बिड़ला बनने का सपना
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता प्रकाश चण्डालिया16 Jan 2009
पीकर बोतल एक शराब,
करके ज़िन्दगी अपनी ख़राब
सोचा अब मैं नाम कमाऊँ
पल भर में बिड़ला बन जाऊँ।
यही सोच चला इक दिन
मैं इक सेठ के पास।
सुनो-सुनो ओ सेठ जी
कुछ बातें करनी तुमसे ख़ास।
बातें करनी मुझसे ख़ास?
सुनकर सेठ भरमाया
पलक झपकते ही नौकर
दस-बीस बॉस बुला लाया।
मुझे देख दुकान पर
जम गई भीड़ भारी
इसी भीड़ के नीचे दब इक
कुतिया मर गई बेचारी।
कुतिया मर गई बेचारी,
फिर भी लोग ना माने
मार -पीट दिया मुझको
और लग गए देने ताने
चुप रहोगे या मारूँ लाल,
कहकर बाँह उठाई
पलक झपकते ही मुझको
भीड़ नज़र ना आई।
सर पे रखकर पाँव
मैं भी भाग चला घर को
पलंग से नीचे गिर पड़ा था
मैंने पकड़ लिया अब सर को।
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