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समकालीन-परिदृश्य की कहानियाँ : काफिल का कुत्ता

समीक्ष्य पुस्तक : काफिल का कुत्ता
लेखक : विक्रम सिंह
समीक्षक : रामप्रसाद राजभर
प्रकाशक : अमन प्रकाशक, कानपुर
मूल्य- ₹160

चर्चित युवा कहानी कार विक्रम सिंह का यह तीसरा कहानी संग्रह है। इससे पूर्व दो कहानी-संग्रह क्रमशः वारिस(2013)और और कितने टुकड़े’(2015) में आये और उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

विक्रम सिंह की कहानियाँ हमारे समाज व समय की सच्चाई को दर्शाती हैं।

संग्रह की पहली कहानी है ‘अपना खून’। पहाड़ व पहाड़ी-जीवन, परिवेश व वहाँ की समस्याओं को लेकर बुनी हुयी एक बेहतरीन कहानी को बड़े परिश्रम से लिखा है लेखक विक्रम  सिंह ने। कहानी शुरू होती है और कहानीकार उपस्थित रहता है पूरी कहानी में। कहानी पढ़ते जाते हैं,आँखे शब्द-दर-शब्द पढ़ती जाती है और दिमाग़ में दृश्य बनते जाते हैं। ग्रामीण- जीवन की छोटी बातों में ही जीवन को उत्सवमय बना लेते हैं। पहाड़ी परिवेश की असुविधा में अध्यापक, डॉक्टर या अन्य सरकारी सेवक जो जनता के लिये नियुक्त होते हैं, पर अपनी असुविधा को देखकर पलायन कर जाते हैं और पीछे वो जनता रह जाती है जो अभाव में जीने की आदी है। कहानी में जो एक और तथ्य है वह ये कि ,'प्राकृतिक खनिज व अन्य सम्पदा से परिपूर्ण जितने राज्य हैं वहाँ निर्धनता का स्थायी वास है, धन-सम्पदा का दोहन तो सरकारी नीतियों से लाभ लेनेवाले पूँजीपति उठा ले जाते हैं। इसलिये वहाँ की ग़रीब युवापीढ़ी अपने सपनों की होली जलाकर काम व धनोपार्जन के लिये दूर-दराज के क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहाँ वे हाड़तोड़ परिश्रम करते हैं और मुआवजे के एवज में इतना ही पा पाते हैं कि, 'मैं भी भूखा न रहूँ, परिवार न भूखा सोय।' साधू के लिये कुछ नहीं बच पाता। आगे जो कहानी है वह शीर्षक के हिसाब से है। आज के समाज में भी लोगों को संतान और वह भी पुत्र की इच्छा प्रबलता से घेरे हुये है। और इसी चाह में नायिका फँसती है और कहानी भावपूर्ण होती जाती है। संग्रह की दूसरी कहानी शीर्षक कहानी है ‘काफिल का कुत्ता ‘। कहानी की शुरुआत एक कॉलोनी से होती है। जैसा कि अमूमन होता है, किसी भी नई बस्ती में कुत्तों की संख्या अधिक होती है; वह भी आवारा कुत्तों की।  कहानीकार कुत्तों और मनुष्य का तुलनात्मक अध्ययन कर पाता है कि, ’मनुष्य भी वास्तव में कुत्ता ही है जो धनिक नामक बड़े कुत्ते की गुलामी करने को विवश है।‘ व्यंग्यात्मक संस्मरण की तरह कहानी आरंभ होती है।“जिस अनुपात में पिल्ले खत्म हुए थे उस अनुपात में हम सब जिंदा थे कुत्ते की भूमिका बस सहवास  तक ही थी उसका पालने से कोई मतलब नहीं था।“ दो दशक पहले की बस्तियाँ कैसी थीं? वहाँ क्या-क्या हलचलें हो रही थीं? इन सब का बहुत सुंदर चित्रण कहानीकार ने किया है। वास्तव में किसी कहानी का सूत्रधार स्वयं कहानीकार होता है। ठीक वैसे ही इस कहानी में भी सूत्रधार के रूप में कहानीकार मौजूद है। जो समय-समय पर अपनी मौजूदगी को दर्शाते जाते हैं जिससे कहानी की विश्वसनीयता बढ़ती है। एक समय के पश्चात बचपन समाप्त हो जाता है। किशोरावस्था का अवसान हो जाता है।और रोज़गार की समस्या हमारे सामने सुरसा के मुँह की तरह बाए खड़ी मिलती है। तब हमें पता चलता है वास्तविक दुनिया का। तब युवाओं को घर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ता है रोज़गार के लिए:- “कुत्तों के पिल्लों की तरह कॉलोनी से लड़के खाली हो रहे थे।... हाँ वह मर नहीं रहे थे मर मर के जी रहे थे।“ कहानी में प्रेम प्रसंग भी यथा समय आता है पर वह गौण है। हमारी शिक्षा व्यवस्था रोज़गार के अवसर प्रदान नहीं करती है। आज के युवा बेहतर आजीविका की तलाश में खाड़ी देशों की ओर पलायन करते हैं। उन्हें वहाँ प्रकाश जवान दिखता है। यहाँ से  वहाँ जाकर वे वहाँ के घनीभूत अँधेरों में फँस जाते हैं। वहाँ जाकर वहाँ के शोषक मालिकों की गिरफ्त में फँसकर उनका पूरा जीवन नष्ट हो जाता है। अक्सर हम जीवन में जो देखते हैं वह दृश्य वैसे ही नहीं होते। मृगमरीचिका का भ्रम अक्सर रेत के विशाल मरुस्थल में ही होता है। एक मोटी रक़म की व्यवस्था के पश्चात विदेश जाने की जुग तंत्र की है। कहानी खाड़ी देश में गए कामगरों के दुखद व कष्टमय जीवन का सटीक  बयान है। बड़ा कर्ज़ लेकर कमाने गये युवकों  की विवशता उस कर्ज़ को चुकाने की भी होती है। और वहाँ की कानून-व्यवस्था भी उन्हीं के विरोध में होती है सो चाहकर भी वे कुछ नहीं कर पाते। खाड़ी देश में काम करने गया युवा वास्तव में वहाँ के धनिकों का कुत्ता बनकर रह जाता। संग्रह की अगली कहानी बद्दू है।  कहानी में  किसानी और कामगरी के साथ-साथ अन्य विषयों व कथावस्तु का समावेश हुआ दो पीढ़ियों के अंतराल में समाई कहानी कई महत्वपूर्ण सवालों से जूझती है। और समाधान भी प्रस्तुत करती है । पलटन व तारकेश्वर गाँव से कोयला खदान की ओर काम की तलाश में जाते हैं तारकेश्वर वहीं जमा रहे जाता है और पलटन गाँव वापस आ जाता है। कालांतर में  परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि नौकरी वालों की तनख़्वाह में  आशातीत  बढ़ोतरी होती है, अन्य सुख-सुविधाओं के साथ। जिससे वे मालामाल हो  जाते हैं और खेती करने वाले किसान निर्धनता की अतल गहराइयों की ओर सरकते जाते हैं। परिस्थितियाँ पलटती जाती हैं समय के साथ। पलटन अपनी भूमि तारकेश्वर को बेचता है। इस कहानी में भी शिक्षा व्यवस्था व उसका रोज़गार उन्मुख न होने के कारण फैली बेरो्ज़गारी की विशाल समस्या पर प्रकाश स्वतः पड़ता है । “जब नौकरी काम करने वालों को ही मिलती है तो क्यों सरकार फालतू का B.A, B.Com पढा रही है। ज़माना अब इतिहास भूगोल का नहीं रह गया है।“

पलटन को अपनी ज़मीन बेचनी पड़ती है क्योंकि वह अपने बेटे धनंजय को खाड़ी देशों में काम के लिए भेजना चाहता है पर उसे ्ज़माने की चालबाज़ियों  और हक़ीक़त का पता नहीं होता। पूरी तैयारी के साथ पलटन अपने बेटे धनंजय के साथ मुंबई इंटरव्यू के लिए पहुँचाता है इस विशालकाय  समुद्र में कई लोग विदेश जाने के लिए गोता लगा रहे हैं बड़ी-बड़ी शार्क व व्हेल जैसी मछलियाँ निगलने के  लिए तैयार थीं”।

आख़िर यही सत्य है। विदेश में जाकर काम करने को उत्सुक युवाओं को अपने ही देश में रोज़गार की संभावनाओं को स्वयं ही पैदा करना होगा। धनंजय वहाँ जाकर फँस तो जाता है पर देव कृपा से वह वापस आने में कामयाब हो जाता है। कई ऊहापोहो से गुज़रती कहानी को समाधान मिल जाता है कि, ’सही दिशा में परिश्रम कर रोज़गार व धन दोनों को प्राप्त किया जा सकता है।‘

संग्रह की चौथी कहानी ‘आवारा अदाकार’ है। कहानी क़स्बे का और दो दशक पूर्व के ्क़स्बाई जीवन का जीवन्त चित्रण है। प्रेम और वह भी निश्छल हो तो सार्थकता की सीमा के पार तक जाता है। पर परिणाम तक नहीं पहुँच पाता। गुरूवंश ऐसे ही अपने प्यार को पाने के लिये जीवन और समाज के महासागर में गोते लगाता है पर बहुत प्रयास के पश्चात भी सफल नहीं हो पाता और सिनेमा की चकाचौंध से भरी दुनियाँ में अटक जाता है सुखमय भविष्य की कल्पना लिये। ऐसे ही अनाम और गुमनाम कलाकारों की श्रेष्ठ कहानी है।

अंतिम कहानी ‘रास्ता किधर है‘ में कहानीकार उस दुविधा का हल खोजने की कोशिश में है कि ग्रामीण जीवन और शहरी जीवन में  विवाह की कौन सी रीति सफल है? महिलाओं के आर्थिक रूप से समृद्ध होने की थीम को लेकर बुनी हुई एक बेहतरीन कहानी से रूबरू होते हैं हम।

विक्रम सिंह की कहानियाँ हमारे समाज व समय की सच्चाई को दर्शाती हैं और कहानीकार के पास जीवन का विस्तृत व गहरा अनुभव है जो इन कहानियों में आया है। साधुवाद विक्रम सिंह को इन कहानियों के लिए।

रामप्रसाद राजभर, 
अल्फा स्टील, अर्नोस नगर, 
वेलूर साउ, तृश्शूर-680601, 
केरल। 
9995455598

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