार तरीक़े से जीने के लिए कोई ना कोई वज़ह ढूँढ़ ली है, जैसे कि टेरी ने ब्राउनी को अपने साथ रखा हुआ है। हम भारतीय अपने पूरे जीवन को किसी ना किसी रिश्ते में बाँधे रखना चाहते हैं, लेकिन किसी भी वज़ह से अकेले नहीं रहना चाहते और वो भी बुढ़ापे में तो क़तई नहीं। हमें बुढ़ापे में बेटा-बहू, पोते-पोतियाँ साथ में बेटी-दामाद सभी चाहिएँ। हम बुढ़ापे में अपना आत्म-सम्मान मार कर किसी के भी साथ रह लेंगे लेकिन अकेले नहीं रहेंगे।

वैसे तो हमारे बिल्डिंग में भारतीय परिवार के साथ-साथ अमेरिकी परिवार भी रहते हैं, लेकिन उनमें से मुझे टेरी सबसे अलग दिखती थी। शायद उसका अकेलापन मुझे मेरे अतीत से जोड़ता था, लेकिन मैं टेरी की तरह मज़बूत बिल्कुल नहीं था। कहाँ वो औरत बड़ी मज़बूती से खड़े होकर अपनी ज़िन्दगी की आने वाले सभी चुनौतियों का सामना अकेले कर रही है, और कहाँ मैं अकेलेपन से भागता हुआ रिश्तों की ओट में पनाह लिए बैठा हूँ।

एक दिन सुबह वॉक करते हुए मुझे टेरी मिल गई वो भी ब्राउनी के साथ वॉक कर रही थी। उसने मुझे "नमस्ते" बोला और मेरे साथ ही वॉक करने लगी। 

उसके मुँह से नमस्ते सुनकर मैं चौंका, पूछने पर उसने बताया कि "मैंने इंडिया के बारे में इंटरनेट पर पढ़ा, वहीं मुझे नमस्ते के बारे में पता चला।" 

उसकी बातें सुनकर मैं मुस्कुराया और इधर-उधर की बातें करने लगा। बातों ही बातों में मैंने उसका पूरा नाम पूछ लिया तो उसने बताया "टेरी ओलिविया"। उसी दिन रात को फ़ेसबुक पर मैंने उसका नाम सर्च किया और उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया था, कुछ दिनों बाद उसने मेरा फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट भी कर लिया था।

आज फ़ेसबुक पर टेरी का बर्थडे देखते ही, सबसे पहले उसके बालकनी पर नज़र गई, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। मैंने अपनी चाय बालकनी में छोड़कर, अपने कमरे से कुछ हैप्पी बर्थडे वाले बैलून (गुब्बारे) उठा लाया। मैंने सभी बैलून में हवा भरकर अपनी बालकनी में लगा दिए, और अपने चेयर पर बैठकर चाय पीने लगा। तभी जाने कहाँ से शिवी बालकनी में आ गई। बैलून को देखकर ख़ुश होकर बोली, "दादा जी, आज किसका बर्थडे है?"

"आज किसी ना किसी का बर्थडे तो होगा ही, और इस लॉकडॉउन में हम कहीं आ जा नहीं सकते, तो मैंने सोचा बैलून बालकनी में लगा दूँ, जिसका बर्थ डे होगा वो देखेगा तो ख़ुश हो जायेगा," मैंने शिवी से कहा।

मेरी बात सुनकर शिवी भागती हुई किचेन से कप केक उठा लाई और एक कप केक मुझे देते हुए बोली, "अगर आज किसी का बर्थडे है तो क्यों ना बैलून के साथ-साथ कप केक खाकर सेलिब्रेट किया जाए।"

मैंने मुस्कुराते हुए शिवी के हाथ से कप केक ले लिया, और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि जिसके लिए हम ये बर्थडे बालकनी में सेलिब्रेट कर रहे हैं वो यह सब देखने के लिए कम से कम एक बार अपनी बालकनी में आ जाए।

जीवन के आख़िरी पड़ाव में कभी-कभी कुछ इंसान आपको ऐसी सीख दे जाते हैं कि आप उन्हें आजीवन अपने साथ अपनी यादों में रखना चाहते हैं। मैं पिछले कई महीनों से टेरी की हर गतिविधि पर ध्यान लगाए हुए था कि कैसे वो अकेले अपने जीवन को व्यवस्थित किए हुए है। आज उसके बर्थ-डे पर मैंने यह सोच लिया था कि कोरोना काल ख़त्म होते ही मैं अपने देश वापस लौट जाऊँगा, अपने सेविंग के पैसों से ख़ाली पड़े हुए घर में अनाथ बच्चों के लिए सरला के नाम से एक संस्था खोलूँगा और उन्हें पढ़ाया करूँगा। जहाँ तक बात रही बेटे-बहू, शिवी और टेरी की, तो उनसे मिलने अमेरिका आता रहूँगा, लेकिन अब अपने अकेलेपन से भागूँगा नहीं बल्कि डट कर सामना करूँगा।

तभी कपकेक खाते हुए शिवी ने मेरा ध्यान भंग किया और बोली, "दादा जी, मुझे लगता है कि आपको पता है कि आज किसका बर्थडे है, प्लीज़ बताइए ना..?"

उसकी बातें सुनकर मेरे मुँह से निकल गया, "मिस टेरी का।"

शिवी ख़ुश होकर "मिस टेरी, मिस टेरी" की आवाज़ लगाने लगी। शिवी की आवाज़ सुनकर नीली आँखो वाली टेरी अपने कुत्ते ब्राउनी के साथ अपनी बालकनी में आ गई। उसे देख कर मैं भी अपने चेयर से उठ खड़ा हुआ। वो हम दोनों को देख कर मुस्कुराने लगी, शायद उसे हमारा बर्थडे सेलीब्रेट करना अच्छा लगा था। इधर टेरी को देख कर शिवी ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, "हैप्पी बर्थडे मिस टेरी, हैप्पी बर्थडे।"

और टेरी को देखकर मेरे दिल से आवाज़ आई–

"इक नया रास्ता दिखाने के लिए थैंक यू दोस्त।"
 

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