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जंगल में महासभा

आज जंगल में एक महासभा होने वाली है। जंगल के सभी जीव-जन्तु जंगल के सबसे ऊँचे टीले की तरफ़ भागे जा रहे हैं। इन जीवों में सभी प्रकार के जीव-जन्तु हैं। जिनमें कुछ मांसाहारी, कुछ शाकाहारी, कुछ उड़ने वाले, कुछ रेंगने वाले और कुछ फुदकने वाले। सभी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं।

यह महासभा किसी और ने नहीं बल्कि जंगल के शाकाहारी जीवों को हिंसक जीवों से बचाने के लिए खरगोश ने बुलाई थी। कुछ ही समय में वहाँ उस मचान के चारों तरफ़ सभी प्रकार के जीव एकत्रित होने लगे। कुछ ही समय में वहाँ पर सभी प्रकार के जीव जैसे कि - मोर, कबूतर, मैना, कोयल, हंस, गीदड़, लोंभा, भेड़िये, जंगली गधे, आदि और भी अन्य प्रकार के जीव जन्तु एकत्रित हो गये।

कुछ समय बाद वहाँ एकत्रित सभी जीव-जन्तुओं में कानाफूसी होने लगी। अब तक मचान पर कोई भी बोलने के लिए नहीं चढ़ा था। सभी सोच रहे थे कि हमारे घर यहाँ बुलाने के लिए नोटिस आखिर भेजा तो किसने भेजा। अब यहाँ पर वह ख़ुद तो आया भी नहीं। तभी उनमें से एक सफ़ेद खरगोश उछल कर मचान पर जा चढ़ा और कहने लगा-

"देखो भाईयो, यहाँ पर बुलाने के लिए मैंने ही तुम्हारे पास तुम्हारे घर पर वह लैटर भेजा था। आज आपको संबोधित करते हुए मुझे यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे जंगल में जो पंचायती राज है। उससे शायद ही कोई ऐसा आम जीव हो जो अछूता बचा है अन्यथा सभी को कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। सभी जीव हमारे राजा से दुखी हैं।

"हमने जो राजा चुना था वह निरंकुश है। वह अपनी प्रजा को दुख में डालकर मज़े से रह रहा है। वह अय्याशी करता है। किसी की भी माँ-बहन को उठवाकर अपने घर मँगवा लेता है। आम जनता का ख़ून चूस रहा है। कोई अपनी फ़रियाद भी लेकर जाये तो किसके पास। यदि कोई उसके पास जाता भी है तो उसे वह मारकर खा जाता है, या उसके जो मंत्री हैं, उसके साथ दुर्व्यवहार करके उसे मार देते हैं और खा जाते हैं। हम उनके इस अत्याचार से बहुत दुखी हो गये हैं।

"अब कि बार मेरा मानना है कि हमें उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर उसे पदच्युत कर देना चाहिए, और जंगल में राष्ट्रपति शासन लागू करा देना चाहिए, इससे ऊपर हाईकोर्ट में इस केस को ले जा कर वहाँ के मुख्य न्यायाधीश को यह ज्ञापन सौंप कर दोबारा से जंगल में इलैक्शन कराने की माँग करनी चाहिए।"

यह सुनकर कौआ बोला- "एक बताइये जनाब तो फिर हम जंगल का सरपंच चुनें तो चुनें किसे, क्योंकि मुझे लगता है कि हम जितने भी शाकाहारी जीव हैं। वो हम किसी भी मांसाहारी जीव से अपनी ख़ुद रक्षा नहीं कर सकते हैं। फिर हमारी रक्षा कौन कर सकेगा? यदि कोई शाकाहारी जीव बना तो वह उसकी जनता अर्थात जंगली जीवों की मांसाहारी जीवों से कैसे रक्षा करेगा?"

कौवे की बात सुन गीदड़ कहने लगा – "मेरा जहाँ तक मानना है तो हमारा सरपंच शेर ही ठीक है, क्योंकि वह हम सभी जीवों की दूसरे बाहर वाले जीवों से रक्षा कर सकता है। अब वह हमारी रक्षा करता है तो उसे भी कुछ मेहनताना चाहिए, और फिर उसके जो मेंबरगण हैं उनका पेट भरना भी उसकी ज़िम्मेदारी है। यह पद सँभालना इतना आसान नहीं है। सबकी सुननी पड़ती है।"

उसकी बातों को सुनकर कोयल कहने लगी- "सुननी सबकी पड़ती है और करना कुछ नहीं। ये कैसा सरपंच है। आज हम औरत जाति का तो घर से निकलना ही दुर्भर हो गया है। पहले हमें कहीं भी जाने की पूरी आज़ादी थी और आज हम घर से निकलती भी हैं तो पूरे अदब के साथ निकलना पड़ता है। पूरे कपड़े पहनने के बावजूद भी हमें हवस का शिकार होना पड़ता हैं। हमारे बाहर निकलते ही कुछ मनचले कौवे हमें बीच राह पकड़ लेते हैं। जिनको हमारी तरफ़ देखने से भी डर लगता था आज वही जीव जैसे कि मोर, कबूतर तोते आदि हमपर कुदृष्टि जमाये रहते हैं। मैं तो कहती हूँ कि ऐसे पंचायती राज को ख़त्म किया जाये, और नये शासन की व्यवस्था की जाये।"

उसकी बातें सुनकर पास ही बैठा बगुला कहने लगा- "देखो बहनजी, आप हम नर जीवों पर बेकार ही तोहमत लगा रही हैं। सारे नरजीव एक जैसे थोड़े ही होते हैं। मानता हूँ कुछ स्वार्थी नरजीव हैं जो हमारी बहनो - मादा जीवों को वासना की नज़र से देखते हैं, पर सभी तो एक जैसे नहीं हैं ना। इसलिए ज़रा-सा ध्यान रखिये कि आपकी बातों से किसी अन्य भाई को किसी भी प्रकार कोई परेशानी ना हो।"

यह सुन कर कोयल ने उससे और अन्य सभी जीवों से माफ़ी माँगी।

खरगोश उन सभी की बातों को ध्यान से सुन रहा था। वह उनसे कहने लगा - "देखो भाईयो और बहनो, मैं मानता हूँ कि इस पंचायती राज में हमारे समाज में बहुत से अपराध बढ़े हैं। इसलिए ही तो यह महासभा आज बुलाई गई है। हमें आपस में ना लड़कर इस समस्या का निदान सोचना है।"

यह सुनकर हंस कहने लगा – "अब इस बात का क्या निदान हो सकता है। आपके विचार में क्या होना चाहिए। बताते हैं कि इस मामले में बगूले का दिमाग तेज़ चलता है। सो हमें उन्हीं से इस मसले पर विचार करना चाहिए।"

यह सुन कर बगुला कहने लगा – "मेरे हिसाब से तो इस समस्या से निदान पाने के लिए हमें फिर से चुनाव की घोषणा के लिए मुख्य न्यायाधीश को लिखना चाहिए। वो यहाँ पर एक बार फिर चुनाव कराये तो उसमें हम सबकी सहमति से एक हमारा भी उम्मीदवार हम सभी खड़ा करें और सारी की सारी वोट हमारे उम्मीदवार के पक्ष में डालें। शेर की पूरी तरह से हार होनी चाहिए। तभी हमें इससे छुटकारा मिल सकता है। यदि आप मेरी बात से सहमत हो तो अपना कोई भी एक उम्मीदवार चुन लो और न्यायाधीश के पास लैटर में फिर से चुनाव की घोषणा बारे ज़िक्र कर भेज दो।"

यह सुनकर उल्लू कहने लगा - मैं भाई बगुले की बातों से सहमत हूँ। पर ये बात तो बताओ कि अब की बार फिर से इलैक्शन होगा तो हम उसके अपोज़िट में खड़ा किसे करेंगे?"

सभी जीव आपस में बात करने लगे। यह देख खरगोश उस टीले पर खड़ा सभी को शांत करते हुए बोला – "देखो आज हम सभी ने एक ऐसे जीव को चुनना है जो हमारी हर तरह से रक्षा करे, हमारे जंगल में हर वो काम करे, जिसकी हमें ज़रूरत है। तो बोलो ऐसा कोई है जो ईमानदारी से जंगल के कामों को करेगा।"

यह सुन सभी जीव एक-दूसरे की तरफ़ ताकने लगे। कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं कि वह जंगल का राज करना चाहता है। वहाँ पर चारों तरफ़ एक चुप्पी का माहौल छा गया। सभी चुपचाप एक-दूसरे को केवल देख रहे थे। बोलने को कोई भी तैयार नहीं था। उन्हें इस प्रकार से चुप देख कर खरगोश बोला -

"जहाँ तक मैं जानता हूँ। जंगल में सबसे विशाल जीव हाथी होता है। उसका नाम ही जंगल के सरपंच पद के लिए अनाउंस कर आगे भेजना चाहिए।"

यह सुन हाथी खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा – "खरगोश भाई, मैं आपका यह बड़प्पन मानता हूँ कि आपने सरपंच पद के लिए मुझे चुना, पर मेरे अन्दर भी कई ख़ामियाँ हैं जो कि मुझे इस काम के लिए पूर्णतया तैयार नहीं करतीं। जैसे कि मैं डील-डौल में बड़ा हूँ, सरपंच बनने के बाद और भी ज़्यादा मोटा हो जाऊँगा और जंगल के जानवर मुझपर रिश्वत का आरोप लगायेंगे कि मैंने जंगल को सँवारने के लिए आई ग्रांट खाकर तोंद बढ़ा ली। इस काम के लिए कोई ईमानदार ही जीव चुनो। मुझसे नहीं होगा। मुझे रहने दो।"

खरगोश कहने लगा – "लोमड़ी तुम ही सरपंच पद के लिए खड़ी हो जाओ, क्योंकि तुम भी सभी जीवों में चतुर भी हो और तेज़ दौड़ने वाली भी हो। तुम अच्छे से शासन को सँभाल सकती हो।"

यह सुन लोमड़ी अदब से खड़ी होकर कहने लगी – "भाई खरगोश, मैं आपका ऐहसान मानती हूँ कि आपने मुझे इस लायक़ समझा। पर जैसा कि भाई हाथी ने कहा है कि उसके अन्दर कुछ ख़ामियाँ हैं जो उसे इस पद के लिए सही नहीं हैं। उसी प्रकार से मेरे अन्दर भी कुछ कमियाँ हैं। जैसे कि मैं मांसाहारी हूँ। अब घास-फूस से तो मैं अपना पेट नहीं भर सकती। मैं भी इस पद के लायक़ नहीं हूँ।"

उसकी इन बातों को सुनकर खरगोश ने हिरण की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देखा। उसकी दृष्टि को देखते ही हिरण समझ गया कि वह उसे सरपंच बनने के लिए कह रहा है हिरण भी उठ खड़ा हुआ और कहने लगा – "मैं मानता हूँ कि खरगोश भाई, आप मुझे सरपंची के लिए कह रहे हैं। मैं खूब तेज़ दौड़ भी लेता हूँ और शाकाहारी भी हूँ। मैं अपनी तरफ़ से किसी भी जंगलवासी को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होने दूँगा, मगर जब मांसाहारी हिंसक जीव जंगल के जीवों को खाने आयेंगे तो मैं किसी भी प्रकार से उनकी रक्षा नहीं कर पाऊँगा और मान लो रक्षा के लिए उनके आगे भी आऊँगा तो सबसे पहले वो मांसाहारी जीव मुझे ही खायेगा। सो मैं भी इस पद के योग्य नहीं हूँ।"

यह सुन खरगोश ने चील अर्थात गिद्ध की तरफ़ देखा और कहा – "आप इस जंगल में सबसे तेज़ उड़ने वाले जीव हो। आप अधिक से अधिक ऊँचाई तक उड़ सकते हो और ऊपर से ही जंगल की सारी गतिविधियों पर नज़र रख सकते हो तो क्यों न मैं आपका ही नाम आगे भेज दूँ?"

यह सुन गिद्ध कहने लगा – "भाई खरगोश, आप ठीक कह रहें। मैं काफी ऊपर तक उड़ सकता हूँ। बुद्धि भी खैर ठीक ही है। मैं किसी भी प्रकार से जंगल का अहित नहीं होने दूँगा, मगर यह एक ईमानदारी का पद है। इस पद पर रहते हुए यदि कभी मुझसे कोई ग़लती हो गई तो मेरी तो आने वाली सभी पुश्तों पर कलंक लग जायेगा, सो आप मुझे तो माफ़ ही कर दें।"

अब खरगोश थोड़ा निराश हो गया और कहने लगा – "आज हमने जो यह महासभा बुलाई है। उसमें जब तक यह फ़ैसला नहीं हो लेगा कि सरपंच पद के लिए कौन सही उम्मीदवार रहेगा और उसका नाम अनाउंस नहीं हो लेगा तब तक सभा भंग नहीं हो सकती।"

अब वह उल्लू से कहने लगा कि भाई इस पद के लिए मुझे लगता है कि आप ही ठीक रहेंगे क्योंकि आप रात को भी देख सकते हैं और रात को भ्रमण करते हुए आप जंगल में सभी जीवों की कुशल-क्षेम जानते रहेंगे और अन्य घुसपैठिये जानवरों से भी जंगली जीवों आगाह कराते रहेंगे। यह सुन उल्लू कहने लगा – "भाई खरगोश आप यह ठीक कह रहें हैं कि मैं रात को भ्रमण कर सभी जीवों की कुशल-क्षेम जानता रहूँगा। मैं पूरी ईमानदारी से इस पर काम भी करूँगा, परन्तु मेरे सामने भी एक समस्या है कि मैं दिन में नहीं देख सकता और बिना देखे मैं यह कैसे पता करूँगा कि दिन में क्या चल रहा है? यदि पता भी कर लूँगा तो सही से न्याय नहीं कर पाऊँगा सो इस बारे मुझे तो रहने ही दो। मुझसे सही न्याय नहीं हो पायेगा। प्लीज़ आप मुझे माफ़ करें। मैं इस पद के लिए उपयुक्त नहीं हूँ।"

यह सुन कर खरगोश ने कहा- "देखो भाईयो और बहनों मैंने बहुत से जीवों से पूछ लिया है कोई भी इस पद के लिए आगे नहीं आना चाहता। अब मैं कौवे भाई साहब से यह विनती करता हूँ कि वो ही इस पद के लिए राज़ी हो जायें ताकि उनका नाम आगे भेज कर उन्हें निर्विरोध चुनकर जंगल का सरपंच बनाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास रिपोर्ट भेजी जा सके।"

यह सुन कौआ कहने लगा – "सबसे पहले तो मैं भाई खरगोश व यहाँ पर आये सभी गणमान्य जीव-जन्तुओं, प्यारे भाईयों और प्यारी-प्यारी बहनों आप सबका दिल से आभारी हूँ। जो जंगल के भ्रष्ट लोकतंत्र या शासन से आहत होकर यहाँ एकत्रित हुए हैं। मैं मानता हूँ कि हमारी जाति के जीव कुछ मनचले होते हैं, प्यारी बहन कोयल ने जो कहा वह ठीक है। पर मैं बगुले की बात से भी सरोकार रखता हूँ कि पाँचों उँगली एक जैसी नहीं होती जो कि मानवों की कहावत है, ठीक है।

"मैंने आज तक किसी भी मादा जीव की तरफ़ आँख उठाकर नहीं देखा। ये मैं अपनी प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि मैं मांसाहारी और शाकाहारी दोनों श्रेणियों में आता हूँ। ख़ुदा ना करे कल को मुझे सरपंच बना दिया जाये ओर मुझसे कोई ग़लत काम हो जाये तो मुझे तो फाँसी खानी पड़ेगी ही, साथ ही पूरे खानदान पर भी कालिख पुत जायेगी। नहीं नहीं भाई, मैं भी इस पद के लायक़ नहीं हूँ। मुझे माफ़ करना सॉरी भाईयो और बहनो।"

यह सुन कर खरगोश कहने लगा- "देखो भाईयो और बहनो, मैंने जैसा कि आप सभी से बारी-बारी सरपंच पद के लिए निवेदन किया, परन्तु सभी ने अपनी कमज़ोरियों को बयान कर अपना पल्ला झाड़ लिया। अब मैं इस सभा में बैठे हुए सभी बहनों और भाईयों से एक बार फिर से दरख़्वास्त करूँगा कि जो भी भाई या बहन अपने आपको इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं वो अपना नाम मुझे दें ताकि हम जंगल में भ्रष्टाचार विरोधी सुशासन जंगल के लिए तैयार कर सकें।"

एक बार फिर से सभी जीव एक-दूसरे के मुँह को ताकने लगे। कोई भी शेर के ऑपोज़िट में नहीं खड़ा होना चाहता था। यह देख कर वह खरगोश कहने लगा कि आज पता चल गया है कि जंगल में कोई भी भ्रष्ट शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाना चाहता है। सभी जैसा शासन है, उसी में जी लेना चाहते हैं। उसने एक बार फिर से बगूले से कहा- "अब आप ही बतायें कि हमें क्या करना चाहिए?"

यह सुन कर बगुला कहने लगा – "देखो भाईयो आप सभी यहाँ आये, इससे एक बात तो सिद्ध होती है कि आप भी इस भ्रष्ट शासन का विरोध करना चाहते हैं और यहाँ पर जो बात हुई है उससे भी यह सिद्ध होता है कि हर कोई टालमटोल करके इस शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ भी नहीं उठाना चाहता है। सरपंच पद पर खड़ा होकर कोई भी युवा साथी हालबतौर सरपंच शेर से पंगा भी नहीं लेना चाहता है। यदि हम खुलकर इस बात का विरोध नहीं करेंगे तो वह यूँ ही अपनी मनमानी करता रहेगा। जिससे आम जीव का जीना दुर्भर हो जायेगा। किसी की भी बहू-बेटी को उसके पंच उठा ले जायेंगे और हम आराम से देखते रहेंगे। मरे हुए तो हम वैसे ही हैं जब हमारा ज़मीर ही मर चुका है तो हमें जीते हुए भी मरे के समान है मगर हमें अपने जंगल के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा ताकि हमारी आने वाली नस्लें इस प्रकार से भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकें। ये शक्तिशाली जीव पद नियुक्ति के समय तो हमें जाने क्या-क्या सपने दिखाते हैं और बनने के बाद हमारी बहू-बेटियों को उठाते हैं। हम पूछने जायें तो हमें गुंडों से पिटवाते हैं। अब बताओ हमें कुछ तो करना होगा। मरना तो हमें वैसे भी है और कुछ करेंगे तो भी मरना है तो क्यों ना हम कुछ करके ही मरें। कल को चील बहन आपको कोई उठायेगा, या चिडि़या आपकी बारी हो सकती है, या फिर किसी कबूतर की बहन माँ या पत्नी को कोई उठा ले जायेगा। उसे छुड़ाने जाओ तो उसके पंच उसे मार डालेंगे और खा जायेंगे। मैना, बटेर, गुरशल, व अन्य भी जंगल की बहनें, पत्नियाँ और माताएँ हैं। सबकी इज़्ज़त है। रिश्वत माँगी जाती है। एक जीव दूसरे जीव का खून चुसवाने के लिए उसके पास ले जाता है। कब तक चलेगा ये? उनके भय से जंगल की गर्भवती बहनों ने मादा संतानों को जन्म देना ही बंद कर दिया। घर इज़्ज़त जाने से तो अच्छा है कि उसे पैदा ही ना होने दिया जाये। अब आप में से कोई भी यदि इस शासन का विरोध नहीं करना चाहता है तो मत करो। हमारा क्या है हम तो आज़ाद पंछी हैं। आज यहाँ है तो कल किसी और तालाब में चले जायेंगे, पर तुम तो कुछ समझो।" बगुले की आवाज़ में जोश बढ़ता ही जा रहा था मगर सभी चुपचाप सुनते जा रहे थे। बोलने को कोई भी तैयार नहीं था। अंत खरगोश बोला -

"भाई बगुले मैं जानता हूँ कि आप यदि इसी प्रकार से बोलते रहे तो इन सभी में जोश ज़रूर जगा देंगे और ये भ्रष्ट शासन के विरुद्ध आवाज़ उठाने को भी तैयार हो जायेंगे। मगर मेरा मानना है कि हमें घृणा पाप से करनी चाहिए ना पापी से। हम यदि चाहे तो पाप करने वाले को भी सुधार सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि इस बारे में आप कोई ओर राय दें।"

बगुला कहने लगा – "इस बारे यदि कोई उसका प्रतिद्वंद्वी नहीं उठना चाहता है तो कोई बात नहीं। एक ओर तरीक़ा है जो उसे सही रास्ते पर ला सकता है और वो है एकजुटता। यदि जंगल के सारे जीव-जन्तु जो आज यहाँ एकत्रित हुए हैं। इसी प्रकार से उसके पास एकत्रित होकर चले जायें और उससे कहें कि वह यदि अमन-शांति चाहता है तो जंगल से भ्रष्टाचार ख़त्म करके एक सुशासन की नींव रखें। इसके लिए उसे ख़ुद सुधरना होगा। ईमानदारी से काम करना होगा, उसका जो भी नुमाईंदा या पंच उसके ख़िलाफ़ या जंगल के जीवों के ख़िलाफ़ कोई ग़लत साज़िश या ग़लत काम करें। उसे तुरंत प्रभाव से जंगल से बाहर करें फिर वह चाहे जहाँ जाये। जंगल की जनता का हित करे। उसके साथ दुर्व्यवहार ना करें सबकी बहू-बेटियों की इज़्ज़त करे। उसके आचरण से ही प्रभावित होकर अन्य पंच भी वैसा ही व्यावहार करने लगेंगे। तब जाकर इस जंगल में अमन शांति हो सकेगी।"

यह बात सुनकर सारे जीव एक साथ पुकार उठे। आपकी ये बात सही है। चलो हम अभी शेर के पास चलते हैं और उसे इस बारे बताते हैं। और यदि वह नहीं मानता है तो उसको भी जंगल छोड़ने के लिए मजबूर कर देंगे। यहाँ पर सभी जीवों का बराबर का हक़ है। अकेली वही थोड़े ही है शासन करने वाला। आज ही हम दिखा देंगे हमारे वोट में कितनी पावर है। यह कहकर सभी हो हल्ला करने लगे। तभी एक ओर से शेर की दहाड़ की आवाज़ सभी को सुनाई दी। कुछ ही समय में शेर उसी मचान पर था जिस पर खरगोश बैठा था। शेर को देखकर भी कोई नहीं घबराया। शेर उस मचान पर बैठकर कहने लगा -

"देखो भाईयो और बहनो, आज तक मैं यही सोचता रहा कि राज केवल बाजुओं के दम पर ही किया जा सकता है, परन्तु आज मुझे यहाँ आकर पता चला कि राज केवल आप सभी के साथ मिलकर किया जा सकता है। यदि आप साथ हैं तो राज है अन्यथा कुछ नहीं। मैं उस पेड़ के पिछे खड़ा सबके तर्क-वितर्क सुन रहा था। उस समय मुझे तुम्हारी बातों पर हँसी आ रही थी। मगर जब इस बगुले ने तुम सबको समझाना प्रारम्भ किया तो मुझे पता चला कि मैं आप सभी से हूँ मुझसे आप नहीं हैं, तो भाईयो और बहनो~ अब तक जो मुझसे अनजाने में हुआ है उसके लिए मैं आप सभी से माफी माँगता हूँ। भविष्य में कभी ऐसा नहीं होगा, और हाँ यदि आप में से कोई और सरपंच बनना चाहता है तो मैं सहर्ष ही सरपंच पद से इस्तीफ़ा देने को तैयार हूँ और आपका पूरा-पूरा सहयोग करने को भी तैयार हूँ। यदि आपको लगता है कि मुझे सुधरने का एक ओर मौक़ा दिया जाये तो भी मैं आपके साथ ही हूँ। अब आगे से चाहें जो भी बहन जैसे भी घूमे किसी को किसी प्रकार का कोई भी ख़तरा किसी से नहीं रहेगा। मैं आज से ही ये ऐलान करता हूँ कि आने वाले समय में हमारा जंगल सबसे सुन्दर और सुशासित होगा। अब तक जो ग़लती मुझसे हुई है एक बार फिर से मैं आप सभी से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ और आप सबसे आशा करता हूँ कि आप मुझे एक मौक़ा और देंगे सुधरने का। सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी उसे सुधरने का एक मौक़ा और दे दिया और सच में ही छह महीने भीतर ही वहाँ पर सुशासन करके दिखा दिया उसने। जंगल में आज भी सभी मादा पक्षी आज़ादी से घूम सकती हैं। किसी का किसी पर किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं। कोई मनमानी नहीं कर सकता।

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