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लॉकडाउन

मूल लेखिकाः स्वाति मेढ़
अनुवादः डॉ.नयना डेलीवाला

 

यह लॉकडाउन मुझे तनिक भी पसंद नहीं आता। मेरी अच्छी-मौज की ज़िंदगी में एक प्रॉब्लेम हो गई है। सब लॉकडाउन हो गया इसलिए तो यह अनुष अंकल यहाँ हमारे घर में रह गये न! वह मेरे लिए कितना प्रॉब्लेम करते हैं, पता है आपको? पूरे दिन मेरे आसपास घूमते रहते है, फिज़ूल की बातें करते रहते हैं। वह कोई मेरे सच्चे या रिश्ते के अंकल नहीं है। मेरे तो अंकल है ही नहीं। मेरी नयी मम्मी के भाई के दोस्त हैं। समझ गये न, नयी मम्मी अर्थात्? यह नयी मम्मी भी मेरी सच्ची मम्मी नहीं है। मेरी मम्मी तो…

बहुत साल पहले की बात है। इस बात को सात-आठ साल हो गये हैं। मेरी सच्ची मम्मी और मैं उस दिन स्कूटी पर स्कूल से आ रहे थे। मैं और मम्मी दोनों एक ही स्कूल में थे, मम्मी स्कूल में पढ़ाती थी और मैं दूसरे स्टैण्डर्ड में पढ़ती थी...। स्कूल में एन्युअल प्रोग्राम होनेवाला था, उसी प्रोग्राम में मैं एक गीत गानेवाली थी। प्रैक्टिस पूरी करके मैं और मम्मी स्कूटी पर घर आ रहे थे। मम्मी ने सर पर हेल्मेट पहना हुआ था, पैर के पास पर्स पड़ा हुआ था। मेरा स्कूल बेग मेरे कंधे पर था। मैं तो अपनी मस्ती में गा रही थी। रास्ता एकदम से ख़ाली था। परंतु सामने से एक बड़ी रिक्षा सामान से लदी हुई आई और धड़ाम से हमसे टकराई।स्कूटी  गिर गई, मैं और मम्मी दोनों ही गिर पड़े। मुझे इतना याद है कि ज़मीन बहुत ही खुरदरी थी। बाद में जब मेरी आँख खुली, मैं अस्पताल में थी। मैं बैठ भी नहीं पा रही थी। सर पर पट्टी बँधी हुई थी, पीठ भी सख़्त दर्द कर रही थी। पापा पास में ही खड़े थे और मैंने मम्मी के लिए पूछा, उन्होंने कहा कि – उसे तो भगवान ले गये। बस मम्मी तो चली गई। बहुत दिनों तक मैं बैठ नहीं पा रही थी। दो-तीन ऑपरेशन भी किये गये, पर डॉक्टर ने कहा कि अब मैं चल नहीं पाऊँगी। हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर बैठे रहना होगा। कुछ दिनों के बाद मैं घर आ गई। मम्मी तो थी नहीं परंतु बहुत सुंदर दिखनेवाली आंटी आ गयी थी। वही मुझे सम्हालनेवाले थे। उनका नाम था कौशल्या आंटी। बहुत अच्छे थे। मम्मी की भाँति ही प्रेम करते थे, पर मम्मी थोड़े न थे? मैं बहुत ही रो रही थी। पापा ने इलैक्ट्रिक से चलनेवाली व्हीलचेयर लाकर दी। कौशल्या आंटी ने मुझे व्हीलचेयर पर बैठकर पढ़ना, लिखना, गाना, उसे चलाते हुए पूरे घर में घूमना-फिरना सब सिखाया। अब मैं उस ओर बैठी रहूँ और जो जी में आये करूँ। मुझ पता चल गया है कि मेरी रीढ़ की हड्डी के मनके टूट गये हैं इसलिए अब मैं कभी चल नहीं पाऊँगी। यहाँ तक कि खड़ी भी नहीं हो पाऊँगी। अब मुझे ये सब अनुकूल आ गया है। अब मुझे रोना भी कम ही आता है। मैं स्कूल भी जाती हूँ, अब तो सातवीं कक्षा में पढ़ने लगी हूँ। अब तो कौशल्या आंटी ही मेरी मम्मी बन गई हैं। नयी मम्मी हों, मुझे अच्छे भी लगते हैं। बहुत ही स्वीट-स्वीट है, कौशल्या आन्टी। यह अनुष अंकल नयी मम्मी के भाई के दोस्त हैं। उस दिन लॉकडाउन का टी.वी. पर आया तब वह नयी मम्मी को मिलने के लिए आये थे। रहते है वह बाहर गाँव। पहले भी कभी-कभी आते थे। बहुत हँसाते, मुझसे खेलते, मुझे बहुत ख़ुश रखते, बहुत अच्छे लगते थे। परंतु अब तो तनिक भी नहीं सुहाते, बिलकुल अच्छे नहीं लगते।
 
जब टी.वी में उस दिन लॉकडाउन घोषित हुआ तुरंत नयी मम्मी ने कहा– "भोजन करके अभी ही निकल जाओ। बारह बजे तक तो पहुँच जाओगे। वहाँ सब लोग राह भी देख रहे होंगे।"

अनुष अंकल के घर आंटी है और उसके बेटे ने तो दसवीं कक्षा की परीक्षा भी दी है। परंतु वह गये नहीं। 

"वहाँ आकाश तो है न। मैं तो यहीं रहूँगा प्रिता की कंपनी के लिए।"

प्रिता माने मैं। मेरे पापा का नाम अश्विनभाई है। मैं बारह साल की हूँ, स्कुल में पढ़ती भी हूँ। लॉकडाउन के कारण स्कूल में परीक्षा भी नहीं हुई। वरना तो मैं आठवीं कक्षा में चली गई होती। कोरोना के कारण मुझे घर में रहना पड़ता है। अन्यथा मैं हर रोज़ स्कूल जाऊँ और की-बोर्ड बजाने की क्लास में भी। अपने दोस्तों के घर भी जाती थी। मैं कितनी ख़ुश और मौज से रहती थी। घर में रहूँ तो पढ़ाई करती और की-बोर्ड पर गाने बजाती रहती। लिफ़्ट से नीचे खेलने भी जाती थी। गिरा बा हरेक स्थान पर मेरे साथ ही रहती थी। मेरे पापा बहुत बड़ी फार्मसी कंपनी में काम करते हैं अतः हर रोज़ घर नहीं आ पाते। लैब में ही रहते हैं, कोरोना की दवाई खोजने का काम करते हैं न। वे मुझे हर रोज़ वॉट्सएप पर वीडियो कॉल करते हैं। कौशल मम्मी भी गिरा बा के अलावा किसीके साथ मुझे अकेले नहीं रखते। कौशल मम्मी ड्रेस डिज़ाइनर है, उनका स्टुडियो भी घर में ही है। कई बार मैं उनके स्टुडियो में बैठकर पढ़ती हूँ, उनसे बातें भी करती हूँ। उनके द्वारा बनायी गई डिज़ाइनें देखूँ, बहुत बढ़िया डिज़ाइनें बनाती हैं, मेरे ड्रेस भी डिज़ाइन करती हैं। मुझे सम्हालने के लिए जो गिरा बा आती हैं वह भी अपने बेटे के घर गये तो वहीं रुक गये। खाना बनानेवाले महाराज भी नहीं आते, अतः घर का सारा काम, खाना बनाना, कपड़े धोना, घर की सफ़ाई करना, मुझे सम्हालना सारे काम कौशल मम्मी को ही करने पड़ते हैं। हमारा फ़्लैट भी बड़ा है, और मैं तो कुछ हेल्प भी नहीं कर पाती। दसवीं मंज़िल पर पेन्ट हाउस, चार कमरे और टेरेस के साथ। पापा ने इसलिए टेरेसवाला फ़्लैट लिया ताकि मैं आराम से घूम-फिर सकूँ। यह लॉकडाउन हुआ और मेरा तो सारा घूमना आदि बंद हो गया। घर में वह अनुष अंकल मुझे परेशान करते रहते हैं। मुझे बहुत ग़ुस्सा भी आता है, वैसे पापा को भी वह नहीं सुहाते। कौशल मम्मी को भी क्रोध आता है। 

अनुष अंकल क्या करते हैं, पता है? कौशल मम्मी घर के काम में व्यस्त हो तब मेरे पास आ जाते हैं और मुझे हर जगह पर छूते रहते हैं। मैं उसको धक्का लगाऊँ, दूर ढकेल दूँ तब भी पास आ ही जाते हैं। मेरे मुँह पर हाथ पसारे और छिः... चित्र-विचित्र आवाज़ें करें। कौशल मम्मी बार-बार मुझे देखने आ जाये। मम्मी कहे. ‘प्रिता तो अकेली रहेगी, तुम ड्राइंग रूम में बैठो, अनुष।‘ तो भी वह वहाँ जाये ही नहीं, और कहें कि इट्स ओ.के.। और ऐसे बैठे कि जैसे पुस्तक पढ़ रहे हों। जैसे ही मौक़ा मिले मुझे बैड टच करें, पता है न, बैड टच माने क्या, कैसा? मुझे सब पता चलता है हाँ, हमें स्कूल में सिखाया है। मेरे काउन्सलर रुचिता आंटी ने भी मुझे कहा है। मुझे ये पता है कि किसीको भी ऐसा बेड टच नहीं करने देनेका। पर मैं करूँ तो क्या करूँ, मैं तो भाग भी नहीं सकती। यह अनुष अंकल तो बहुत बुरे हैं, कहते हैं अब तो तू बड़ी हो गई है। उसे क्या फ़िक्र कि मैं बड़ी हूँ या छोटी? एक थप्पड़ लगा दूँ तो? एक बार तो मैंने मार भी दिया तो मेरा हाथ इतनी ज़ोर से पकड़ा कि...

पता नहीं यह लॉकडाउन कब ख़त्म होगा? मुझे तो रोना आ गया। घर में तो मैं और कौशल मम्मी ही थे, पता नहीं यह कहाँ से आ गये? उसका तो नाम लेने का भी मन नहीं होता मुझे। पहले तो ऐसा था कि और कोई काम न हो तो मैं कहानी की पुस्तकें पढ़ती, मेरे लैपटॉप पर फ़िल्में देखती, मुझे कॉमेडी फ़िल्में बहुत ही पसंद आती है। टॉम एंड जेरी, चार्ली चेप्लीन देखकर मैं इतना हँसती हूँ कि मेरे गिरा बा प्यार से कहतीं, ‘यह लड़की तो पागल हो गई है।‘ मैं तो गिरा बा को भी देखने के लिए बिठाती, फिर वो भी हँसतीं हैं मेरे साथ-साथ। इतना मज़ा आये, पर पता नहीं अब गिरा बा कब आयेंगी? लॉकडाउन के बाद ही न। उस दिन मैंने उससे मोबाइल पर बात की, मैं रोने लगी, वह भी भावुक हो गई, कहने लगे बेटा, बस चले न रिक्षा, मैं आऊँ तो कैसे आऊँ? लॉकडाउन अभी भी बहुत दिनों तक चलेगा। इतने दिन तक अनुष अंकल भी तो यहीं रहेंगे? मुझे उससे डर लगता है, बहुत गंदे हैं। मुझे अपने टेब पर फ़िल्म दिखाते हैं, उसमें छोटी-छोटी लड़कियाँ और बड़े-बड़े पुरुष...मैं तो बोल भी नहीं सकती। मैं आँखे मूँद लूँ तो अनुष अंकल गुदगुदी करके जगायें। मुझे ग़ुस्सा आया तो मैंने उसका टेब लेकर के ज़ोर से फेंक दिया। टूट गया, अच्छा हुआ। वह तो हँसने लगे। मैं क्या करूँ, मुझे तो रात को नींद नहीं आती। खाना भी अच्छा नहीं लगता। डर लगता है, ज़ोर-ज़ोर से रोने का मन कर रहा है। मैं अनुष अंकल को बहुत बार कहती हूँ कि ऐसा मत करो, तो भी हर रोज़ ऐसा ही करते हैं। पता नहीं यह लॉकडाउन कब तक चलेगा? किसी भी दिन बंद नहीं होगा? फिर तो अनुष अंकल बहुत दिन यहाँ रहेंगे न? गिरा बा भी बहुत दिनों तक नहीं आयेंगी! क्या करूँ मैं? रुचिता आंटी को बताऊँ? कौशल मम्मी मुझे रात को सुलाने आती हैं, उनसे बात करूँ? पापा को कहूँ? ऐसी बात किसीको कह सकते हैं? कोई मुझे झूठी कहेगा तो? अनुष अंकल को पता चलेगा और वह मुझे अधिक परेशान करेंगे तो? गुपचुप गिराबा को ही फोन करती हूँ! चलो, ऐसा ही करती हूँ। उनसे तो मैं सारी बातें कह सकती हूँ। गिराबा तो मेरे बेस्ट फ़्रेंड हैं, वह तो मेरी बात मानेंगी ही। रात हो गयी थी, कौशल मम्मी मुझे सुलाने आयी थीं। मैं जाग रही थी फिर भी मैंने सोने की एक्टिंग की, कि मैं सो गयी हूँ, और कौशल मम्मी चले गयीं, और मैंने फोन कर ही दिया, सारी बातें बता ही दी। गिराबा ने कहा, "अभी तो रात बहुत हो गई है, प्रितु बेटा, तुम सो जा। कल ही मैं आ जाऊँगी।" बस... फिर मुझे नींद आ गई।

पूरी रात मुझे अच्छी-सी नींद आयी। सुबह हुई, देखा तो पापा घर आये हुए थे और बहुत ग़ुस्सा भी थे। कौशल मम्मी भी ग़ुस्सा थिम। पापा का चिल्लाना में मुझे सुनाई दिया, "अभी की अभी निकल तूं।" कौशल मम्मी ने भी कहा, "शेम ऑन यू, अनुष, गेट आउट।" पापा? कब आये? स्वीट-स्वीट कौशल मम्मी, अनुष अंकल को डाँटते हैं! उनको कैसे पता चला, गिरा बा ने कहा, मैं अपने-आप तो बैठ नहीं सकती। मैं इन्तज़ार करती हुई सोयी रही। कुछ देर बाद शांति हुई। मैंने कौशल मम्मी को फोन किया। उन्होंने कहा, तुम जाग गई बेटा? अभी आती हूँ हाँ। कुछ देर बाद पापा-मम्मी दोनों ही आये। मैं इतना रोयी कि ग़ज़ब। पापा ने कहा, ”मैं आज ही जाकर गिराबा को ले आता हूँ।" हाआआआश... गिराबा आ जायेंगी।

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