अनचाही
काव्य साहित्य | कविता निवेदिता शर्मा4 Feb 2019
मैं जनमना चाहती हूँ पर
मार डाली जाती हूँ
या नहीं जनमना चाहती हूँ पर
ले आई जाती हूँ इस दुनिया में
अनचाही कही जाने के लिये,
शापित जीवन जीने के लिये।
मैं चाहती हूँ पढ़ना पर
नहीं पढ़ाई जाती,
या नहीं चाहती हूँ सीखना -
जो सिखाया जा रहा है,
मेरी इच्छा के विरुद्ध।
मैं जीना चाहती हूँ बचपन,
पर कर दी जाती हूँ बड़ी
मान्यताओं, परंपराओं और
रिवाज़ों के नाम पर
या कहना चाहती हूँ कि
मैं हो गई हूँ बड़ी और समझदार,
तो घोषित कर दी जाती हूँ
छोटी, नासमझ और कमज़ोर।
मैं पकाती हूँ वो खाना
जो मुझे नहीं भाता,
पहनती हूँ वो कपड़े
जो मुझे पसंद नहीं,
जीती हूँ वो जीवन
जिससे मेरा मन सहमत नहीं
और अक्सर मरती हूँ कई बार,
सचमुच दम तोड़ने से पहले..........
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