हर कथा की मैं हूँ अंतर्व्यथा
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. मोहन बैरागी15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हर कथा की मैं हूँ अंतर्व्यथा
प्राक्कथन एक एक सी प्रथा
भाव भाषा व्याकरण सब लिखे
पराकाष्ठा सब उत्तरार्ध में दिखे
स्वयं से जीतना हारना जोड़ना
जैसे पृष्ठ आधा पढ़कर मोड़ना
नियति वही रही जो रहती यथा
हर कथा की मैं...
मौन कितना मुखरित कब किधर
प्रस्फुटित रहे है भाव इधर उधर
चित्त और चित्र बोलते कुछ नहीं
कहाँ से चली नदी कहाँ पर बही
ख़ुद सुनी जो हमने कही जो कथा
हर कथा की मैं...
सूर्य के सात घोड़े रोकते हैं मुझे
क्यों उलझता क्या पड़ी है तुझे
मर्म प्यासा सभी की यही प्यास
ज़िंदगी सभी जो कोरा उपन्यास
पढ़ते हम-तुम इसे रोज़ ही अन्यथा
हर कथा की मैं...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं