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श्यामा प्रसाद चौधरी

श्यामाप्रसाद चौधरी की पहली कहानी 1974 में पत्रिका “नवरवि” में प्रकाशित हुई थी, जो कुछ ही महीनों में ओड़िया पाठकों में बहुचर्चित हुई थी और उसके केवल पाँच साल बाद 1979 में उनका पहला कहानी-संग्रह: “निजठारु निजर दूरता” प्रकाशित हुआ। उसी साल 1979 में रेवेन्सा कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इस्पात, एस. के.सी.जी. रेवेन्सा और फकीरमोहन जैसे कॉलेजों में अध्यापन के दौरान उनका 1983 में भारतीय राजस्व सेवा में चयन हो गया। 

बाद में, 37 वर्षों तक कलकत्ता, मुंबई, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि स्थानों पर अपना योगदान देते हुए सन्‌ 2019 में प्रिंसिपल चीफ़ कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, फिर दो साल के विस्तार का आदेश मिलने पर, आयकर विभाग के सेटलमेंट कमीशन, दिल्ली में प्रथम सदस्य के रूप में सेवा देने लगे। अंत में विगत वर्ष कार्यकारी चेयरमैन पद से सेवा-निवृत हो गए। 

साहित्य के बाहर ऐसी दुनिया में लिप्त रहने के बाद भी श्यामाप्रसाद के प्रकाशित कहानी-संग्रह निम्न हैं:“कापुरुषर गोड ओ अन्यान्य गल्प,” “मेजिशियनर निज लोक” और एकमात्र उपन्यास: “जयंत जाहा जाणे नाहिं।” 

श्यामाप्रसाद जी का चौथा कहानी-संग्रह और पाँचवीं पुस्तक अप्रैल 2022 में प्रकाशित हुई: “चिड़ियाखानार चित्र।” 

बहुत से लोगों को पता नहीं होगा कि कहानीकार ने गुप्त रूप से अनेक ओड़िया पत्रिकाओं का संपादन किया है। उन पत्रिकाओं के नाम इस प्रकार हैं: रितु, पाक्षिक प्रजापति, नवलिपी। 

2001 से 2004 तक कलकत्ता से प्रकाशित पत्रिका “प्रतिवेशी” की कायापलट कर दी थी, उन्होंने तरह-तरह से इस पत्रिका का संपादन कर तत्कालीन ओड़िया साहित्य में ज़बरदस्त हलचल पैदा कर दी थी। कम कहानियाँ लिखने के बावजूद भी श्यामाप्रसाद को संभ्रांत पाठकीय आदर के साथ-साथ उन्हें अनेक पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया, जिसमें अखिल मोहन सम्मान, कादंबिनी गल्प सम्मान, जगदीश मोहंती कथा सम्मान, झंकार कथा पुरस्कार आदि प्रमुख हैं। 

श्यामाप्रसाद जी का शौक़ किताबें पढ़ना, तस्वीरें खींचना और ज़्यादातर बातों से आसानी से सहमत नहीं होना है। 

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  1. अदिति की आत्मकथा