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हिन्दी दिवस के मायने

सर्व हितकारी बैंक में हिंदी पखवाड़े के तहत हिन्दी दिवस का आयोजन किया जा रहा है। बैंक के चीफ़ साहब, जो हाल ही में विश्व-भ्रमण से लौटे हैं, को विशेष अतिथि के तौर पर आंमत्रित किया गया है। बैंक अधिकारियों का मानना है कि पूरे विश्व में चीफ़ साहब से अधिक कोई हिंदी-हितैषी नहीं हो सकता। चीफ़ साहब बड़े-बड़े हिंदी विद्वानों को किसी भी प्लेटफ़ॉर्म पर पटखनी दे सकने का मादा रखते हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी बॉडी बिल्ड की है। उनका मानना है कि व्यक्ति को सदैव अपने शरीर को देखना चाहिये। हम हैं तो दम है। मन तो चंचल होता है कभी भी कहीं भी किसी पर भी फिसल सकता है। आज जिसके पास दिखाने को बॉडी है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ठंडा मतलब पैप्सी, टेस्ट भी हैल्थ भी।

हिंदी के महामहिम विद्वानों, साहित्यकारों को केवल इस शर्त पर आमंत्रण दिया गया है कि वे अपनी-अपनी चोंच बंद रखेंगे। जो ग़लती से भी अपनी चोंच खोलेगा उसका आने-जाने का भत्ता काट लिया जायेगा। हिंदी के विद्वान ख़ुश हैं कि चलो एक दिन तो तर माल उड़ायेंगे। वे जानते हैं कि इन दिनों उनकी स्थिति श्राद्ध में बुलाये जाने वाले उन पंडितों की तरह है जिनका कार्य जजमानों के मरे हुये प्रियजनों तक उनका तर माल पहुँचाना है। अजीब माया है। जीते-जी जिन्हें आधी रोटी भी नसीब नहीं होती थी आज परलोक में उनके ठाठ का प्रबंध किया जा रहा है। बैंक के सभी कर्मचारी चीफ़ साहब के स्वागत कार्य में लगे हैं। उन्हें हिंदी से अधिक अपने प्रमोशन की चिंता है। साहब अगर मेहरबान हुये तो वे करोड़पति हो जायेंगे। बैंक मैनेजर की "पी.ए." मिस लता चीफ़ साहब का ऐसे इंतज़ार कर रहीं हैं जैसे आजकल के देसी ब्वॉयज़ अपनी लेटेस्ट गर्लफ्रेंड का इंतज़ार करते हैं। 50 वर्षीय कुँवारी मिस लता ने आज विशेष रूप से अपने चितकबरे बालों को भूरे रंग से रँगा है। साहब के साथ वे रंगरेज़ हो जाना चाहती हैं। उन्हें हिंदी-दिवस का अर्थ नहीं पता। हैड कैशियर, बी.के. नारायण से पूछती हैं- "सर, व्हॉट डू वू मीन बाय हिंदी दिवस?"

मिस लता जानती हैं कि हिंदी में एम.ए. पास हैड कैशियर साहब ही अँग्रेज़ी में इसका अर्थ समझा सकते हैं। हैड कैशियर साहब हिंदी के प्रोफ़ेसर बनना चाहते थे। लेकिन, हर जगह कोई न कोई भतीजा-दामाद निकल आने के कारण, अथक परिश्रम के बावजूद भी उन्हें कहीं प्रोफ़ेसरी न मिल सकी। कॉलेज के प्रबंधकों से रिश्तेदारी व मंत्री जी की सिफ़ारिश के अभाव में प्रत्येक जगह उनसे अँग्रेज़ी में प्रश्न किये जाते और वे टाँय-टाँय फुस्स हो जाते। घर में बच्चे "हिंदी-प्रेमी फिलास्फी" के दूध से चुप न होते। वे रोटी-रोटी चिल्लाते। तंग आकर उन्होंने प्रोफ़ेसरी का विचार छोड़ दिया और अँग्रेज़ी की कोचिंग लेकर यहाँ आ बसे। उन्होंने क़सम खा ली कि अब वे हिंदी को बाय-पास करेंगे। लेकिन, यहाँ मामला दिलकश कजरारी आँखों का था। शहद टपकाये बिना न रह सके- “हिंदी दिवस इज़ नथिंग बट जस्ट टू लिटिल स्पेस फ़ॉर रिफ़्रेशमेंट। इट इज़ लाइक माडर्न लेडीज़ संगीत बिफ़ोर मैरिज़.... यू नो।”

मिस लता ख़ुशी-ख़ुशी दूसरी ओर चल देती है। आज पहली बार हैड कैशियर साहब ने उनसे ठीक से बात की है। कैशियर प्रेमसिंह की हनीमून हॉलीडेज़ कैंसिल की जा चुकी हैं। गले में लटका तबला मंच पर रखते हुये वह साथी कैशियर मोनिका से कहता है- “सब कुछ स्वाह हो गया। किन्ने प्यार नाल आप्पां हनीमून दी तैयारी कित्ती सी। साडे पेरेंटस... यू नो ओल्ड ख्याला दे नें… ओह सानू जाण नहीं दे रहे सी.. पर मेरी प्रीतो.. हाय लवली बिल्लो ने किन्नी होशियारी नाल बाबे भगत दे दर्शना दा बहाना बना के मम्मी नू मनाया।” ....गले में लटका तबला बजाते हुये साथी कलर्क मोनिका के गले में बाहें डालता हुआ अपना दुःख प्रकट करता है- “....हाय ओय मेरी बिल्लो…आई.. लव यू डियर…।”

कलर्क मोनिका पड़ोसी दीनदयाल के बेरोज़गार बेटे नंदू की यादों में गुम है। एकाएक उसे ख़्याल आता है…कि नंदू तो मरियल है। उसकी बाहें कमज़ोर हैं। वह प्रेमसिंह का हाथ झटक देती है, “व्हाट नॉंनसेंस।”

मोनिका कान्वेंटिड है। सरकारी स्कूल में पढ़े लोगों से बात करना अपनी इंसल्ट समझती है। पर…यहाँ नंदू की बात और है। प्यार दीवाना होता है। मस्ताना होता है। सिर झटक कर प्रेमसिंह से बोली, “अच्छा प्रेमसिंह यह बताओ यह हिंदी दिवस क्या होता है? क्यों मनाया जाता है? …और आज कितने बजे तक चलेगा?”

वह नंदू से मिलने को बेचैन है। प्रेमसिंह हनीमून कैंसिल हो जाने से बेहद दुःखी था। झुँझला कर बोला- "खस्मा नू खाणे हिंदी दिवस। हिंदी दिवस माने सियापा। तूं दस्स तैनू की चाहिदा है?”

मोनिका ने अपने पर्स से लीव एप्लीकेशन निकालते हुये कहा- “ये मैनेजर साहब को दे देना। मुझे घर पर अर्जेंट काम है।”

मोनिका चली जाती है। बैंक के प्रांगण में कुछ कलर्क बढ़ती महँगाई पर डिस्कशन कर रहे हैं- “इस महँगाई ने नाक में दम कर रखा है। …अब तो यही ख़्वाहिश है सरकार ख़ुद ही हमारे घर चलाये। हम वनों की ओर चल देते हैं।”

“वॉहट आर यू डूइंग डर्टी फैलोज़,” मंच के दायीं ओर से बैंक मैनेजर मिस्टर वाई.आई. पटेल की आवाज़ आती है- “कम दिस साइड टेक केयर ऑफ़ दीज़ डर्टी फैलोज़।” डर्टी फैलोज़ उनका तकिया क़लाम था। वे इसे हर अच्छे काम के साथ चिपकाना नहीं भूलते थे। वैसे वाई.आई. पटेल भारतीय हैं लेकिन, उनकी सास गोरी और मालदार है। इसलिये वे देश की आज़ादी के बाद भी अँग्रेज़ बने रहना चाहते हैं। वाई.आई. पटेल अपनी सास की हाँ में हाँ मिलाना अपना धर्म समझते हैं। उनका मानना है कि अँग्रेज़ी में कोई बुराई नहीं है। अँग्रेज़ी ने हमें आगे बढ़ना सिखाया है। हमें सभ्यता व सलीक़े से रहना सिखाया है। इससे हमारे सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक संबंध मज़बूत हुये हैं। विदेशों में हम मुँह दिखाने लायक़ हुये हैं। देश का मूलभूत क़ानून अँग्रेज़ी है। विदेशी अक्सर कहते हैं कि हमें भारत में अपने राजदूतों को हिंदी सिखाने की आवश्यकता नहीं है। भारत में अँग्रेज़ी भाषी लोकतंत्र है। न्यायालयों में पढ़े-लिखे विद्वान वकील, अँग्रेज़ी में अपना पक्ष रखते हैं और बेचारा अनपढ़ अनिभिज्ञ बेक़सूर व्यक्ति आरोप सिद्ध होने से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर लेता है।

बहरहाल, चीफ़ साहब का भाषण चालू हो गया है- “लेडिज़ एंड जैंटेलमैन, आई एम वैरी पराउड ऑफ अवर लैंगवेज़ "हिंदी"। वी आर ऑल गैदरड हियर डियू टू हिंदी।”

पीछे की कुर्सी पर बैठे हिंदी में "एम.ए." पास बड़े बाबू ने माइक ठीक करने के बहाने आकर चुपके से चीफ़ साहब के कान में कहा- "हुज़ूर, आज हिंदी दिवस है। आज तो द्रोपदी की लाज रख लीजिये। मीडिया कवर कर रहा है। बड़ी फ़ज़ीहत होगी।"

चीफ़ साहब झेंपते हुये बोले- "आई एम सॉरी। एक्सट्रीमली सॉरी। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। वी ऑल लव हिंदी। इट इज़ वैरी सिंपल लैंगवेज़।"

पीछे कोने वाली सीट पर बैठा आठवीं पास माली रामदीन चुपके से कह उठता है- "भैया फिर अंग्रजी काहे झाड़त हो।"

बड़े बाबू रामदीन की ओर थप्पड़ तानते हैं। लेकिन वह मूँछों पर ताव देता हुआ खिसक लेता है। चीफ़ साहब पर इसका कोई असर नहीं होता। वे पूरी लय में है - "फ्रैंडस, इस हिंदी ने हमें फ्रीडम दिलाया है। वी आर सो ग्रेटफूल टू हिंदी। थैंक्यू।"

चीफ़ साहब पीछे लगी कुर्सी पर बैठ जाते है। मैनेजर माइक हाथ में लेते हुये कहते हैं- "दोस्तो, आज बड़े दिनों के बाद ख़ुशी का दिन आया है।"

सामने की पंक्ति में सबसे आगे बैठा हुआ कैशियर रमेश खड़े होकर चिल्लाता है- "आज न पूछो ...।" रमेश के साथ बैठा हैड कलर्क बक्शी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुये गा उठता है अरे भई, आज न पूछो ..हमने क्या पाया। बड़े दिनों में ख़ुशी का दिन आया।" वह किशोर कुमार हो जाता है।

क्रेडिट मैनेजर चुग, मिस लता को मंच पर बुलाने की उद्घोषणा करते हैं- "लीजिए, इनसे मिलिये। आप हैं हमारे बैंक की जान। मिस लता। पी.ए. टू ब्रांच मैनेजर वाई. आई. पटेल। आज इस सुनहरे अवसर पर आप अपनी एक रचना पेश करेंगी।"

पीछे बैठा रसिक पिउन बैजू और उसके साथी सीटी बजाते हुये मिसेज़ लता का स्वागत करते हैं। मिस लता पोर्टेबल शीशा और लिपस्टिक पर्स में रखते हुए उठ पड़ती हैं- "फ़्रैंडस, आज मैं आपको अपना लिखा हुआ एक सुंदर सा गीत सुनाऊँगी। आई हैव रिटन दिस, वैन आई वाज़ इन इंग्लैंड।"

कलर्क मनोज साथी नरेश के कान में फुसफुसाता है- "हूँ बड़ी आई इंगलैंड जाने वाली। चंडीगढ़ से बाहर तो कभी गई नहीं। ..ट्रैवलिंग के जाली बिल बनवा कर एल.टी.सी. क्लेम करती है। . . ये जायेंगी इंगलैंड... बात करती है। तेरा बाप भी गया है कभी इंगलैंड... हूँ ...।” उठ कर जाने लगता है। उसे अपने बच्चे को स्कूल से लेकर आना है। मैनेजर साहब उसे घूरते हैं लेकिन वह उँगली दिखाकर खिसक लेता है।

"क्या आप बता सकती हैं कि इंगलैंड में कितने अँग्रेज़ अँग्रेज़ी बोलते हैं?” चौथी पंक्ति में कर्लक रोज़ी के बगल में बैठा हिंदी साहित्य का एक मसख़रा कवि दीवाना सवाल करता है। मंच के बिल्कुल सामने अगली पंक्ति में बैठे हिंदी के चोंचबंद साहित्यकार मुस्कराते हुये तालियाँ पीटना चाहते हैं लेकिन दोनों हाथ पास आकर भी जुड़ नहीं पाते।

मिस लता मुस्कराती हैं- "तो मैं क्या कह रही थी?"

...मसख़रा कवि चिल्लाता है- "हिंदी दिवस के मायने बता रहीं थी।"

"हाउ स्वीट। वेरी स्मार्ट। बट, यू आर लाइंग। शायद, मैं अपनी लिखी पोयम सुना रही थी।"

"तो सुनाओ न, हमने कब रोका है,” कर्लक रमेश ने मुँह के पास भिनभिनाती मक्खी को इस बार दबोच लिया।

मिस लता कोई उत्तर नहीं देतीं। उन्हें मालूम है कि पोल खुल सकती है। लिहाज़ा वे आगे बढ़ीं-

"लिटिल ड्रॉप्स ऑफ वाटर
लिटिल ग्रॉस ऑफ सेंट
मेक द माइटी ओशन

पर्स से पर्ची निकाल कर आगे पढ़ती है-

“एंड द पलैंज़ट लैंड।"

हॉल मे उपस्थित सभी बुद्धिजीवी तालियाँ पीटने लगते हैं तभी मरकटे साँड़ की तरह मैनेजर साहब का खूँटा तोड़कर माली रामदीन माइक थाम लेता है- "चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया। उड़-उड़ बैठी... हलवइया दुकनिया... बर्फी का सब रस ले लिया रे पिंजरे वाली मुनिया।"

मसख़रा कवि खड़ा होकर मिस लता की ओर देखकर फिर सवाल उछालता है- "मैडम, क्या हिंदी दिवस के यही मायने हैं?"

कोई उत्तर नहीं देना चाहता।

सब जश्न में मस्त हैं। हाल से बाहर परिसर में लगे आम के बाग से सटे प्रांगण में टेबलों पर सजे भोजन की व्यवस्था में लगे पिउन रामफेर, मालिन फूलवती से कहता है- "फूलवती, बच्चन के लिये टिफिन भर लो। बाद मा कुछ ना बचिहै।"

डयूटी पर मौज़ूद गार्ड हैरी ताड़ता है- "ऐ फूलवती, यह क्या ले जा रही है?”

“बच्चों के लिये जरा सा प्रसाद ले जा रही हूँ।” वह ठुमक कर, मुस्कराती हुई चल देती है। वह हिंदी दिवस का अर्थ नहीं समझती। उसके लिये बस आज सत्यनरायण की पूजा जैसा कुछ है। रामफेर, बुज़ुर्ग कलर्क दूबे से पूछता है- "साहेब, आज किसका जन्म दिन है?"

दूबे साहब स्टैनो मिस रीटा को देखने में व्यस्त हैं। रामफेर को देखे बिना ज़वाब देते हैं- "आज हिंदी दिवस है।"

"हिंदी दिवस माने…?” रामफेर आश्चर्य से दूबे साहब की ओर देखता है।

अचानक दूबे साहब की नज़र टिफिन लिये गेट से बाहर जाती हुई फूलवती पर पड़ती है- "हिंदी दिवस माने चाय, पकोड़ी, समोसा, रसगुल्ला टिफिन में भरो।"

रामफेर झेंपते हुये चुपके से खिसक लेता है। दूबे साहब मुसकराते हुये अपनी प्लेट पनीर के पकोड़ों से भरकर आम के बाग से सटे गलियारे की ओर हो लेते हैं और मैं यह मानने के लिये विवश हो जाता हूँ कि यही हिंदी दिवस है। ...आज का युग बाज़ारी है और भाषा का बाज़ारीकरण होना आवश्यक है। आत्मा मिथ्या है। शरीर सत्य है। कभी आत्मा शाश्वत थी आज शरीर और उस पर टँगे कपड़े शाश्वत हैं। हिंदी का ज़माना तो भारतेंदू, द्विवेदी व प्रेमचंद के साथ ही चला गया। जीवन में कुछ करना है तो अँग्रेज़ी सीखो, अँग्रेज़ी खाओ, अँग्रेज़ी पियो, अँग्रेज़ी पहनो और आगे बढ़ो-
“जीवन बीच अधर में मुड़-मुड़ गोते खाये, झटपट पार लगा दे ... हाय-हाय पार लगा दे।"

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