इश्तिहार
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता निवेदिता शर्मा21 Feb 2019
सूरत भी हो, सीरत भी हो और सादगी भी हो
और उसके पास एक अच्छी नौकरी भी हो
खाना भी बनाये ग़ज़ब, गाड़ी भी चला ले,
घर के बड़े-बूढ़ों का कहना मानती भी हो
बाज़ार भी सँभाले, बचत पर नज़र रखे,
शौहर की कोई बात कभी टालती ना हो
बच्चों को पढ़ाये और रिश्ते-नाते सँभाले,
मैके की तरफ बेवजह वो झाँकती ना हो
आज़ाद तबीयत ना हो, ज़िद भी ना कुछ करे,
अपने लिये बेहतर है वो कुछ चाहती ना हो
ख़्वाहिश है सबकी, ऐेसी रब बनाये लड़कियाँ,
लें साँस भी हुकुम पे, वो ख़ुद सोचती ना हों
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