दुनियादार
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता सतीश ’निर्दोष'1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
भगवान के घर से कुछ गधे फ़रार हो गए।
कुछ तो पकड़े गए कुछ दुनियादार हो गए॥
बेईमानी की कमाई
ऐसी फली-फूली कि
कल तक जो
ख़ुद हमारे रहमो करम पर पलते थे
आज वो ही हमारे पालनहार हो गए ।
कुछ तो पकड़े गए कुछ दुनियादार हो गए॥
इंसा को आज
रंग बदलते देर नहीं लगती
कल तक जो यूँ दूर खड़े थे
जायदाद के लिए
आज वो ही सबसे क़रीबी रिश्तेदार हो गए ।
कुछ तो पकड़े गए कुछ दुनियादार हो गए॥
आज यूहीं नहीं है
हमारी बेटियों की आबरू ख़तरे में
कल तक जो ख़ुद
रहे शामिल गुनाहगारों के झुंड में
आज वो ही उनकी इज़्ज़त के पहरेदार हो गए।
कुछ तो पकड़े गए कुछ दुनियादार हो गए॥
गुनाहों के दलदल में
ये जवानी यूँ फँसती जा रही
अब कौन इससे बचा पाएगा
क्योंकि जो इस चक्रव्यूह को तोड़ सकते थे
आज वो सब 'निर्दोष' ख़ुद गुनहगार हो गए।
भगवान के घर से कुछ गधे फ़रार हो गए
कुछ तो पकड़े गए कुछ दुनियादार हो गए॥
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