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क्रिकेट पालिटिक्स है

उन्होंने कहा, “कौन जीतेगा।“

बालकराम जानबूझकर बोले,  "क्रिकेट कौन?”

“क्यों, सोए पड़े हो क्या, चुनाव की बात कर रहे हैं। हारना जीतना और कहाँ होता है।”

बालकराम ने कहा, “मैं क्रिकेट की बात समझ रहा था।” फिर उन्होंने जोड़ा, “क्रिकेट कोई छोटी पालिटिक्स है क्या?”

मैं बीच में कूद पड़ा, “क्रिकेट खेल है और पालिटिक्स पालिटिक्स है।” 

अब दोनों ही मुझे अजनबियों की तरह देखने लगे और बोले, “क्या क्रिकेट क्रिकेट है और पालिटिक्स पालिटिक्स है।”

“हाँ।” मैंने कहा तो वे बोले, “इसे यों समझो क्रिकेट पालिटिक्स है और पालिटिक्स खेल है।”

अब मैं राजनीतिविज्ञान का विद्यार्थी बन टपका, “देखिए आप ग़लत घालमेल कर रहे हैं। राजनीति सिद्धान्त के लिए की जाती है जहाँ राष्ट्र की सेवा के लिए अपना तन-मन-जीवन अर्पित कर जाते हैं इसके लिए वे अपनी जान तक अर्पित कर जाते हैं।”

बालकराम ने टोका, “और दूसरे की जान भी ले लेते हैं।”

वे बोले, “तुम बेकार की बहस में पड़ गए हो। क्रिकेटिया सीज़न है क्रिकेट की बात करते हैं।”

“किकेट में कौन जीतेगा?”

मैंने ज्ञान बघारा, “जो अच्छा खेलेगा वह जीतेगा।”

बालक राम ने प्रतिवाद किया, बोले, “यह सब फ़िक्सिंग के आधार पर होता है। इसमें खेलने जैसी कोई बात नहीं है। वह सब तो दर्शकों के समय बिताने का काम है। असली बात तो भाई लोग कम्प्यूटरों, फोनों और दलालों के मार्फ़त तय करते हैं।”

मैंने टोका, “बालकराम हर बार उल्टी बात करते हो।”

बालकराम बोले, “लो फिर सुलटी बात करता हूँ, क्रिकेट कौन खेलेगा, यह नेता तय करते हैं। कौन नहीं खेलेगा, यह भी। किस-किस देश से कब-कब खेलेगा और कब नहीं यह भी नेता ही तय करते हैं। कब खेलने का माहौल है और कब नहीं यह भी नेता ही तय करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि क्रिकेट नेता तय करते हैं, और नेता जो भी करते हैं वह राजनीति में आता है।” 

मैंने फिर अपनी सामान्य ज्ञान की शेखी बघारी, “चुप भी करो, यह सब क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड तय करता है।”

बालकराम ने मेरी बुद्धि पर तरस खाया और बोले, “वो तो क्रिकेट टीम पाकिस्तान भेजने के पक्ष में ही नहीं थे। सुरक्षा की चिन्ता क्रिकेट टीम के कप्तान को भी थी, फिर क्यों गए।” अब तक चुप वे बोले “क्योंकि माहौल ठीक है।”

मैंने फिर मुँह खोला, “क्योंकि वहाँ फ़ील गुड हो रहा है।”

“ऐसी की तैसी फील गुड हो रहा है मुशर्रफ़ जिस ज़बान से भारतीय टीम को जीत की बधाई देता है उसी ज़बान से आगरा से अब तक के सारे मामले को कश्मीर में घुसाड़ देता है, उसका आक़ा भी तुरन्त उसे दोस्त कह कर नवाजता है और अपने फील गुड वाले मुँह ताकते रह जाते हैं।”

मैंने कहा,  “लेकिन क्रिकेट तो अच्छी हो रही है।”

“तो अब तक किसने रोका था क्रिकेट टीम को, पाकिस्तान जाने से। पाँच साल तो इस सरकार ने भी काट लिए। मेरा तो कहना है कि चुनाव न हो रहे होते तो भारत पाकिस्तान क्रिकेट भी नहीं हो रहा होता। यह सारा मामला चुनाव से ही जुड़ा हुआ है। न चुनाव होते। न फील गुड होता। न ही क्रिकेट हो रही होती।” 

मैं फिर दर्शन बघारने लगा, “जब जागो तभी सवेरा। क्या बुराई है अब क्रिकेट शुरू हो गया तो। इससे यही तो पता चलता है कि सम्बन्ध सुधर गए हैं।”

“अरे न जनता ने कारगिल कराया, न ही मुशर्रफ़ को जनता ने बुलाया था। दो वर्ष तक सीमा पर सेना का  जमावड़ा खड़ा कर तनाव पैदा कराने वाले भी तो वे ही थे और उन्होंने ही देश के हज़ारों नौजवानों कर कारगिल की भट्टी में झोंका था। कभी कारगिल लड़ा के चुनाव जीत लो और कभी क्रिकेट करा के। यह सब पालिटिक्स है।”

वे बालकराम से मुख़ातिब हुए बोले, “जब सब पालिटिक्स है तो चलो चुनाव पर बात करते हैं। क्या रखा है क्रिकेट में?”

मैं उत्साहित होकर बोला, “कौन जीतेगा चुनाव में?”

बालकराम ने पटाक्षेप करते हुए कहा, “पहले यह तो देख लो कि क्रिकेट में कौन जीतता है। इसी से यह भी तय होगा कि चुनाव में कौन जीतता है।”

मैं अवाक रह जाता हूँ।

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